ऑन स्‍क्रीन,ऑफ स्‍क्रीन : एक्टिंग की दीवानी प्रियंका चोपड़ा

एक्टिंग से इश्क हुआ प्रियंका को-अजय ब्रह्मात्‍मज

साल 2002.. मुंबई का फिल्मालय स्टूडियो.. सेट की तेज रोशनी और हडबडी-गडबडी के बीच चमकते दो नर्वस चेहरे.. मिस व‌र्ल्ड प्रियंका चोपडा और मिस यूनिवर्स लारा दत्ता..। सुनील दर्शन ने सत्र 2000 की सौंदर्य प्रतियोगिताओं की तीन में से दो विनर्स को हीरोइन के तौर पर साइन कर लिया था। उस दोपहर प्रियंका का साहस बढाने के लिए सेट पर मां मधु और पिता अशोक चोपडा थे। मां के सपनों को बेटी साकार कर रही थी। वह फिल्म की हीरोइन थी। मां-पिता के लिए बेटी की उपलब्धि मिस व‌र्ल्ड से भी बडी थी।

समझदारी भरे निर्णय

मां का सपना और विश्वास ही था कि वह अपना मेडिकल प्रोफेशन छोडकर बेटी के कारण मुंबई आ गई। बेटी ने भी उन्हें निराश नहीं किया। वह छलांगें मारती गई। राष्ट्रीय पुरस्कार समेत कई पुरस्कारों से सम्मानित हो चुकी प्रियंका लोकप्रियता और गंभीरता के बीच संतुलन बना कर चल रही हैं। वह जानती हैं कि समय के हिसाब से चलना जरूरी है। किसी ऐक्टर की अस्वीकृत फिल्मों की जानकारी हो तो उसके करियर का आकलन किया जा सकता है। एक उदाहरण दूं। प्रियंका ने अभिषेक बच्चन के साथ ब्लफ मास्टर की, उमराव जान छोड दी, फिर द्रोण की। मधुर भंडारकर के साथ फैशन की, हीरोइन करने से मना कर दिया। चुनाव-इंकार के ठोस कारण होते हैं।

जमशेदपुर में पैदा हुई, बरेली व अंबाला में पली-बढी प्रियंका के जीवन व करियर में छोटे शहर का जोश व जोखिम दोनों है। 16 की उम्र में मां के साथ मुंबई आना, 17 वें वर्ष में मिस व‌र्ल्ड बनने की खुमारी भविष्य चौपट कर सकती है। लेकिन उनका लक्ष्य स्पष्ट था। उनकी पहली फिल्म अंदाज थी, लेकिन सनी देओल के साथ बनी हीरो पहले रिलीज हुई। दो फिल्मों के बावजूद उनके करियर की नाव छिछले किनारे पर डगमगाती रही। ऐतराज व मुझसे शादी करोगी ने उन्हें मुख्य धारा में ला दिया। अब सूरत यह है कि वह तय करती हैं क्या करेंगी-क्या नहीं। मुझसे शादी करोगी और ऐतराज दोनों ही मेन स्ट्रीम कमर्शियल फिल्में थीं। इनसे प्रियंका को आवश्यक ग्लैमर व प्रचार मिला। ऐतराज में सोनिया राय की बोल्ड भूमिका में उनका एटीट्यूड किरदार को अलग आयाम देता है। इसमें अश्लीलता आने की पूरी संभावना थी, लेकिन प्रियंका ने दृश्यों की बोल्डनेस को किरदार के साहस में बदल दिया। उन्होंने ऐतराज की कामयाबी व वाहवाही को पर्दे पर रिपीट नहीं किया।

परिपक्वता व समझदारी

लडकियों के लिए प्रियंका कहती हैं, जिंदगी में करो या मरो जैसी स्थिति से बचना चाहिए। यह नहीं सोचना चाहिए कि फलां का साथ छूट गया या यह काम नहीं हुआ तो जिंदगी खत्म हो जाएगी। हर लडकी को आर्थिक आत्मनिर्भरता के बारे में सोचना चाहिए। मैंने जिंदगी में इसी को फॉलो किया और व्यावहारिक निर्णय लिए। भावनाओं में बहकर निर्णय लेने से पछतावा होता है। उनकी सलाह है, भावावेश या उत्तेजना में चुप होना बेहतर है। ठंडे दिल से निर्णय लें। मां-बाप, भाई-बहन, दोस्तों व सलाहकारों से बात करें। प्रियंका के मां-पिता शुरू से उनके संबल बने रहे। अभिभावकों का ऐसा सहयोग कम प्रतिभाओं को मिल पाता है।

प्रियंका भी अपने परिवार, परिजनों व सहयोगियों का पूरा खयाल रखती हैं। तीन साल पहले पिता की तबीयत खराब हुई तो वह काम की परवाह भूलकर उनकी देखभाल में लगी रहीं। भाई के करियर के लिए भी अकसर वह चिंता जाहिर करती हैं। पिछले 11 सालों के दुनियावी एक्सपोजर ने उन्हें अपनी उम्र से अधिक परिपक्व और समझदार बनाया है।

कॉलेज या कैंपस में रहने का उन्हें मौका नहीं मिला, इसलिए उस उम्र के किस्से ही उन्होंने सुने हैं। वह इसे मिस करती हैं। अब उन्होंने तय किया है कि साल के कुछ दिन सिर्फ मौज-मस्ती करेंगी। वह सलाहों पर गौर करती हैं। इन दिनों तो सहयोगियों से जरूरी पॉइंट नोट करना और याद दिलाने की ताकीद करना भी नहीं भूलतीं।

चुनौतियां और कमजोरियां

मैं यहां दो फिल्मों का नाम लेना चाहूंगा, हालांकि दोनों ही विफल रहीं। वॉट्स योर राशि व सात खून माफ में उनके अभिनय का रेंज दिखता है। 12 किरदार निभाना या सात पतियों के स्वभाव के अनुसार व्यवहार को बदलना कठिन है। आशुतोष गोवारीकर की वॉट्स योर राशि में प्रियंका ने 12 रूपों को चरितार्थ किया। अपनी पीढी की नायिकाओं में वह अकेली हैं, जिन्हें ऐसी चुनौतियां मिलीं। इंडस्ट्री में तो ऐसे अवसर भी नहीं मिलते। हालांकि उनकी 30 में से पांच-छह फिल्मों को ही दोबारा देखा जा सकता है। वह हिंदी ठीक बोलती-समझती हैं, लेकिन तेज बोलने के कारण उच्चारण दोषपूर्ण व अस्पष्ट लगता है। अगर संवाद अदायगी पर ध्यान दें, लहजे में ठहराव लाएं, विराम लेकर बोलें तो उनका अभिनय निखरेगा। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में दिलीप कुमार, अमिताभ बच्चन संवाद अदायगी के सर्वश्रेष्ठ उदाहरण हैं। अभिनेत्रियों में मधुबाला, मीना कुमारी, स्मिता पाटिल व शबाना आजमी की संवाद अदायगी कमाल की रही है। प्रियंका अपनी कामयाबी के कंफर्ट से बाहर निकलें और इनसे सीखें तो बतौर अभिनेत्री अपनी उम्र लंबी कर सकती हैं। निर्देशक-दर्शक उन्हें पसंद कर ही रहे हैं।

आसान नहीं रहीं राहें

उनके लिए सब कुछ इतना आसान भी नहीं रहा है। प्रतिद्वंद्वी अभिनेत्रियों ने उन पर फिकरे कसे। उनके रॉनेस पर छींटाकशी की गई। एक हीरोइन ने तो यहां तक कहा कि न जाने कहां-कहां से लडकियां हीरोइन बनने चली आती हैं। तानों की इस जहरीली चुभन को कोई आउटसाइडर ही समझ सकता है, जब पूरी तरह अंदर आने के पहले ही दरवाजे बंद करने की कोशिश की जाती है। ऊपरी तौर पर ऐसा लगता है कि फिल्म इंडस्ट्री में सभी के लिए जगह है, लेकिन सच्चाई यह है कि जगह बनानी पडती है। उसके लिए मेहनत के साथ अपमान-ताने सहने को भी तैयार रहना पडता है। प्रियंका मेहनत व लगन से इन परीक्षाओं से गुजरी हैं। इस लगन को वह इश्क का नाम देती हैं। कहती हैं, एक्िटग से मुझे इश्क हो गया है। अब इश्क कैसा भी हो, अपने साथ आग का दरिया लाता ही है।

नामों से परेशान

प्रियंका स्वीकार करती हैं कि फिल्मों में आने की ललक बचपन में ही पैदा हो गई थी। छोटी थीं तो सभी की नकल करती थीं। कोई डकार भी ले तो वैसा ही करने की कोशिश करती थीं। इसी कारण सब उन्हें मीठू कहने लगे थे। तुतलाने की वजह से वह ठीक उच्चारण नहीं कर पाती थीं, इसलिए उनका नाम मीठू से बदलकर मिनी कर दिया गया। अभिषेक बच्चन उन्हें पिगीचॉप्स कहते हैं। यह नाम भी उनके साथ चिपक गया है। वह अपने ऐसे नामों से काफी परेशान रहती हैं।

वह अभी अनुराग बसु की बर्फी में रणबीर कपूर के साथ आने वाली हैं तो कुणाल कोहली की अनाम फिल्म में शाहिद कपूर के साथ दिखेंगी। शाहरुख खान के साथ डॉन-2 और रितिक रोशन के साथ अग्निपथ की शूटिंग लगभग पूरी हो चुकी है। वह कृष 2 और दोस्ताना-2 में भी दिखेंगी। कहते हैं कि उनका करियर पूरी तरह से उठान पर है।

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रोचक और अच्छा विश्लेषण .....!

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