चौंका दिया पान सिंह तोमर ने

-अजय ब्रह्मात्‍मज

इन दिनों ऐसी फिल्में कम आती हैं, जिन्हें दर्शक लपक लेते हैं। पिछले 2 मार्च को रिलीज हुई तिग्मांशु धूलिया की फिल्म पान सिंह तोमर को दर्शकों ने पसंद किया और अपना लिया। दर्शकों ने यह जता दिया कि वे सिर्फ आइटम सॉन्ग या आक्रामक प्रचार न होने पर भी फिल्मों को पसंद करते हैं।

। उनकी इस पसंद की जानकारी दूसरे दिन मिलती है। पहले दिन तो उन्हें पता भी नहीं रहता कि शुक्रवार को आ रही फिल्म कैसी है? पान सिंह तोमर की ही बात करें तो इस फिल्म के निर्माता यूटीवी को भरोसा नहीं था। उन्होंने लगभग तय कर लिया था कि वे अपना नुकसान नहीं बढ़ाएंगे। फिल्म बन जाने के बाद भी घाटे की आशंका से फिल्में डिब्बे में डाल दी जाती हैं।

उन्हें दर्शकों तक पहुचने ही नहीं दिया जाता। पान सिंह तोमर दो साल पहले बन कर तैयार हो चुकी थी। विभिन्न इंटरनेशनल फेस्टिवलों में इसे दर्शकों ने सराहा भी था, लेकिन यूटीवी के अधिकारियों को लग रहा था कि अभी के माहौल में दर्शक इसे पसंद नहीं करेंगे। पान सिंह तोमर नामक डाकू के जीवन में किसे इंटरेस्ट होगा? ऊपर से कोई बिकाऊ स्टार मेन लीड में नहीं है तो दर्शक भला क्यों देखने आएंगे?

सारी आशंकाओं को पान सिंह तोमर ने निराधार साबित कर दिया। रिलीज होने के बाद इस फिल्म को दर्शकों ने उस फिल्म से अधिक प्यार दिया, जिसे इंडस्ट्री की नामचीन हस्तियों का समर्थन हासिल था। यही दुर्लभ मौका था। आजकल दर्शक अप्रत्याशित परिणामों से चौंका रहे हैं। दर्शकों को इस बात से कोई मतलब नहीं रहता कि कोई फिल्म कितनी मुश्किलों से बनी है या उसकी रिलीज में क्या अड़चनें थीं? उन्हें तो पर्दे पर चल रही फिल्म से मतलब होता है।

गौर करें तो पान सिंह तोमर की भाषा में बुंदेली टच था। मल्टीप्लेक्स के दर्शकों के लिए इग्लिश सब-टाइटिल के साथ इसे रिलीज किया गया था। मुझे नहीं लगता कि उत्तर भारत के दर्शकों को बुंदेली लहजे की हिंदी समझने में कोई दिक्कत हुई होगी। इरफान एक ऐसे ऐक्टर हैं, जो बिना संवादों के भी दर्शकों से कम्युनिकेट करते हैं। पान सिंह तोमर में ऐसे कई दृश्य हैं, जहां बगैर शब्दों के ही इरफान बोलते नजर आते हैं। उन्होंने आंखों और संकेतों से भावों को अभिव्यक्त किया है।

यह फिल्म अपने देसीपन की वजह से आम दर्शकों से जुड़ी। फिल्म की कहानी कायदे से ग्वालियर भी नहीं पहुंच पाती, जबकि उसी हफ्ते रिलीज हुई दूसरी फिल्म दर्शकों लंदन, पेरिस और न्यूयार्क की सैर करवा रही थी। दर्शकों को चमक-दमक पसंद है, लेकिन उन्हें अपने गांव-कस्बों का धूसर और माटी सना रंग भी पसंद है। इस फिल्म की रिलीज में हो रही देरी से इरफान और तिग्मांशु धूलिया दोनों ही उदास और परेशान थे। बता दूं कि यह पान सिंह तोमर तिग्मांशु की ही साहब बीवी और गैंगस्टर से पहले बन कर तैयार हो चुकी थी। इस फिल्म में माही गिल के काम से प्रभावित होकर तिग्मांशु ने उन्हें साहब बीवी और गैंगस्टर दी थी। भविष्य में तिग्मांशु पर रिसर्च करने वालों को कैसे बताया जाएगा कि उनकी पहले की फिल्म बाद में रिलीज हुई। इरफान ने खुद को समझा लिया था। रिलीज के बाद दर्शकों के प्रतिसाद को देखकर उन्होंने कहा कि कुछ फिल्में उन व्यंजनों की तरह होती हैं, जो बन जाने के बाद भी तुरंत नहीं परोसी जातीं। उन्हें चूल्हे से उतारने के बाद भी सिझाया या दम दिया जाता है। उसके बाद ही उनका सही स्वाद मिलता है।

अभी पान सिंह तोमर के अनेक दावेदार निकल आए हैं। यकीन करें कि अगले साल पुरस्कार मिलने पर यूटीवी के अधिकारी इस फिल्म के बारे में बड़ी-बड़ी बातें करेंगे। वे बताएंगे कि कैसे वे बेहतर सिनेमा के लिए कोशिश कर रहे हैं और पान सिंह तोमर के लिए उन्होंने क्या-क्या किया?

Comments

शुरू में तो समझ में भी नहीं आया कि ऐसे नाम वाला को सिनेमा भी हो सकता है।
Anonymous said…
Film dekhi nahi h. Bt ajay sir aap k jadu se bhre shabdo ko padh kar lgta h dekhni padegi.
हमें तो बहुत पसन्द आयी यह फिल्म।
indianrj said…
पान सिंह तोमर सचमुच एक ऐसी फिल्म है जिसे देखते हुए मुझ जैसी दर्शक को पलक झपकाना भी नहीं भा रहा था. तड़क भड़क वाली दिखावे की ज़िन्दगी से दूर ये फिल्म एकदम सहज खांटी टच लिए है. ऊपर से इरफ़ान का गज़ब अभिनय इसे विशेष बना देता है. भाषा समझाने के लिए कोई अतिरिक्त मेहनत नहीं करनी पड़ी. माहि गिल का अभिनय भी शानदार है.
deepakkibaten said…
Kitani talkh sachchai hai, rochak jankari ke liye shukriya

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