अब बीवी रोती-बिसूरती नहीं है-तिग्‍मांशु धूलिया


-अजय ब्रह्मात्‍मज

साहब बीवी और गैंगस्टर ़ ़ ़ इस फिल्म का नाम सुनते ही गुरुदत्त अभिनीत साहब बीवी और गुलामकी याद आती है। 1962 में बनी इस फिल्म का निर्देशन अबरार अल्वी ने किया था। इस फिल्म में छोटी बहू की भूमिका में मीना कुमारी ने अपनी जिंदगी के दर्द और आवाज को उतार दिया था। उस साल इस फिल्म को चार फिल्मफेअर पुरस्कार मिले थे। यह फिल्म भारत से विदेशी भाषा की कैटगरी में आस्कर के लिए भी भेजी गई थी। इस मशहूर फिल्म के मूल विचार लेकर ही तिग्मांशु धूलिया ने साहब बीवी और गैंगस्टरकी कल्पना की है।

तिग्मांशु धूलिया के शब्दों में, ‘हम ने मूल विचार पुरानी फिल्म से ही लिया है। लेकिन यह रिमेक नहीं है। हम पुरानी फिल्म से कोई छेड़छाड़ नहीं कर रहे हैं। साहब बीवी और गैंगस्टरसंबंधों की कहानी है, जिसमें सेक्स की राजनीति है। यह ख्वाबों की फिल्म है। जरूरी नहीं है कि हर आदमी मुख्यमंत्री बनने का ही ख्वाब देखे। छोटे ख्वाब भी हो सकते हैं। कोई नवाब बनने के भी ख्वाब देख सकता है।

इस फिल्म में गुलाम की जगह गैंगस्टर आ गया है। उसके आते ही यह आंसू और दर्द की कहानी रह जाती है। यह क्राइम और थ्रिलर है, जिसमें सारे किरदार अपने-अपने लाभ के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं। तिग्मांशु कहते हैं, ‘वक्त बदल गया है। अब छोटी बहू आंसू नहीं बहाती। बहू का मिजाज बदल गया है। वह अपनी जिंदगी की कमियों के लिए रोती नहीं है। उसे हासिल करना चाहती है। इस चाहत में उसे गैंगस्टर का इस्तेमाल करने में भी हिचक नहीं होती। मैंने अपनी फिल्म को छोटे शहर में रखा है। मैंने किरदारों का पूरा एटीट्यूड बदल दिया है।

वे आगे बताते हैं, ‘मूल फिल्म में अकेलापन है। मेरी फिल्म का परिवेश देखेंगे तो इस अकेलेपन का एहसास होगा। वीराने में एक हवेली है। उसमें कुछ लोग रहते हैं, जिन्हें एक-दूसरे से कोई मतलब नहीं है। कहते ही हैं कि खाली दिमाग शैतान का अड्डा ़ ़ ़ तो अकेला आदमी अपनी परेशानियों से उबरने के लिए अजीब सी हरकतें करता है। मेरी फिल्म की बीवी रोती नहीं है। वह अपना हक लेना जानती है। हक लेने के लिए वह कुछ भी कर सकती है। भूतनाथ यहां पर गैंगस्टर है। नवाब साहब का काम कुछ अलग सा है।

साहब बीवी और गैंगस्टरमें आठ गाने हैं। इन दिनों युवा फिल्मकार अपनी फिल्मों में गाने डालने से बचते हैं। तिग्मांशु की सोच अलग है। वे हिंदी फिल्मों की इस शैली पर फख्र करते हैं, ‘हम गानों का क्यों न इस्तेमाल करें। मैंने साहब बीवी और गैंगस्टरमें आठ गाने रखे हैं। उन्हें अलग-अलग म्यूजिक डायरेक्टर ने संगीतबद्ध किया है। बहुत ही अच्छे और खूबसूरत गाने हैं। दो गाने तो गैरफिल्मी किस्म के हैं। एकअमित स्याल का गीत है। मजेदार बात है कि अमित स्याल की प्रेमिका ने उसे छोड़ दिया। उस गम में उसने गाना लिख दिया। और फिर एक सीडी भी बना दिया। वह इस गाने को गाता रहता है ़ ़ ़ बिछुडऩे की बातें हैं गाने में। मैंने उस गाने को इस फिल्म में रखा। इसी प्रकार सुनील भाटिया का एक गाना है। एक सूफियानी कव्वाली भी है।एक जुगनी भी है।

कलाकारों के चुनाव की बात पूछने पर तिग्मांशु धूलिया स्पष्ट करते हैं, ‘मेरा मानना है कि फिल्में फेल नहीं होतीं। उनका बजट फेल होता है। इस फिल्म में मैं स्टार सिस्टम को भेदना चाहता था। मैंने माही गिल को इस फिल्म का ऑफर दिया। वह जल्दी ही तैयार हो गई। जिमी शेरगिल से मेरा पुराना संबंध है। वे भी राजी हो गए। गैंगस्टर के रोल के लिए रणदीप हुडा को बुलाया। मैंने इस फिल्म को सीमित बजट में बनाया। मैंने पहली बार एलेक्सा कैमरा इस्तेमाल किया।

छोटी फिल्मों की मार्केटिंग और कलेक्शन के सवाल पर तिग्मांशु को गुस्सा आ जाता है। वे पूछते हैं, ‘80 करोड़ की किसी फिल्म के कलेक्शन से मेरी फिल्म की तुलना ट्रेड पंडित क्यों करते हैं? मेरी फिल्म तो 20 प्रतिशत बिजनेश कर भी अपनी कमाई कर लेती है। भाई 4-5 करोड़ के बिजनेश से भी मैं फायदे में आ जाता हूं, लेकिन ट्रेड पंडित लिखते और बताते हैं कि फलां छोटी फिल्म फ्लॉप हो गई। मेरा कहना है कि फिल्मों के टिकट रेट के साथ हिट-फ्लॉप का पैमाना भी बदलना होगा। इस बार देखना है कि क्या होता है?’The

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