प्रेम-रोमांस : द रोड होम
प्रेम-रोमांस-2
एक बेहद प्यारी फिल्म जिसकी शुरुआत मौत की खबर और समापन शवयात्रा से होती है। अमूमन फ्लैश बैक में फिल्में ब्लैक एंड व्हाईट हो जाया करती हैं लेकिन ‘द रोड होम’ इसके उलट फ्लैश बैक में रंगों से लबरेज और वर्तमान में स्याह-सफेद में सिमटी रहती है। अतीत का अंततः खुशनुमा होना और वर्तमान का अंततः दुःखदायी होना रंग विन्यास के इस उलटफेर को जस्टिफाई करता है। पिता की मृत्यु की खबर सुनकर उनके अंतिम संस्कार को लौटा बेटा ल्वो य्वीशंग (हुगलेई सुन) के स्मृतियों के गर्भ में लगायी गयी डुबकी के साथ फिल्म कायदन शुरु होती है। उत्तरी चीन की एक पहाड़ी गांव सैन्ह्यून में साल 1958 में फिल्म की कहानी शुरु होती है। जब उस गांव को उसका अपना पहला प्राथमिक शिक्षक ल्वो छांगय्वी ( हाओ चंग) मिलता है। उसकी अगुवानी में पूरा गांव खड़ा है, उसी भीड़ में खड़ी एक कमसिन की निगाहें बार-बार उस शिक्षक से उलझती हैं। पहली निगाह के इस प्यार के पनपने को जिस शिद्दत और संजीदगी के साथ चांग इमओ ने दृश्यों में बांधा है, उसे शब्दों में बांधना मुश्किल है ।
फोटोग्राफिक स्मृति के लिए एक शब्द है ‘मैंडेरिन मेमोरी’। चीन की लिपि चित्रात्मक है। चित्रात्मकता और प्रकृति के सौन्दर्य को बखूबी कैप्चर करना चीनी फिल्मों की, वे चाहे एक्शन फिल्में ही क्यों न हो, बुनियादी विशेषता है। ‘द रोड होम’ चीन के रिवाजों और जीवन दर्शन के परिप्रेक्ष्य में दोनों खासियत को आत्मसात करती एक बेमिसाल प्रेम कहानी है। कुदरत की बदलती रंगतों के बीच से बिना किसी संवाद के बस दृश्यों की लड़ियों में महीन बाँसुरी का पारम्परिक भीना-गुनगुना-सा चीनी संगीत और उस ध्वनि पथ पर तिरती कहानी, बस जिसे अद्भुत ही कहा जा सकता है। एक छोटा-सा गांव, छोटी-सी आबादी, मर्यादा का बंधन और रिवाजों की ओट। उन रिवाजों की ओट में अपने प्यार को बयां कर पाने की ऐसी मासूम और निष्पाप कोशिशें जो बरबस आपकी आत्मा तक को गुदगुदा जायें। हाउ यंग की सिनेमेटोग्राफी, पाओ शी की स्क्रीनप्ले और पाओ सान की साउण्डट्रेक की स्ट्रक्चरल यूनिटी मिल कर दृश्यों की जिन लड़ियो को पिरोते हैं, वह सिनेमाई व्याकरण को समझने की लिहाज से भी महत्वपूर्ण है। किसी क्रिया की निरंतरता को फिल्माने के क्रम में जिस रुप से उगते और धुंधलाते दृश्यों की कोख से अगले दृश्यों को उभरते दिखलाया गया है, वह शानदार है। ऑडियो विजुअल माध्यम होने के कारण सिनेमा किस तरह अभिव्यक्ति के मामले में अन्य कला रुपों से भिन्न है, झांग यिमोउ की सिनेमाई चेतना इसे साबित करने के लिए पर्याप्त है।
एक अर्थ में फिल्म रिवाज से शुरु होकर रिवाज पर खत्म होती है लेकिन उस रिवाज के दरम्यान प्रकृति, संगीत, फलसफा और स्मृतियाँ, एक दूसरे के पोर-पोर में इस कदर समाये हुए हैं कि उसे अलगाकर देखना ज्यादती होगी। तकनीक से लेकर कंटेट के स्तर पर सादगी का सौन्दर्य क्या होता है, फिल्म इसकी नजीर खुद है।
साधारण-सी शुरुआत के साथ लगातार असाधारण होती जाती फिल्म, खास कर उन हिस्सों में जहाँ फिल्म फ्लैश बैक में चलती है। एक निरीह और निश्च्छल प्यार के लगातार गहराने की कहानी जिसे मौत भी धुंधलाने में असमर्थ है। चालीस साल के साहचर्य के बाद अचानक मौत की दस्तक, पिता की अंत्येष्टि के लिए शहर से लौटा पुत्र, उसकी मां की अपने पति के पारंपरिक तरीके से दफनाने की जिद और उस जिद से जुड़ी संवेदनाओं की दास्तान है, ‘द रोड होम’। फिल्म की खासियत वे दृश्यावलियाँ हैं जो कुछ अविश्वसनीय-सा पर्दे पर साकार कर पाने में समर्थ है। उन तमाम दृश्यों को यहाँ रख पाना संभव नहीं है इसलिए कुछेक ही। गांव में दो कुएं हैं, एक नया और एक पुराना। नये वाले से पूरा गांव पानी लेता है क्योंकि वह नजदीक है। लेकिन चाओ काफी ऊँचाई पर स्थित कुंए से पानी लेने के लिए सिर्फ इसलिए जाती है कि रास्ते में विद्यालय पड़ता है, जहाँ से पढ़ाते हुए शिक्षक की आवाज सुनी जा सकती है और कभी-कभार उसे ऊँचाई से देखा भी जा सकता है। छुट्टी के बाद शिक्षक दूर के गांव के बच्चों को छोड़ने के लिए जाता है। चाओ गांव के मुहाने पर स्थित ऊँची जगहों से छिपकर रोज शिक्षक को उन बच्चों को छोड़ने जाते देखती है। यह जो पूरी दृश्यावली है उसे लिखकर बयां नहीं किया जा सकता है। रंगों की जो छटा पर्दे पर बिखरती है बस उसे महसूसा जा सकता है। गेंहू की बालियों के बीच से झांकती और पगडण्डियों में कुलांचे भरती चाओ, उसकी देह की भंगिमाएं, उसकी मासूमियत मन को छूती है। वह दिन, जब गांव के रिवाज के हिसाब से शिक्षक के आतिथ्य की बारी चाओ की है। चाओ भोर से उठ कर खाने की तैयारी में जुटी है। खाना बनाकर, इंतजार में दरवाजे के चौखट से लगी चाओ किसी नायाब पेन्टिंग की तरह लगती है। उसके बाद शिक्षक को खाना परोसकर उसे दूर आईने के जरिये देखना, माशा अल्लाह। चाओ की अंधी मां का अपनी बेटी के उस टूटे बर्तन को बर्तन मरम्मत करानेवाले से जुड़वाने का दृश्य, या गुम हो चूके बालों के क्लिप को चाओ के द्वारा रोज ढूंढने की कोशिश, या फिर शिक्षक की अनुपस्थिति में विद्यालय को अपने दम सजाने की कोशिश या लाल जैकेट में बालों में वही क्लिप लगाये शिक्षक के लौटने का इंतजार का दृश्य। खैर, शिक्षक की मृत्यु हो चुकी है और चाओ चाहती है कि उसके पति का अंतिम संस्कार पारम्परिक तरीके से हो। पारम्परिक तरीका यह है कि ताबूत को हाथों से ढोकर पैदल गांव तक लाया जाये। समस्या यह है कि गांव के सारे युवक रोजगार के सिलसिले में गांव से पलायन कर चुके हैं। बर्फ और बारिश के मौसम में गांव के बूढ़े और बच्चे इस काम को अंजाम नहीं दे सकते हैं। किराये पर आदमी बुलाये जाते हैं। हथकरघे को फिर से उसका बेटा मरम्मत के लिए लेकर जाता है। मरम्मत करनेवाला कहता है कि शायद यह इस गांव और इसके आस-पास बचा आखिरी हथकरघा होगा और उसे शायद जानबूझकर इसी काम के लिए अब तक बचा कर रखा गया था। वह काम यह है कि चाओ अपने हाथों से वैसा ही प्यारा कफन बुनना चाहती है, जैसा कि उसने ने उसी हथकरघे पर स्कूल के शुभंकर प्रतीक के रुप में लाल बैनर बुनी थी। उस शवयात्रा में न सिर्फ गांव के बल्कि आस-पास के गांव और शहरों से बड़ी संख्या में लोग शामिल होते है यह वे लोग थे जिन्हें उसके पति ने पढ़ाया था। रास्ते में वे चीनी रिवाज के अनुसार शव को संबोधित करते चलते हैं कि यह रास्ता जिस पर हम तुम्हें लेकर जा रहें हैं तुम्हारे घर को जाता है (द रोड होम)। चाओ को मालूम है कि उसके पति ने कई पीढ़ियों को पढ़ाया है इसलिए मृत्यु के बाद उसके पति को अगर कुछ जोड़ी हाथ और पैर भी कांधा देने को न मिले तो यह शर्म और अपमान की बात होगी। दूसरे, यह सड़क उनके प्रेम का गवाह रहा है। वह सड़क शहर को गांव से जोड़ने का काम करती है। चाओ की जिंदगी में खुशियां उसी रोड के जरिये आयीं थी। उस रोड ने उसको मायूस नहीं किया था। और शायद इसलिए वह आखिरी बार अपने पति के साथ उसी रास्ते से गुजरना चाहती है। कहते हैं कि पैदल चलने से रास्ता याद रहता है। चाओ नहीं चाहती थी कि उसका पति घर की राह भूल जाये, इसलिए कार या टैक्टर से शवयात्रा के प्रस्ताव को वह सिरे से खारिज कर देती है। फिल्म के अंत में चाओ अपने जीवन भर की बचत स्कूल की नयी इमारत के निर्माण के लिए देती है। अगली सुबह चाओ के कान में फिर से वही आवाज सुनाई पड़ती है जो वह वर्षों से सुनती आयी थी। ल्वो के पिता चाहते थे कि ल्वो बड़ा होकर शिक्षक बने, ल्वो शहर जाने से पहले एक दिन के लिए उसी विद्यालय में अपने पिता की बनाई पाठ्य पुस्तक से एक सबक बच्चों को सुना रहा है। अंत में इस नामालूम-सी फिल्म के बारे में कुछ मालूम-सी बातें। इस फिल्म के निर्देशक चांग इमओ वही हैं जिन्होंने ‘रेड लैन्टर्न’ और ‘क्राउचिंग टाइगर हिडेन ड्रेगन’ बनायी थी। और इस फिल्म की कमसिन और गुड़ियों-सी दिखने वाली चाओ (चांग चियी) की यह डेब्यू फिल्म थी जिसे हम ‘क्राउचिंग टाइगर’ में तलवारबाजी और हैरतंगेज स्टंट करते हुए देख चुके हैं और फिल्म पाओ शी के उपन्यास रिमेम्बरेन्स पर आधारित है, जिसकी पटकथा भी पाओ शी ने ही लिखी है।
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