बदल रहा है फिल्मों का प्रदर्शन और बिजनेस
यह संभव है कि मैं निकट भविष्य में शुक्रवार को रिलीज हो रही फिल्म को थिएटर के बजाए अपने होम थिएटर में देखूं? अभी यह बात असंभव सी लगती है। शहरों के रईस और सेलिब्रिटी थिएटर की भीड़ से बचते हुए अपने घरों, बंगलों और होम थिएटर में इसका आनंद उठाने लगे हैं। डिजिटल तकनीक के जरिए उन्हें अपने घरों में यह सुविधा मिल रही है।
यूएफओ समेत अनेक कंपनियां ये सुविधाएं दूर-दराज के थिएटरों और महानगरों के घरों में पहुंचा रही हैं। अभी यह थोड़ा महंगा है, लेकिन आले वाले समय में डीटीएच और डिश के जरिए आम दर्शकों को भी उनके बजट में घर बैठे मनोरंजन मिलने लगेगा।
अभी डिश के जरिए एक-दो हफ्तों के बाद नई फिल्में हम देख पाते हैं। कुछ सालों में यह रिलीज के दिन ही डिश के जरिए हर घर के टीवी पर मिलेगा। 50 रुपए में टीवी के छोटे पर्दे पर सिनेमा उपलब्ध होगा। इतना ही नहीं मोबाइल टैबलेट, आई पैड और पॉड समेत अन्य माध्यमों से यह हमारी हथेली में भी आ सकता है और बिजनेस कर सकता है।
फिल्मों के देखने के तरीके से फिल्मों का बिजनेस बदल रहा है। पहले फिल्मों की सारी कमाई थिएटर रिलीज के कलेक्शन से आती और आंकी जाती थी। फिर म्यूजिक, वीडियो राइट, ओवरसीज राइट आदि का दौर आया। अभी सैटेलाइट और डिजिटल राइट का दौर है। इनसे फिल्मों की अच्छी कमाई हो रही है। निर्माता अपनी लागत निकालने और ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए नई से नई युक्ति की तलाश में रहते हैं।
उन्हें पैसों से मतलब है। शाहरुख खान की फिल्म रॉ. वन थिएटरों में ज्यादा नहीं चली, लेकिन शाहरुख ने येन-केन-प्रकारेण फिल्म को फायदे में ला दिया। फिल्म बिजनेस के पारंपरिक विश्लेषक नहीं मानते रॉ. वन को सफल फिल्म नहीं मानते। अभी सोच और मानसिकता बदलने में समय लगेगा।
कुछ साल पहले तक फिल्म की कमाई का 80-90 प्रतिशत थिएटरों से ही आता था। अब यह प्रतिशत घट कर 60 पहुंच गया है। 40 प्रतिशत कमाई अन्य श्चोतों से होने लगी है। ट्रेड विश्लेषक फिल्म की कमाई में इसे शामिल नहीं करते। दरअसल, इस तरह की कमाई पारदर्शी और ठोस नहीं है। उन्हें तुरंत इसकी जानकारी नहीं मिलती। खासकर रिलीज के बाद वीकएंड में जब वे कमाई का जोड़ लगाकर फैसले सुनाते हैं, तब तक ऐसी कमाई के आंकड़े उपलब्ध नहीं होते।
सावधान हो जाएं, फिल्मों की कमाई के और तरीके भी सोचे जा रहे हैं। पिछले दिनों एक कॉर्पोरेट प्रोडक्शन कंपनी के सीईओ ने बताया कि वे अब फिल्मों की घोषणा से लेकर उसके प्रदर्शन तक की गतिविधियों से कमाई के बारे में सोच रहे हैं। पिछले साल रॉ. वन ने म्यूजिक रिलीज के इवेंट को एक मनोरंजन चैनल को बेच दिया था। उन्होंने कहा कि वे फिल्म के मुहूर्त, स्टोरी सीटिंग, म्यूजिक सेशन और रिकार्डिग, शूटिंग और अन्य सभी गतिविधियों को एक साथ या टुकड़ों में बेचकर कमाई बढ़ाने के बारे में सोच रहे हैं।
यह संभव है, लेकिन सिर्फ बड़ी फिल्मों और बड़े स्टारों के मामले में। ऐसी व्यवस्था विकसित हो गई तो निर्माताओं को छोटी फिल्मों की जानकारी प्रकाशित या प्रसारित करवाने के लिए पैसे खर्च करने पड़ेंगे।
फिल्मों के बिजनेस का संक्रांति काल चल रहा है। हमेशा की तरह कुछ ही फिल्में कामयाब हो रही हैं, लेकिन निर्माताओं की घबराहट बढ़ गई है। अब वे अपना रिस्क कम कर रहे हैं। देखने में आ रहा है कि एक ही फिल्म के कई निर्माता हो जाते हैं या कई निर्माताओं के पैसों और हाथों से गुजरकर फिल्म प्रदर्शित हो पाती है।
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