फिल्म समीक्षा : अग्निपथ
प्रचार और जोर रितिक रोशन और संजय दत्त का था, लेकिन प्रभावित कर गए ऋषि कपूर और प्रियंका चोपड़ा। अग्निपथ में ऋषि कपूर चौंकाते हैं। हमने उन्हें ज्यादातर रोमांटिक और पॉजीटिव किरदारों में देखा है। निरंतर सद्चरित्र में दिखे ऋषि कपूर अपने खल चरित्र से विस्मित करते हैं। प्रियंका चोपड़ा में अनदेखी संभावनाएं हैं। इस फिल्म के कुछ दृश्यों में वह अपने भाव और अभिनय से मुग्ध करती हैं। शादी से पहले के दृश्य में काली की मनोदशा (खुशी और आगत दुख) को एक साथ जाहिर करने में वह कामयाब रही हैं। कांचा का दाहिना हाथ बने सूर्या के किरदार में पंकज त्रिपाठी हकलाहट और बेफिक्र अंदाज से अपनी अभिनय क्षमता का परिचय देते हैं। दीनानाथ चौहान की भूमिका में चेतन पंडित सादगी और आदर्श के प्रतिरूप नजर आते हैं। इन किरदारों और कलाकारों के विशेष उल्लेख की वजह है। फिल्म के प्रोमोशन में इन्हें दरकिनार रखा गया है। स्टार रितिक रोशन और संजय दत्त की बात करें तो रितिक हमेशा की तरह अपने किरदार को परफेक्ट ढंग से चित्रित करते हैं। संजय दत्त के व्यक्तित्व का आकर्षण उनके परफारमेंस की कमी को ढक देता है। कांचा की खलनायकी एक आयामी है, जबकि रऊफ लाला जटिल और परतदार खलनायक है।
निर्माता करण जौहर और निर्देशक करण मल्होत्रा अग्निपथ को पुरानी फिल्म की रीमेक नहीं कहते। उन्होंने इसे फिर से रचा है। मूल कहानी कांचा और विजय के द्वंद्व की है, लेकिन पूरी संरचना नयी है। रिश्तों में भी थोड़ा बदलाव आया है। नयी अग्निपथ सिर्फ कांचा और विजय की कहानी नहीं रह गई हैं। इसमें नए किरदार आ गए हैं। पुराने किरदार छंट गए हैं। अग्निपथ हिंदी फिल्मों की परंपरा की घनघोर मसालेदार फिल्म है, जिसमें एक्शन, इमोशन और मेलोड्रामा है। नायक-खलनायक की व्यक्तिगत लड़ाई हो तो दर्शकों को ज्यादा मजा आता है। ऐसी फिल्मों को देखते समय खयाल नहीं रहता कि हम किस काल विशेष और समाज की फिल्म देख रहे हैं। लेखक निर्देशक अपनी मर्जी से दृश्य गढ़ते हैं। एक अलग दुनिया बना दी जाती है, जो समय, परिवेश और समाज से परे हो जाती है। तभी तो अग्निपथ में लड़कियों की नीलामी जैसे दृश्य भी असंगत नहीं लगते।
करण मल्होत्रा ने पुरानी कहानी, पुरानी शैली और घिसे-पिटे किरदारों को नयी तकनीक और प्रस्तुति दे दी है। उनका पूरा जोर फिल्म के कुछ प्रसंगों और घटनाओं को प्रभावपूर्ण बनाने पर रहा है। फिल्म का तारतम्य टूटता है। कहानी भी बिखरती है। इसके बावजूद इंतजार रहता है कि अगली मुलाकात और भिड़ंत में क्या होगा? लेखक-निर्देशक पूरी फिल्म में यह जिज्ञासा बनाए रखने में कामयाब होते हैं। मांडवा और मुंबई को अलग रंगों में दिखाकर निर्देशक ने एक कंट्रास्ट भी पैदा किया है।
फिल्म के प्रोमोशन और ट्रेलर में कांचा के हाथ में गीता दिखी थी। गीता यहां काली किताब में बदल गई है। फिर भी कांचा गीता के श्लोकों को दोहराता सुनाई पड़ता है। कांचा के मुंह से गीता के संदेश की तार्किकता समझ के परे हैं। ओम पुरी इस फिल्म में भी प्रभावहीन रहे हैं। वे इन दिनों फिल्म से असंपृक्त नजर आते हैं। फिल्म के एक महत्वपूर्ण इमोशनल दृश्य में मां के घर रितिक रोशन को थाली में खाना खाते दिखाया गया है। इस दृश्य में साफ नजर आता है कि क्या रितिक रोशन को कौर उठाने नहीं आता या उन्होंने इसे लापरवाही से निभा दिया है। वे चावल का कौर ऐसे उठाते हैं मानो भूंजा उठा रहे हो। परफेक्ट अभिनेता से ऐसी लापरवाही की उम्मीद नहीं की जा सकती।
रेटिंग- *** 1/2 साढ़े तीन स्टार
Comments
एक तो दमदार डायलॉग,
दुसरी कमजोर हीरो ... ]
संजय दत्त और ऋषि कपूर के सामने ऋतिक रोशन बिलकुल फीके पड़ गए ..वैसे भी फिल्म में खलनायक को ज्यादा ही हाईलाइट किया गया है ...
सबसे बुरा फिल्म का अंत है |
Agneepath rocks. It collected Rs. 25 crores on first day! Hrithik is back folks!