पहला मंत्र है भाषा की समझ-अमिताभ बच्चन
उनकी कला और संवाद अदायगी की कायल है अभिनेताओं की नई पीढ़ी। क्या है इसका रहस्य, बता रहे हैं अमिताभ बच्चन..
अभिषेक समेत नई पीढ़ी के सभी कलाकारों में से कोई भी मुझसे कुछ पूछना, जानना या समझना चाहते हैं तो मैं सबसे पहले कहता हूं कि भाषा समझिए। अगर आपकी भाषा सही होगी तो कला अपने आप आ जाएगी। भाषा सही हो जाए तो शब्दों को आप सही तरीके से पढ़ तो सकते हैं। मैंने ऐसा देखा है कि आजकल की पीढ़ी को भाषा नहीं आती। हिंदी लिखना नहीं आता। हिंदी पढ़ना नहीं आता। पढ़ते भी है तो रोमन में पढ़ते हैं। कुछ तो वह भी नहीं पढ़ सकते। उनके असिस्टैंट पढ़ कर सुनाते हैं। मेरा मानना है कि भाषा पर अधिकार नहीं है तो आपकी कला और अभिनय क्षमता भी बिम्बित नहीं हो पाएगी। आप को पता ही नहीं चलेगा कि भाषा का क्या ग्राफ है? कहां पर उतार आएगा और कहां पर चढ़ाव आएगा? कहां आप रूक सकते हैं और कहां आप जोड़ सकते हैं?
भाषा का ज्ञान नहीं होने पर आप गुलाम हो जाते हैं ... आप लेखक और सहायक की तरफ मदद के लिए देखते हैं। मैं यह नहीं कहता कि लेखक ने गलत लिखा होगा। वे अच्छा लिखते हैं, लेकिन भाषा के जानकार होने पर आप संवाद के मर्म को अपने शब्दों में थोड़े अलग अंदाज में भी कह सकते हैं। आप ऐसा तभी कर सकते हैं, जब आप भाषा जानते हों। नई पीढ़ी के कलाकारों से यही दुख रहता है मुझे।
मैं नहीं कहता कि मेरी भाषा उत्तम है या मैं अपनी भाषा में सब कुछ जानता हूं। उसमें भी कमियां हैं। मैंने हमेशा यह प्रयत्न किया कि भाषा सही रखूं। अगर मैं उचित उच्चारण करूंगा तो उससे मेरा अभिनय भी निखरेगा। मेरे पास कई बार सहयोगी आते हैं कि सर, बारह पंक्तियों का संवाद है। इसे तोड़ देते हैं। छोटे-छोटे टुकड़ों में ले लेंगे। मैं कहता हूं, नहीं एक साथ लेंगे तो वे चौंकते हैं। आप बारह पंक्तियां साथ बोल दें तो तालियां बजने लगती हैं। अब इसमें ताली बजाने लायक क्या बात रहती है। अजीब सा लगता है। अभिनेता के लिए जो जरूरी है, वह कर दो तो भी तालियां बज जाती हैं!
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हिंदी भाषा को पुनः सम्मान दिलाने में आपके शो ''कौन बनेगा करोडपति ''का भी बहुत बड़ा योगदान है..इस योगदान के लिए धन्यवाद !