फिल्म समीक्षा : इशकजादे
मसालेदार फार्मूले में रची
-अजय ब्रह्मात्मज
एक काल्पनिक बस्ती है अलमोर। लखनऊ के आसपास कहीं होगी। वहां कुरैशी और
चौहान परिवार रहते हैं। जमींदार,जागीरदार और रईस तो अब रहे नहीं,इसलिए
सुविधा के लिए उन्हें राजनीति में दिखा दिया गया है। कुरैशी परिवार के
मुखिया अभी एमएलए है। चुनाव सिर पर है। चौहान इस बार बाजी मारना चाहते हैं।
मजेदार है कि दोनों निर्दलीय हैं। देश में अब कौन से विधान सभा क्षेत्र
बचे हैं,जहां राजनीतिक पाटियों का दबदबा न हो? निर्दलियों के जीतने के बाद
भी उनके झंडे और नेता तो नजर आने चाहिए थे। देश में समस्या है कि काल्पनिक
किरदारों को किसी पार्टी का नहीं बताया जा सकता। कौन आफत मोल ले? दोनों
दुश्मन परिवारों के नई पीढ़ी जवान हो चुकी है। इशकजादे का नायक चौहान
परिवार का है और नायिका कुरैशी परिवार की।
यहां से कहानी शुरू होती है। परमा और जोया लंपट और बदतमीज किस्म के नौजवान
हैं। हिंदी फिल्मों के नायक-नायिका के प्रेम के लिए जरूरी अदतमीजी में
दोनों काबिल हैं। उन्हें कट्टे और पिस्तौल से प्यार है। मनमानी करने में ही
उनकी मौज होती है। दोनों परिवारों में बच्चों को बचपन से दुश्मनी का दूध
पिला कर ही पाला गया है। वे एक-दूसरे को नीचा दिखने को कोई मौका नहीं
छोड़ते। फिर एक दिन परमा और जोया की भिड़ंत हो जाती है। परमा की बदतमीजी पर
जोया उसे थप्पड़ मारती है। यह थप्पड़ ही फिल्म की कहानी में झन्नाटेदार
झटके लाता है। परमा और जोया की नफरत मोहब्बत में बदलती है और मोहब्बत बदले
में ़ ़ ़इस टिवस्ट के बारे में बताना उचित नहीं होगा।
हबीब फैजल ने अपनी कहानी के लिए दो नए एक्टर चुने हैं। हिंदी फिल्मों करी
लांचिंग फिल्म में अधिकांश प्रेमकहानी हीे होती हैं। हबीब ने भी वही आसान
रास्ता लिया है। उन्होंने परिवेश जरूर बदला है,लेकिन किरदारों के मिजाज में
खास तब्दीली नहीं की है। ऊपरी तौर पर उजड्ड दिख रहे नायक-नायिका में के
निरूपण में नयापन नहीं है। प्रेमकहानी को रोचक और नाटकीय बनाने के लिए सारे
आजमाए फार्मूले डाले गए हैं। परिवारों की पुश्तैनी दुश्मनी,हिंदू-मुस्लिम
भेदभाव,राजनीति,वर्चस्व की लड़ाई,नायक-नायिका के अपने द्वंद्व,विधवा
मां,सुधरने की दुहाई, प्रेम का एहसास,एक तवायफ की इंसानियत,कोठे की शराफत
आदि-आदि। हां,इन सभी पर मुलम्मा नया है,लेकिन खुरचने पर पुरानी कई फिल्मों
की छटाएं दिखने लगती हैं। इसी में दो नए एक्टरों को कुछ कर दिखाना है।
अर्जुन कपूर और परिणिती चोपड़ा ने कोई कोताही नहीं बरती है। दोनों दिए गए
किरदारों में जंचे हैं। चूंकि फिल्म में एक्शन, ड्रामा और अम्लीय संवाद
भरपूर हैं,इसलिए दोनों अपने किरदारों में भाने भी लगते हैं। अर्जुन कपूर को
एक्शन,डांस, रोमांस, भिड़ंत के ढेर सीन मिले हैं। परिणिती के पास भी ऐसे
दृश्यों की कमी नहीं है। निर्देशक ने पहली फिल्म के हिसाब से दोनों पर
बराबर ध्यान दिया है। फिल्म में तवायफ के रूप में गौहर खान मौजूद हैं।
पहले अपने मादक डांस और फिर अपनी इंसानियत से वह दिल जीतती हैं। हबीब ने
चरित्र भूमिकाओं में नए अभिनेताओं को लेकर फिल्म का प्रभाव बढ़ाने के साथ
नए एक्टरों को उभरने का पूरा मौका दिया है। फिर भी नताशा रस्तोगी और रतन
राठौड़ याद रह जाते हैं। फिल्म का अंत हिंदी फिल्मों की प्रेमकहानियों की
परंपरा में ही है।
-अजय ब्रह्मात्मज
***1/2 साढे तीन स्टार
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