फिल्म समीक्षा : खाप
ऑनर किलिंग का मुद्दा
पिछले कुछ समय से खबरों में आए खाप और ऑनर किलिंग के विषय पर अजय सिन्हा की खाप जरूरी मुद्दे का छूती है। उत्तर भारत के कुछ इलाकों में प्रचलित खाप व्यवस्था में जारी पुराने रीति-रिवाज को निशाना बनाती पर फिल्म बखूबी स्थापित करती है कि ऑनर किलिंग के नाम पर चल रहा अत्याचार एक जुर्म है। खाप की समस्या है कि कथ्य की आरंभिक सघनता बाद में बरकरार नहीं रहती। गांव से शहर आने के बाद कहानी की तीव्रता कम होती है। और मुद्दा हल्का हो जाता है।
अजय सिन्हा ने सिर्फ सगोत्र विवाह को ऑनर किंलिंग की वजह बताया है, जबकि ऑनर किलिंग ज्यादा बड़ी समस्या है। इसमें अमीर-गरीब, जातियों और धर्मो की भिन्नता आदि भी शामिल हैं। खाप पंचायतों के पक्ष में कही गई बातों से ऐसा लगता है कि निर्देशक संतुलन बनाने की कोशिश कर रहे हैं। फिल्म का कथ्य यहीं कमजोर पड़ जाता है। सामाजिक विसंगति पर आरंभ हुई फिल्म साधारण इमोशनल ड्रामे में बदल जाती है।
खाप मुख्य रूप से सहयोगी कलाकारों के दम पर टिकी है। ओम पुरी, गोविंद नामदेव और मनोज पाहवा ने अपने किरदारों को अच्छी तरह निभाया है। खास कर मनोज पाहवा का अभिनय उल्लेखनीय है। उन्होंने अपनी किरदार को अभिनय से ऊंचाई पर पहुंचा दिया है। प्रेमी युगल के रूप में सरताज और युविका चौधरी कोई प्रभाव नहीं छोड़ पाते। हालांकि निर्देशक ने उन्हें पर्याप्त दृश्य और संवाद दिए हैं, लेकिन उनकी असमर्थता साफ दिखती है। फिल्म में नाच-गाना और इंटरनेट प्रेम ठुंसा हुआ लगता है।
रेटिंग- **1/2 ढाई स्टार
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