औन स्‍क्रीन ऑफ स्‍क्रीन : पुरजोर वाहवाही नहीं मिली रानी मुखर्जी को

सही मूल्यांकन से वंचित हैंबॉर्डर पर तैनात सैनिकों से मिलकर लौट रही मीरा हवाई जहाज से अपनी सीट पर खुद को व्यवस्थित कर रही है, तभी एक प्रशंसक ऊल-जलूल सवाल करता है। मीरा उसे आडे हाथों लेती है और जवाब में जो बोलती है, उससे न केवल वह व्यक्ति, बल्कि सिनेमा घर में बैठे दर्शक भी अवाक रह जाते हैं। एक बहस चलती है कि क्या ऐसे संवाद की जरूरत थी? रानी मुखर्जी ने तब कहा था कि उस किरदार के लिए ऐसा करना जरूरी था। मुझे लगता है कि यह संवाद स्क्रिप्ट का हिस्सा नहीं रहा होगा। शूटिंग के दौरान राजकुमार गुप्ता ने रानी मुखर्जी के व्यवहार और अंदाज को नोटिस किया होगा। उन्होंने यह संवाद तत्काल जोडा होगा और रानी ने इसे बोलने में कोई आनाकानी नहीं की होगी। रानी मुखर्जी किसी सोते या फव्वारे की तरह अचानक फूटती हैं। उनके चेहरे पर आ रहे भावों में व्यतिक्रम होना एक विशेषता है। अनौपचारिक बातचीत में भी वह विराम लेकर एकदम से नई बात कह देती हैं और फिर वहीं टिकी नहीं रहतीं। संभव है आप भौंचक रह जाएं।

छोटी सी बात का फसाना बन जाता है

आप कभी मिले हैं रानी मुखर्जी से? गांव-घर में ऐसी लडकियों को मुंहफट कहते हैं। उम्र के साथ वह अब थोडी शालीन और औपचारिक हो गई हैं। अन्यथा सेट पर, इवेंट में, इंटरव्यू के दौरान व अनौपचारिक मुलाकातों में इस रानी को देख कर आप उनके प्रशंसक हो जाएंगे। वह अपनी राय बेहिचक जाहिर करती हैं। दो टूक बोलना उनकी आदत है। इधर उन्होंने चुप रहना या यों कहें जवाब नहीं देना सीख लिया है। छोटी सी बात का अफसाना बना देते हैं लोग और रानी की कहानी में लोगों को कुछ ज्यादा ही इंटरेस्ट है, क्योंकि उन्हें रहस्यपूर्ण आदित्य चोपडा से जोडा जाता है। पिछले दिनों कॉफी विद करण में आदित्य और रानी के कॉमन फ्रेंड करण जौहर ने आदित्य के बारे में उनसे सीधे सवाल पूछे तो उन्होंने हां या ना कहने के बजाय स्पष्ट कहा कि मैं जवाब नहीं दूंगी। अब आप मतलब निकालते रहें।

हमारी आखिरी मुलाकात उनके जन्मदिन के कुछ दिनों पहले उनके आलीशान बंगले पर हुई थी। रानी की समकालीन अभिनेत्रियां अपार्टमेंट में रहती हैं, जबकि रानी ने जुहू में कृष्णा राम बंगले को अपनी रुचि से सजाया है। घर और दफ्तर को सजाने में सुजैन रोशन और ट्विंकल खन्ना ने उनकी मदद की है। कृष्णा उनकी मां हैं और राम पिता हैं। यहां उनका खाली समय भतीजी मायशा व उसके खिलौनों के साथ गुजरता है। करियर के इस मोड पर चुनिंदा फिल्मों, रोल व अन्य जिम्मेदारियों की प्रतीक्षा में उनका समय बीत रहा है। वह कहती हैं कि हीरोइनों की रैट रेस में मैं शामिल नहीं हूं, क्योंकि मैं कैट यानी बिल्ली हूं।

विफलता के बाद सफलता

फिल्मी पृष्ठभूमि से आती हैं रानी मुखर्जी काजोल व अयान मुखर्जी रिश्ते में उनके बहन-भाई हैं, देबाश्री राय मौसी हैं। पिता राम मुखर्जी डायरेक्शन में थे, मां कृष्णा गायिका थीं। राम मुखर्जी मुंबई के मशहूर मुखर्जी परिवार के सदस्य हैं, जिन्होंने अंधेरी में फिल्मालय स्टूडियो स्थापित किया था। रानी ने 1992 में महज 14 की उम्र में पहली बार कैमरा फेस किया था। पिता की फिल्म बियेर फूल में झलक दिखाने के बाद वह पढाई में लग गई थीं, लेकिन पारिवारिक मित्र सलीम अख्तर की नजर उन पर थी। उन्होंने रानी के लिए 1994 में आ गले लग जा फिल्म का ऑफर दिया। माता-पिता ने मंजूरी नहीं दी।

सलीम ने हार नहीं मानी। 1997 में उन्होंने राजा की आएगी बारात के लिए रानी मुखर्जी को राजी कर लिया। लॉन्चिंग का आज जैसा कोई हंगामा नहीं हुआ। फिल्म आई और सिनेमाघरों से उतर भी गई। रानी को देख कर इंडस्ट्री ने कोई उत्साह नहीं दिखाया। उनकी कद-काठी व आवाज को लेकर सभी के मन में शंकाएं थीं। माना गया था कि काजोल की देखा-देखी फिल्मों में आ रही रानी का भविष्य नहीं है।

बहरहाल, गुलाम में आमिर खान की संगत में रानी मुखर्जी में भारी बदलाव आया। अभिनय के प्रति अप्रोच बदला व अभिनय की तकनीकी जानकारी बढी। इस फिल्म के गीत आती क्या खंडाला ने उन्हें लोकप्रियता दी। आमिर के साथ फिल्म मिलते ही वह ए श्रेणी की अभिनेत्रियों में शामिल हो गई। अगली फिल्म कुछ-कुछ होता है में बहन काजोल और शाहरुख खान का साथ मिला। करण जौहर का पहला निर्देशकीय उत्साह भी काम कर रहा था। फिल्म के दौरान रानी एक बार विचलित भी हुई, जब उनकी खसखसाहट भरी आवाज को लेकर करण जौहर ने चिंता प्रकट की और डायलॉग किसी और की आवाज में डब करने का सुझाव दिया। रानी के लिए यह पहला क्रिएटिव झटका था। इसी ने उन्हें आत्म अन्वेषण के साथ सुधार और अभ्यास के लिए प्रेरित किया। उन्होंने ठान लिया और अपनी आवाज को साधा। बता दें कि कुछ-कुछ होता है के लिए रानी मुखर्जी को बेस्ट सपोर्टिग एक्टर का फिल्मफेयर अवार्ड मिला।

गलत फैसलों से सबक

.. इसके बाद रानी मुखर्जी को पीछे मुड कर देखने की जरूरत नहीं पडी, लेकिन लोकप्रियता और सम्मान ने उन्हें भटका दिया। अगले चार-पांच सालों में उन्होंने ज्यादातर गलत फिल्में कीं। ज्यादा से ज्यादा फिल्में करने के चक्कर में उनसे भूलें हुई और उनकी प्रतिष्ठा भी गिरी। मेंहदी, बादल, बिच्छू, हद कर दी आपने और कहीं प्यार न हो जाए उनकी ऐसी ही फिल्में हैं। यह भटकाव बस इतना सा ख्वाब है के बाद खत्म हुआ। इस फिल्म के दौरान उनकी अभिषेक बच्चन के साथ अंतरंगता बढी जो बंटी और बबली के समय जबर्दस्त केमिस्ट्री के रूप में पर्दे पर दिखी। हिंदी फिल्मों में हीरो-हीरोइन के बीच आत्मीय रिश्ते हों तो स्क्रीन पर उनका साथ अलग जादू करता है। इसी दौर में अभिषेक बच्चन से उनकी शादी की खबरें भी आई।

तारीफ से वंचित अभिनेत्री

रानी अपने दौर की ऐसी अभिनेत्री रही हैं, जिनकी प्रतिभा, खूबसूरती और प्रभाव को पुरजोर वाहवाही नहीं मिली है। समीक्षकों और इतिहासकारों ने उनके योगदान का समुचित मूल्यांकन नहीं किया है। वह प्रशंसा से वंचित रही हैं। शायद इसी कारण उनकी प्रतिक्रियाओं और बातों में एक तीक्ष्णता और शिकायत सुनाई पडती है। बस इतना सा ख्वाब है और कलकत्ता मेल के न चलने से इन फिल्मों में उन्हें सराहना नहीं मिल पाई। युवा और हम-तुम में उनके दो रंग दिखाई पडते हैं। वीर जारा की सामिया सिद्दीकी ही विकसित होकर नो वन किल्ड जेसिका की मीरा बनती है। दरअसल, गाने और रोमांस हिंदी फिल्मों की हीरोइनों को सीमित करते हैं। लोकप्रियता के दबाव में उन पर जोर डाला जाता है कि वे भावाभिव्यक्ति को भूल कर लोक-लुभावन अदाओं पर ध्यान दें। अगर रानी मुखर्जी की ब्लैक, कभी अलविदा न कहना, लागा चुनरी में दाग और सांवरिया को फिर से देखें तो उनमें खास स्पार्क नजर आएगा। अफसोस कि उस स्पार्क को हवा नहीं दी गई। रानी की प्रतिभा का भरपूर इस्तेमाल नहीं हो पाया है। उन्हें पर्याप्त भूमिकाएं और चुनौतियां नहीं मिल पाई हैं। समस्या यह भी है कि हिंदी फिल्मों की हीरोइन पर्दे पर 18 से 25 की उम्र ही जीती हैं, इस उम्र की भाव-भंगिमाओं की सीमा में किरदारों को गहराई तक ले जाने की गुंजाइश नहीं बनती। स्थिति बदल रही है धीरे-धीरे।

जिंदगी से सीखा बहुत-कुछ

रानी मानती हैं कि पिछले दस-बारह सालों में हिंदी फिल्मों में भारी बदलाव आया है, वह कहती हैं, मैंने जब शुरुआत की थी, तब मेरी ख्वाहिशें अलग थीं। अब फिल्म-मेकिंग बदल गई है। मेरी उम्र बढी है। जिंदगी ने तजुर्बा दिया है तो फिल्मों और काम के प्रति मेरा अप्रोच भी बदला है।

अभी मैं जिस स्थिति में हूं, वहां कोई हडबडी, चिंता और असुरक्षा नहीं है। आराम से फिल्में करती हूं। मेरे लिए स्थापित निर्देशक भी अधिक मायने नहीं रखते। मैंने इस साल राजकुमार गुप्ता की फिल्म की। जल्दी ही दूसरे युवा निर्देशकों के साथ काम करूंगी। रानी स्वीकार करती हैं कि पिछले दिनों उनके करियर में उतार आया और जिंदगी भी उलझी। दोनों के प्रभाव से उलझनें व मुश्किलें बढीं, लेकिन ऐसे ही वक्त में दोस्तों की पहचान होती है। परिवार तो हमेशा आपके साथ रहता है। मां-पिता, भाई और भतीजी मेरे जीवन के बडे संबल हैं। कुछ दोस्त हैं। स्कूल के दिनों के मेरे दोस्त रिअलिटी चेक देते हैं। वे बताते हैं कि मैं ही बेस्ट नहीं हूं। फिल्म इंडस्ट्री के दोस्तों में वैभवी मर्चेट और जयदीप साहनी का नाम लूंगी। पिछले दिनों मैंने सबक लिया कि फिल्म इंडस्ट्री के प्रतिद्वंद्वी मौका मिलते ही एक्टिव हो जाते हैं। इसलिए जरूरी है कि मीडिया और दर्शकों से रिश्ता बनाए रखो। चुप रहने और दूर रहने से गलतफहमी बढती है। अभी का दौर ऐसा है कि आप उपलब्ध हैं तो ठीक है, अन्यथा आप अपनी आइवरी टॉवर में बैठे रहें। मीडिया तो किसी और से काम चला लेगा।

अदाकारी में मेथड नहीं

रानी मुखर्जी ने अभिनय का प्रशिक्षण नहीं लिया है। छोटी उम्र से ही फिल्में मिलने लगीं, इसलिए फुर्सत नहीं मिली और जरूरत भी नहीं पडी। फिल्में करने के साथ निर्देशकों और कलाकारों की संगत में उन्होंने खुद को मांजा। रानी मुखर्जी की अदाकारी में कोई मेथड नहीं है। ब्लैक जैसी विशेष फिल्म की बात अलग थी। उसमें उन्हें गूंगी-बहरी मिशेल की भूमिका निभानी थी। साइन लैंग्वेज का अभ्यास करना था। बाकी फिल्मों में वह नॉर्मल लडकी नजर आती हैं।

नो वन किल्ड जेसिका के निर्देशक राजकुमार गुप्ता इस तथ्य की ताकीद करते हैं। उनके अनुसार, रानी में एक विलक्षण प्रतिभा है। वह कैरेक्टर की अतिरिक्त तैयारी नहीं करती। सेट पर आने से पहले या बाद में भी वह इसके लिए कभी परेशान नहीं रहतीं। लेकिन कैमरे के सामने बुलाते ही वह कैरेक्टर के मेंटल फ्रेम और स्पेस में आ जाती हैं। यह उनकी बहुत बडी खूबी है। वह सेट पर कुर्सी अलग कर या वैनिटी वैन में बैठकर कैरेक्टर में नहीं घुसी रहतीं।

नो वन किल्ड जेसिका के सेट पर उनका हंसी-मजाक चलता रहता था। कैमरा ऑन होते ही वह मीरा में तब्दील हो जाती थीं। दूसरी खूबी है कि वह सेट पर पॉजिटिव एनर्जी के साथ रहती हैं। उन्हें देखकर यूनिट के सदस्य प्रफुल्लित हो जाते हैं।

अफवाहों की परवाह नहीं

बीच में अफवाह फैली कि रानी अब केवल यशराज फिल्म्स के साथ ही काम करेंगी। आदित्य चोपडा के साथ नजदीकियों की खबर से इसे तूल मिला। एक बातचीत में रानी ने स्पष्ट किया, यह एक प्रतिद्वंद्वी अभिनेत्री की साजिश थी। उसने अपने संपर्क के पत्रकारों से मीडिया में यह बात फैलाई। मुझे पता है कि इंडस्ट्री में ऐसी बातें होती रहती हैं। मुझे ज्यादा फर्क नहीं पडता। सचमुच, रानी मुखर्जी घोर कमर्शियल से लेकर आर्ट हाउस फिल्में तक करने को तैयार हैं। इन दिनों वह अनुराग कश्यप के कैंप के करीब मानी जा रही हैं तो संजय लीला भंसाली उनके प्यारे निर्देशक हैं। वह कहती भी हैं कि संजय व अनुराग की अनबन से मुझे क्या मतलब? फिल्मों के प्रति उनके अप्रोच अलग हैं। मेरा क्या है? मुझे तो जो किरदार मिलेगा, उसके रंग में रंग जाऊंगी।

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