फिल्म समीक्षा : मुझ से फ्रेंडशिप करोगे
-अजय ब्रह्मात्मज
यह फेसबुक के दौर में मुंबई की प्रेमकहानी है। एक कॉलेज के कूल किस्म के कुछ छात्रों के बीच बनते-बिगड़ते और उलझते-सुलझते रिश्तों की इस कहानी के चरित्र शहरी यूथ है। इनकी भाषा, बातचीत, व्यवहार और तौर-तरीके बिल्कुल अलग है। ये बिल्कुल अलग ढंग से खीझते और खुश होते हैं। अपने भावों को स्माइली से जाहिर करते हैं और फेक आइडेंटिटी से अपने प्रेम का खेल रचते हैं।
पूरी फिल्म फेसबुक चैट की तरह ऑनलाइन चलती रहती है। राहुल, प्रीति, विशाल और मालविका आज की पीढ़ी के चार यूथ हैं। प्रीति और विशाल कॉलेज के एक प्रोजेक्ट पर एक साथ काम कर रहे हैं। उन्हें पिछले पच्चीस सालों में कॉलेज में बने 25 जोडि़यों की कहानी लिखनी है। उन कहानियों को लिखने और डाक्युमेंट करने की प्रक्रिया में ही उनका नजरिया भी बदलता जाता है। क्लाइमेक्स सीन में विशाल लिखित संभाषण भूल जाता है और अपने दिल की बात कहता है। उसके कथन का सार है कि पहले का समय और प्रेम सच्चा और सीधा था। जब इंटरनेट और फेसबुक नहीं था तो प्रेम की कठिनाइयां उसके एहसास को बढ़ा देती थीं।
नुपूर अस्थाना पूरी फिल्म में जो दिखती और बताती हैं, उसे खुद ही फिल्म के अंत में इस एहसास से काट देती हैं कि आज का फेसबुकिया प्रेम कृत्रिम और झूठा है। लेखक-निर्देशक की सोच का यह विरोधाभास हालांकि पुराने के प्रति आदर जगाता है, लेकिन आज की लाइफ स्टाइल और सोशल मीडिया नेटवर्क के युग के संबंधों का यह अस्वीकार उचित नहीं लगता। समय बदल रहा है। प्रेम के भाव और एक्सप्रेशन बदल रहे हैं। गौर करें तो पुराने तरीके के प्रति आस्था जाहिर करने पर भी प्रीति और विशाल का प्रेम तो आज के तकनीकी संप्रेषण के युग में ही हुआ है।
मुझ से फ्रेंडशिप करोगे में चारों नए कलाकार सहज और स्वाभाविक हैं। खास कर साकिब सलीम और सबा आजाद उम्मीद जगाते हैं। निशांत दहिया और तारा डिसूजा में आकर्षण है। सहयोगी भूमिकाओं में आए नए कलाकारों का योगदान कम नहीं है।
*** तीन स्टार
Comments
मैं आपके ब्लॉग पे देरी से आने की वजह से माफ़ी चाहूँगा मैं वैष्णोदेवी और सालासर हनुमान के दर्शन को गया हुआ था और आप से मैं आशा करता हु की आप मेरे ब्लॉग पे आके मुझे आपने विचारो से अवगत करवाएंगे और मेरे ब्लॉग के मेम्बर बनकर मुझे अनुग्रहित करे
आपको एवं आपके परिवार को क्रवाचोथ की हार्दिक शुभकामनायें!
http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/
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