फिल्म समीक्षा : पप्पू कांट डांस साला
दो पृष्ठभूमियों से आए विद्याधर और महक संयोग से टकराते हैं। दोनों अपने सपनों के साथ मुंबई आए है। उनके बीच पहले विकर्षण और फिर आकर्षण होता है। सोच और व्यवहार की भिन्नता के कारण उनके बीच झड़प होती रहती है। यह झड़प ही उनके अलगाव का कारण बनता है और फिर उन्हें अपनी तड़प का एहसास होता है। पता चलता है कि वे एक-दूसरे की जिंदगी में दाखिल हो चुके हैं और साथ रहने की संतुष्टि चाहते हैं। ऐसी प्रेमकहानियां हिंदी फिल्मों के लिए नई नहीं हैं। फिर भी सौरभ शुक्ला की फिल्म पप्पू कांट डांस साला चरित्रों के चित्रण, निर्वाह और परिप्रेक्ष्य में नवीनता लेकर आई है।
सौरभ शुक्ला टीवी के समय से ऐसी बेमेल जोडि़यों की कहानियां कह रहे हैं। उनकी कहानियों का यह स्थायी भाव है। नायक थोड़ा दब्बू, पिछड़ा, भिन्न, कुंठित, जटिल होता है। वह नायिका के समकक्ष होने की कोशिश में अपनी विसंगतियों से हंसाता है। इस कोशिश में उसकी वेदना और संवेदना जाहिर होती है। पप्पू कांट डांस साला की मराठी मुलगी महक और बनारसी छोरा विद्याधर में अनेक विषमताएं हैं, लेकिन मुंबई में पहचान बनाने की कोशिश में दोनों समांतर पटरियों पर चले आते हैं। सौरभ शुक्ला ने एक सिंपल सी प्रेमकहानी सहज तरीके से चित्रित की है।
विनय पाठक ऐसे सिंपल चरित्र कई फिल्मों में निभा चुके हैं। अपनी इस इमेज से उन्हें कई फायदे हो जाते हैं। लेखक-निर्देशक भी अतिरिक्त दृश्यों से बच जाते हैं। समस्या वैसे दर्शकों के साथ हो सकती है, जो पहले से विनय पाठक और उनकी फिल्मों को नहीं जानते। नेहा धूपिया ने महक के किरदार को सुंदर तरीके से निभाया है। उन्होंने दृश्य की जरूरतों के मुताबिक बगैर मेकअप के शॉट देने में भी गुरेज नहीं किया है। महक के द्वंद्व और सोच को वह ढंग से अभिव्यक्तकरती हैं। रजत कपूर के किरदार पलाश को विस्तार नहीं मिल पाया है। संजय मिश्रा चंद दृश्यों की झलक में ही अपनी छटा छोड़ जाते हैं। पप्पू कांट डांस साला एक सीधी सरल फिल्म है, जो बासु चटर्जी और हृषीकेश मुखर्जी के दौर की फिल्मों से जुड़ती है।
रेटिंग- *** तीन स्टार
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