अस्तित्व की खोज है उपनिषद गंगा
टीवी पर रामायण और महाभारत देख चुके दर्शकों को रविवार की सुबहें याद होगीं। बाहर सन्नाटा छा जाता था। सभी एक साथ टीवी पर भारतीय महाकाव्यों का सीरियल रूपांतर देखते थे। वक्त बदला। कुछ और सीरियल उनके आगे-पीछे आए, जिन्हें दर्शकों ने खूब पसंद किया। अभी उन सभी सीरियल के डीवीडी धड़ल्ले से बिकते हैं और दर्शक उन्हें देख रहे हैं। उसी दौर में डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेदी का सीरियल चाणक्य आया था। परिवेश, भाषा, ड्रामा, अभिनय की उत्कृष्टता के योग ने इस धारावाहिक को विशिष्ट बना दिया था।
पूरे 20 सालों के बाद डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेदी दूरदर्शन पर लौट रहे हैं। इस बार वे उपनिषद गंगा लेकर आ रहे हैं। चिन्मय मिशन ने इसका निर्माण किया है। चिन्मय मिशन के स्वामी तेजोमयानंद की प्रेरणा से उपनिषद के विचारों और अवधारणाओं को आज की पीढ़ी के लिए रोचक कथाओं के रूप में लाने की चुनौती डॉ. द्विवेदी ने स्वीकार की है। उन्हें विस्डम ट्री प्रोडक्शन की मंदिरा कश्यप से निर्माण की सारी सुविधाएं मिलीं। परिवेश और पीरियड के लिए नितिन देसाई और मुनीष सप्पल जैसे दिग्गज आर्ट डायरेक्टरों का सहयोग लिया गया। पीरियड के अनुकूल माहौल के लिए विशेष सिनेमैटोग्राफी संजीव श्रीवास्तव ने की है।
उपनिषद गंगा में उपनिषद की अवधारणाओं को कथा रूप दिया गया है। अवधारणाओं को नाटकीय रूप में पेश करने के लिए चरित्र और कहानियां संपूर्ण भारतीय साहित्य और इतिहास से लिए गए हैं। इस धारावाहिक के लेखन के लिए डॉ. द्विवेदी ने अनेक लेखकों को आमंत्रित किया, लेकिन सब के सब किसी न किसी वजह से किनारा कर गए। आखिरकार फरीद खान ने लेखन और रिसर्च में सहयोग दिया।
फरीद खान कहते हैं, यह धारणा गलत है कि उपनिषद हिंदुओं के धार्मिक ग्रंथ हैं। वास्तव में उपनिषद दार्शनिक ग्रंथ हैं। मानव के सत्य की खोज का दस्तावेज हैं यह। अपने अध्ययन से मैंने पाया कि उपनिषद दुनिया से हर तरह के भेद मिटाने का दर्शन है। एक स्तर पर सभी धर्माें के दर्शन का आधार वेदांतिक दर्शन है।
उपनिषद गंगा के 52 एपीसोड बन कर तैयार हैं। इस धारावाहिक में अभिमन्यु सिंह ने अधिकांश चरित्रों को निभाया है। उनके अलावा मुकेश तिवारी, जाकिर हुसैन, केके रैना, इला अरूण, हुमा खान आदि विभिन्न चरित्रों के रूप में दिखेंगे। बाजार के दबाव या दर्शकों के रुझान से परे जाकर डॉ. द्विवेदी ने इसे लिखा और निर्देशित किया है।
वे मानते हैं कि अगर दर्शक किसी पूर्वधारणा से ग्रस्त न हों और वे उपनिषद गंगा देखने बैठें तो उन्हें अपने प्रश्नों के जवाब भी मिलेंगे, उपनिषद की अवधारणाओं की खूबी उनकी समकालीन अपील में है। हमने धारावाहिककी शुरुआत ही आज के प्रतिनिधि युवक नरेन्द्र से की है। वह अपने अस्तित्व और सत्य की खोज में उपनिषदों तक पहुंचता है और फिर यह कथा आरंभ होती है।
शुरुआत हम लोगों ने दाराशिकोह से की है। शाहजहां के बड़े बेटे दाराशिकोह की उपनिषदों में गहरी आस्था थी। दाराशिकोह के प्रयासों से हुए फारसी अनुवाद फ्रांसीसी यात्रियों के हाथ लगे और उनके साथ उपनिषद यूरोप पहुंचा। वहां से पश्चिमी जगत और विश्व के प्रकाश में आया। हमने पूरी कोशिश की हैं कि यह विचारोत्तेजक होने पर भी शुष्क और नीरस न हो!
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