फिल्म समीक्षा : बोल
-अजय ब्रह्मात्मज
पाकिस्तान से आई परतदार कहानी
पाकिस्तानी फिल्मकार शोएब मंसूर की खुदा के लिए कुछ सालों पहले आई थी। आतंकवाद और इस्लाम पर केंद्रित इस फिल्म में शोएब मंसूर ने साहसी दृष्टिकोण रखा था। इस बार उनकी फिल्म बोल पाकिस्तानी समाज में प्रचलित मान्यताओं की बखिया उधेड़ती है और संवेदनशील तरीके से औरतों का पक्ष रखती है। बोल की कहानी परतदार है, इसलिए और भी पहलू जाहिर होते हैं। हिंदी फिल्मों जैसी निर्माण की आधुनिकता बोल में नहीं है, लेकिन अपने मजबूत विषय की वजह से फिल्म बांधे रखती है।
पार्टीशन के समय हकीम साहब का परिवार भारत से पाकिस्तान चला जाता है। वहां उन्हें पाकिस्तान छोड़ आए किसी हिंदू की हवेली में पनाह मिलती है, जिसमें दीवारों और छतों पर हिंदू मोटिफ की चित्रकारी है। हकीम साहब ने बेटे की लालसा में बीवी को बच्चा जनने की मशीन बना रखा है। उनकी चौदह संतानों में से सात बेटियां बचती हैं। रूढि़वादी हकीम साहब अपनी बेटियों को पर्दानशीं रखते हैं। उनकी अगली संतान उभयलिंगी पैदा होती है। बदनामी के डर से वे उसे किन्नरों को नहीं देते। उसे हवेली के एककमरे में बंद कर पाला जाता है। बड़ी बेटी जैनब को अपने अब्बा की हरकतें नागवार गुजरती है और वह बगावत कर बैठती है। वह मजहब के नाम पर चल रही रवायतों पर सवाल उठाती है और उनके साइंटिफिक एवं तार्किक जवाब देती है। लाजवाब होने पर उसके अब्बा हाथ उठा देते हैं। जैनब अपनी बहनों की आजादी के लिए आखिरकार भावावेश में अब्बा की हत्या कर देती है और बगैर सफाई दिए फांसी के तख्ते पर चढ़ना मंजूर करती है। फांसी चढ़ने से पहले वह पाकिस्तान के सदर से खास इजाजत लेकर मीडिया से मुखातिब होती है और अपना किस्सा बयान करती है। फ्लैशबैक में बनी यह फिल्म जैनब के दर्द को उसके सामाजिक परिवेश और पारिवारिक माहौल में पेश करती है।
बोल में जैनब की भूमिका हुमैमा मलिक ने निभायी है। उन्होंने शानदार अभिनय किया है। जैनब की तकदीफ और हिम्मत को उन्होंने पर्दे पर बखूबी उतारा है। हकीम साहब की भूमिका में मंजर सेहबाय ने भी जान डाल दी है। मशहूर गायक आतिफ असलम बोल में एक छोटी भूमिका में हैं। फिल्म पाकिस्तानी समाज के अन्य पहलुओं को भी चलते-चलते उजागर करती है। यह फिल्म टैक्स फ्री कर हिंदुस्तान के सभी दर्शकों को दिखानी चाहिए ताकि हम पाकिस्तान क े एक मुसलमान परिवार की व्यथा समझ सकें।
**** चार स्टार
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