फिल्म समीक्षा : मोड़
-अजय ब्रह्मात्मज
झरने सा कलकल प्रेम
नागेश कुकनूर अपनी सहज संवेदना के साथ मोड़ में लौटे हैं। वे सरल कहानियां अच्छी तरह चित्रित करते हैं। मोड़ उनकी संवेदनात्मक फिल्म है। इस फिल्म की प्रेमकहानी पहाड़ी इलाके के चाय बागान की पृष्ठभूमि में है। प्रकृति की मौलिक सुंदरता का आकर्षण इस फिल्म के निर्दोष प्रेम को नया आयाम देता है।अरण्या इस कस्बे में अपने पिता के साथ रहती है। पिता किशोर कुमार के परम भक्त हैं और मदिराप्रेमी हैं। घर और कस्बा छोड़ कर जा चुकी पत्नी का वे आज भी इंतजार कर रहे हैं। इंतजार अरण्या को भी है। उसे लगता है कि इस कस्बे में उसे किसी से प्रेम हो जाएगा। प्रेम होता है, लेकिन प्रेमी के खंडित व्यक्तित्व से परिचित होने पर अरण्या का द्वंद्व बढ़ जाता है। राहुल डिसोशिऐटेड आइडेंटिटी डिसआर्डर का मरीज है, जो एंडी बन कर अरण्या से प्रेम करता है और राहुल होते ही अरण्या से घृणा करने लगता है। सच तो यह है किराहुल दिल से अरण्या को चाहता है।
नागेश कुकनूर ने आयशा टाकिया और रणविजय सिंह के सहयोग से इस मनोवैज्ञानिक और जटिल प्रेमकहानी को मासूमियत के साथ पर्दे पर उतारा है। निश्छल प्रेम की यह भावुक दास्तान है। आयशा और रणविजय दोनों ही नैचुरल और अनाटकीय हैं। उन्हें रघुवीर यादव और तन्वी आजमी का भावपूर्ण साथ मिला है। शहरों के कोलाहल से दूर पनपे इस प्रेम में पहाड़ी झरने का कलकल है। फिल्म की धीमी गति परिवेश के अनुरूप है, लेकिन फास्ट कट के आदी हो चुके दर्शकों को इसमें थोड़ी ऊब हो सकती है।
*** तीन स्टार
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