जुझारू अनुराग कश्यप की सफलता
-अजय ब्रह्मात्मज
फिल्म फेस्टिवल देख कर फिल्मों में आए अनुराग कश्यप के लिए इस से बड़ी खुशी क्या होगी कि उनकी दो खंडों में बनी ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ विश्व के एक प्रतिष्ठित फिल्म फेस्टिवल के लिए चुनी गई है। 16 मई से आरंभ हो रहे कान फिल्म फेस्टिवल के ‘डायरेक्टर फोर्टनाइट’ सेक्शन में उनकी दोनों फिल्में दिखाई जाएंगी। इसके अलावा उनकी प्रोडक्शन कंपनी अनुराग कश्यप फिल्म्स की वासन वाला निर्देशित ‘पेडलर्स’ भी कान फिल्म फेस्टिवल के क्रिटिक वीक्स के लिए चुनी गई है। इस साल चार फिल्मों को कान फिल्म फेस्टिवल में आधिकारिक एंट्री मिली है। चौथी फिल्म अयिाम आहलूवालिया की ‘मिस लवली’ है। इनमें से तीन फिल्मों से अनुराग कश्यप जुड़े हुए हैं। युवा पीढ़ी के सारे निर्देशक अनुराग कश्यप की इस उपलब्धि से खुश है। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के दिग्गज खामोश हैं। उन्हें लग रहा है कि बाहर से आया दो टके का छोकरा हिंदी फिल्म इंडस्ट्री का प्रतिनिधित्व कर रहा है। इस ऊंचाई तक आने में अनुराग कश्यप की कड़ी मेहनत, लगन और एकाग्रता है। ‘सत्या’ से मिली पहचान के बाद अनुराग कश्यप ने पीछे पलट कर नहीं देखा। मुश्किलों और दिक्कतों में कई बार वे ठिठके और कुछ सालों तक एक कदम भी नहीं बढ़ सके। ‘पांच’ के रिलीज न होने पर उनकी निराशा उन्हें अलकोहल और अराजकता की तरफ ले गई। टूटे हारे अनुराग कश्यप में किसी को कोई उम्मीद नहीं दिख रही थी। फिर भी जिद्दी अनुराग कश्यप मानने को तैयार नहीं थे। उन्होंने ‘ब्लैक फ्रायडे’ बनाई। यह फिल्म प्रतिबंधित कर दी गई। अपनी फिल्मों को दर्शकों तक नहीं ले जा पाने केा दुख बढ़ता गया। निराशा और दुख के उस दौर में भी अनुराग की क्रिएटिविटी खत्म नहीं हुई। बहुत कम लोग जानते हैं कि अनुराग कश्यप को बचाए और बनाए रखने में उनके छोटे भाई और ‘दबंग’ के निर्देशक अभिनव कश्यप का बहुत बड़ा हाथ रहा है। भाई के पैशन को देख कर अभिनव ने सारी पारिवारिक जिम्मेदारियां अपने कंधे पर ले लीं। पैसों के लिए टीवी शो और लेखन किया। बड़े भाई को अपने पांव पर खड़े होने और अपने मन की फिल्म बनाने की राह आसान की। अनुराग की कई खूबियां हैं। वे सीधे और मुंहफट हैं। उन्हें हिपोक्रेसी बिल्कुल पसंद नहीं है। फिल्मों के लिए वे हर समय किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार रहते हैं। तिनका-तिनका जोड़ कर चिडिय़ा अपना घोंसला बनाती है। अनुराग ने छोटी-छोटी कोशिशों से अपनी प्रोडक्शन कंपनी खड़ी की है। इस कंपनी के तहत वे नए फिल्मकारों को मौके दे रहे हैं। उनकी कोशिश रहती है कि प्रतिभाशाली युवा निर्देशकों उनकी तरह भटकना न पड़े। ठोकरें न खानी पडें। उनका दफ्तर अनेक महत्वाकांक्षी निर्देशकों का डेरा और बसेरा बना रहता है। देश की बड़ी संस्थाओं से पढ़ कर आए लडक़े-लड़कियां उनके साथ काम कर रहे हैं। अनुराग की यह विशेषता है कि वे अपने सहयोगियों की ‘वैयक्तिता’ को नहीं दबाते। उनके दफ्तर में खुली आलोचना की छूट है। नया प्रशिक्षु सहायक भी अनुराग कश्यप के काम पर उंगली उठा सकता है। उसके प्रति कोई दुराग्रह नहीं पाला जाता। अनुराग के करीबी मानते हैं कि अनुराग अपने आलोचकों को अपना सब से करीबी मानते हैं। उन्हें सीने से लगा कर रखते हैं। वे ‘निंदक नियरे राखिये’ के दर्शन में यकीन करते हैं। ‘देव डी’ और ‘गुलाल’ की लोकप्रियता से अनुराग कश्यप को मेनस्ट्रीम में पहचान मिली। खास कर ‘देव डी’ की सफलता के बाद उम्मीद की जा रही थी कि वे बड़े बजट की मल्टी स्टारर फिल्म शुरू करेंगे। कई कारपोरेट कंपनियों के ऑफर भी थे, लेकिन अनुराग ने पिछली सफलता से खुद को बाहर कर लिया और ‘लो बजट’ में ‘दैट गर्ल इन येलो बूट््स’ का निर्माण और निर्देशन किया। उनके इस सिरफिरे व्यवहार से सभी को ताज्जुब हुआ, लेकिन अनुराग का निरालापन चालू रहा। अनेक युवा निर्देशकों को सीमित बजट की फिल्में देने के साथ वे खुद ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ बनाने निकले। उन्होंने तय किया कि वे इसे दो खंडों में बनाएंगे ताकि पूरी कहानी कही जा सके। कलाकारों और तकनीशियनों की टीम ने उन्हें समर्थन दिया। अभी ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ पोस्ट प्रोडक्शन के अंतिम चरण में है। ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ की अलग कहानी है। एक दिन सईद जीशान कादरी ने अनुराग कश्यप को संक्षेप में एक कहानी सुनाई। कहानी सुनकर वे हतप्रभ रह गए। उन्होंने पूछा, कहीं तुम मुझे उल्लू तो नहीं बना रहे हो। तुम जो बता रहे हो, वह सचमुच कहीं हुआ है क्या? मैंने उस से यही कहा कि तुम कोई प्रूव दो। वह दो दिनों के बाद अखबार की कतरनें लेकर आया, जिसमें पुश्तैनी दुश्मनी और हत्या की खबरें थी। फिर मैंने अपनी टीम को वहां भेजा। उन्होंने आकर बताया कि ऐसी कहानियां वहां हैं। आए दिन ऐसी घटनाएं होती रही हैं। सईद जीशान कादरी के साथ सचिन लाडिया और आखिलेश जायसवाल लेखक के तौर पर जुड़े। फिर स्क्रिप्ट तैयार हुई। तीन पीढिय़ों के बदले की यह कहानी 60 सालों तक चलती है। अनुराग कश्प इस फिल्म की शूटिंग वास्तविक लोकेशन पर करना चाहते थे। लेकिन लाजिस्टिक दिक्कतों के कारण उन्होंने मिर्जापुर और बनारस के आस पास मुख्य शूटिंग की। वे धनबाद भी गए। वहां के धूसरित परिवेश को अपनी फिल्मों में लेकर लौटे। 60 सालों की कहानी को पीरियड के हिसाब से शूट किया गया है। फिल्म के पहले हिस्से की शूटिंग में उस दौर की फिल्मों का स्टाइल रखा गया है, जबकि आज की कहानी के लिए डिजिटल कैमरे के साथ आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल किया गया है। हिंदी फिल्मों में उत्तरप्रदेश, बिहार और झारखंड को ओरिजनल रंगों में हीं दिखाया गया है। अनुराग ने अपने जमीनी और वास्तविक किरदारों को उनका वास्तविक परिवेश दिया है। कॉस्ट्यूम, भाषा, प्रोपर्टी सभी आवश्यक तत्वों पर पूरा ध्यान दिया गया। इस फिल्म में मनोज बाजपेयी, पियूष मिश्रा, नवाजुद्दीन सिद्दिकी के साथ तिग्मांशु धूलिया भी प्रभावशाली भूमिका में दिखेंगे। फिल्म के मूल लेखक सईद जीशान कादरी ने भी एक रोल किया है। उन्होंने रोल मिलने की शर्त पर ही अनुराग कश्यप को कहानी दी थी। इस फिल्म में ऋचा चड्ढा और हूमा कुरैशी भी खास भूमिकाओं में हैं। यशपाल शर्मा ने बैंड गायक की अनोखी भूमिका निभायी है। इसके साथ म्यूजिक डायरेक्टर स्नेहा खानवलकर ने परिवेश के हिसाब से इसमें 25 गाने गूंथे हैं। इस फिल्म के लिए शारदा सिन्हा, मनोज तिवारी समेत स्थानीय गायकों और गृहणियों तक से गाने गवाए गए हैं। ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ के दोनों खंडो को ‘डायरेक्टर्स फोर्टनाइट’ सेक्शन में जगह मिलना बड़ी बात है, इसमें पूरे विश्व के वैसे दिग्गज फिल्मकारों की फिल्मों को चुना जाता है, जिनकी अपनी पहचान है। मौलिक, नए और वैयक्तिक पहचान की फिल्मों का यह सेक्शन कान फिल्म फेस्टिवल में विशेष महत्व रखता है। अनुराग कश्यप और उनकी टीम ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ को अंतिम टच देने में लगी है। भारत में यह फिल्म जून-जुलाई में रिलीज होगी। बनारस से वाया दिल्ली फिल्मों की नगरी मुंबई पहुंचे अनुराग कश्यप की यह व्यक्तिगत उपलब्धि वास्तव में उनकी टीम की मेहनत का नतीजा है। अनुराग कश्यप की कामयाबी युवा फिल्मकारों को प्रेरित कर रही है। वे अपनी पीढ़ी के अगुआ फिल्मकार बन गए हैं।
Comments
आप का निरीक्षण सही है। अनुराग कश्यप का मैं ज्यादा खयाल करता हूं,लेकिन दसरों को नजरअंदाज भी नहीं करता। मुझे हर नई प्रतिभा अच्छी लगती है। मैं अपने तई उसकी सराहना करता हूं। अगर कोई छूट रहा है तो बताएं। मैं जरूर लिखूंगा और अपनी गलती सुधारुंगा।
कुछ दिन पहले मैंने आपको ईमेल भेजे थे लेकिन आपने उत्तर देना आवश्यक नहीं समझा. यहाँ ये कहना चाहूँगा की अमिताभ बच्चन भी सभी ईमेल का उत्तर देते हैं, शायद उनसे ही कुछ प्रेरणा ली जा सकती है. ईमेल भेजने वाला भी शायद अपनी बात आप तक पहुँचाना चाहता है. मैंने अपनी एक फिल्म का लिंक भेजा था. अगर आपको कुछ समय मिल जाए तो ज़रूर देखें. अब अनुराग आपकी लेखनी के बिना भी जम जायेंगे लेकिन दूसरे भी हैं....कान में पहले भी भारत का प्रतिनिधित्व एकलव्य जैसी फिल्म कर चुकी है. ये ज़रूरी नहीं की हम अपनी प्रतिनिधित्व फिल्म ही भजते हैं. अनुराग को सफलता मिले तो खुशी होगी ही...लेकिन ये फिल्म ना आपने देखी है ना मैंने ओर ना दुनिया ने...कुछ इन्तेज़ार करते तो किसी अदृश्य को इतना नहीं कहना पड़ता. आप से कुछ उम्मीद थी इसलिए कुछ अफ़सोस हुआ...