टाकीज
चवन्नी ने इसे फरीद खान के फेसबुक की दीवार से उठा लिया है....धन्यवाद अरुणदेव...
अपने शहर के जर्जर हो चुके सिनेमा घर पर अरुण देव की एक बेहतरीन कविता।
II टाकीज II
लम्बे अंतराल पर वहां जाना हुआ
कस्बे के बीच ढहती हुई इमारत में वह पुराना पर्दा रौशन था
स्त्रियां नहीं थीं दर्शकों में
बच्चे भी नहीं
कभी जहां सपरिवार जाने का चलन था
अब वहाँ कुछ बेख्याल नौजवान पहुँचते थे
कुछ एक रिक्शेवाले, खोमचेवाले
शायद कुछ मजदूर भी जिनके पास मनोरंजन का यही साधन बचा था
बालकनी के फटे गद्दे वाली सीटों पर बमुश्किल पांच लोग मिले
टिकट - विंडो पर बैठने वाला कभी रसूखदार लगता था आज दयनीय दिखा
टिकट चेक करने वाले की हालत गिरी थी
पांच लोगों में वह किसका टिकट चेक करता और उसे उसकी तयशुदा सीट पर बैठाता
सिनेमाघर के दरबान ने जब मुझे बालकनी की सीढियों की ओर इशारा किया
वह झुका और टूटा हुआ लगा
मालिक बाहर बेंच पर बैठा ताश के पत्ते फेंट रहा था
बूढ़े हो चले हाथी के महावत की तरह
वह इमारत को देख लेता बीच-बीच में
कभी भी इसे कोल्डस्टोरेज या शादी घर में बदला जा सकता था
पीछे से रौशनी परदे पर पड़नी शुरू हुई
कभी यह पर्दा रात को सोने न देता था
रिक्शे पर नई फ़िल्म की पुकार
बरबस खींच ले जाती सिनेमाहाल की अगली सीट पर
इसी पर्दे से सीखता था कस्बा तन कर चलना
बोलता था चुस्त संवाद
और गुनगुनाता था दिलफरेब गाने
इसी से सीखती थी बहनें नए फैशन के लिबास
भाई साहब ने इसी से लिया था इश्क करने का हौसला
और ले लिया था घर छोड़ने का फैसला
इंटरवल में वही चिरपरिचित घंटी बजी
मूंगफली बेचने वाले बच्चे आए
समोसे और चाय वालों ने भी आवाज़ लगाई पहले की ही तरह
जल रहा था एक पीला बल्ब उदास
टाकीज का रास्ता भटका हुआ रास्ता था तब
हर ऐब के पीछे इसे ढूंढ लिया जाता
फीकी रौशनी, फटी आवाजों और गिरती दीवारों के बीच बैठा
मैं एक नई फ़िल्म देख रहा हूँ
टाकीज अपनी जिद पर ऐसी फिल्में दिखा रहा है
जो उसके लिए बनी ही नहीं हैं
जैसे किसी कब्रिस्तान में बैठकर अपने किसी अज़ीज़ को
मैं ३ घंटे तक याद करता रहा.
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Comments
सिनेमा देखनना 'जैसे किसी कब्रिस्तान में बैठकर अपने किसी अज़ीज़ को में 3 घंटे तक याद करता रहा।'...
कितने सिनेमा हॉल बंद हो चुके ..
जो चल रहे उनकी यही तो हालत है !!