मुझे हंसी-मजाक करने में मजा आता है-जूही चावला

-अजय ब्रह्मात्‍मज

कलर्स पर आज से बच्चों के लिए जूही चावला लेकर आ रही हैं 'बदमाश कंपनी'। शो में वह नजर आएंगी होस्ट की भूमिका में..

क्या है 'बदमाश कंपनी'?

'बदमाश कंपनी' का टाइटल मुझे अच्छा लगा है। शीर्षक से ही जाहिर है कि यह सीधा-स्वीट प्रोग्राम नहीं है। इसमें शरारत है। इस प्रोग्राम को देखते हुए आप हंसेंगे जरूर। बच्चे कभी-कभी अपनी बातों से हमें शर्मिदा या चौंकने पर मजबूर कर देते हैं। वे कुछ सोच कर वैसा नहीं बोलते। सच्चे मन से बोल रहे होते हैं। वे कभी-कभी ऐसी बातें बोल देते हैं, जो आप सोच भी नहीं सकते। जब वे थोड़े बड़े हो जाते हैं, तो फिर हम उन्हें अपनी तरह बना देते हैं। फिर वे सोच कर बोलते हैं और सही चीजें ही बोलते हैं।

आप इस 'बदमाश कंपनी' में क्या कर रही है?

आप मुझे उनके साथ प्रैंक करते देखेंगे। बंद कमरे में एक सेगमेंट है। फिर एक सेगमेंट बच्चों और पैरेंट्स का है। आपको लगता है कि आप अपने बच्चे को जानते हैं, तो फिर चेक कर लेते हैं कि आप कितना जानते हैं? छोटे-छोटे गेम्स होंगे और फिर हम बच्चों और पैरेंट्स से उनके बारे में पूछेंगे। हमने जवाब पहले से रिकार्ड कर लिए हैं। हम देखेंगे कि जवाब मिलते हैं कि नहीं?

किसी खास उम्र के ही बच्चे रहेंगे या खुली रहेगी यह बदमाश कंपनी?

इसमें मुख्यत: 4-8 साल आयु वर्ग के बच्चे आएंगे। कभी-कभी 9 साल के बच्चे भी होंगे। आठ साल से ज्यादा उम्र के बच्चे तो समझने लगते हैं। उनमें दुनियादारी की समझ विकसित होने लगती है। उनकी मासूमियत लगभग खत्म हो चुकी रहती है।

इस शो को स्वीकार करने की वजह क्या रही?

थोड़ी बदमाशी और थोड़ा फन है इसमें। मैं बच्चों के लिए कोई क्विज शो होस्ट नहीं कर सकती।.. और न ऐसा चाहूंगी कि उनसे केवल सवाल पूछती रहूं। इसमें केवल सरप्राइज है। एक एपिसोड में एक बच्चे को हमने सड़क पर भेज दिया। वह बड़ों से कुछ सवाल करता है। बड़ों को जवाब सुन कर आप हंसे बिना नहीं रहेंगे। यह एक सनसाइन शो है।

यह शो स्क्रिप्टेड है या फ्री किस्म का है?

हमने सिर्फ सेगमेंट डिसाइड किया है। बाकी बच्चों पर छोड़ दिया है। मौज-मस्ती के एपिसोड रहेंगे। सिर्फ बच्चे ही नहीं, कई बार बड़ों से सवाल भी करेंगे। किसी-किसी एपिसोड में हम होनहार बच्चे की खूबियों के बारे में बताएंगे।

आप के अंदर एक बच्चा दिखता है। इसे कैसे बचा रखा है?

मुझे हंसी-मजाक करने में मजा आता है। मेरा यह पहलू लोगों को याद रह जाता है। मेरी हल्की-फुल्की फिल्मों से यह इमेज बनी होगी। निजी जिंदगी में मैं भी भारी और मुश्किल स्थितियों से गुजरी हूं। मुझे अपने हिस्से की तकलीफें मिली हैं।

अभी का बचपन कितना अलग हुआ है?

अभी मीडिया एक्सपोजर बहुत ज्यादा है। बच्चों को पूरी नहीं, तो भी ढेर सारी चीजों की अधूरी जानकारियां हैं। उनके पास काफी सूचनाएं आ गई हैं। कई बार अपने बच्चों के साथ जब होती हूं, तो लगता है कि जब मैं सात-आठ साल की थी, तब मुझे उतना नहीं पता था, जितना वे जानते हैं। वे इस उम्र में जो किताबें पढ़ रहे हैं, उन किताबों को उनसे बड़ी उम्र में हमने पढ़ा था। मेरे समय की 7वीं-8वीं कक्षा की किताब आजकल 5वीं कक्षा में आ गई है। अपने बारे में कहूं, तो 8वीं-9वीं कक्षा के बाद पढ़ाई समझ में आई थी। उसके पहले, तो बस याद कर लेते थे।

कैसे संभालती हैं बच्चों को?

थोड़ी सावधानी रखती हूं। एक तो टीवी से दूर रखती हूं। मैं उनसे कहती हूं कि अपनी उम्र की चीजें देखो। मैं नहीं चाहती कि वे सारी हिंदी फिल्में देखें। हाल-फिलहाल में '3 इडियट' देखने भेजा था। उसमें पढ़ाई के बारे में एक अच्छी बात कही गई थी कि अपनी एक प्रतिभा पहचानो और उसे हासिल करो। मैं खुद उसमें यकीन करती हूं। जब तक मेरी देखभाल में है, तब तक तो ठीक रहें। मुझे याद है कि अपने बचपन में हम किराए पर सायकिल लेकर मुंबई के नवी नगर इलाके में सड़कों पर निकल जाते थे। आज तो मैं बच्चों को ऐसी इजाजत देने के बारे में कभी सोच भी नहीं सकती। डर रहेगा कि ये बच्चे लौट कर आएंगे कि नहीं?

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