फिल्‍म समीक्षा : देल्‍ही बेली

चौंकाती है इसकी भाषा

देल्ही  बेली: चौंकाती है इसकी भाषा-अजय ब्रह्मात्‍मज
ताशी, अनूप और नितिन तीन दोस्त हैं। दुनिया से बगाने और अपने काम से असंतुष्ट.. गरीबी उनकी जिंदगी पर लदी हुई है। पुरानी दिल्ली के जर्जर से किराए के कमरे में रहते हुए किसी तरह व अपने सपनों को पाल रहे हैं। अचानक उनकी जिंदगी में ऐसी आंधी आती है कि उससे बचने की कोशिश में वे तबाही के करीब पहुंच जाते हैं। मौत के चंगुल से निकलने के लिए वे कामन सेंस का इस्तेमाल करते हैं। उनकी इस फटेहाल और साधारण सी जिंदगी को लेखक अक्षत वर्मा और निर्देशक अभिनय देव ने हूबहू पर्दे पर उतार दिया है। ये साधारण किरदार आसाधारण स्थितियों में फंसते हैं और हमें उनकी बेचारगी पर हंसी आती है। आमिर खान के स्पर्श ने इस फिल्म को अनोखा बना दिया है। मूल रूप से अंग्रेजी में बनी यह फिल्म भारतीय सिनेमा में एक नई शुरुआत है। निश्चित ही इसकी कामयाबी एक नए ट्रेंड को जन्म दगी, जिसके परिणाम से मुंबई की हिंदी फिल्म इंडस्ट्री प्रभावित होगी।

भारतीय सिनेमा के आम दर्शकों पर इसका शॉकिंग असर होगा, क्योंकि उन्होंने न तो फिल्मों में ऐसी भाषा सुनी है और न ऐसे दृश्य देखे हैं। अभी तक हम गालियों के इस्तेमाल से उद्वेलित होते रहे हैं। इसमें गाली के साथ गलीज दृश्य भी हैं। लेखक-निर्देशक ने क्रिएटिव शिष्टता का पालन नहीं किया है। कहा जा रहा है कि आज के युवा दर्शकों की रुचि और शैली को इस फिल्म में अभिव्यक्ति मिली है। देल्ही बेली बदले दौर की फिल्म है और मुख्य रूप से शहरी युवकों को लक्ष्य कर बनाई गई है। हालांकि इसे हिंदी में भी डब किया गया है और इस उम्मीद के साथ अंग्रेजी और हिंदी दोनों भाषाओं में रिलीज किया गया है कि व्यापक दर्शकों तक फिल्म पहुंचे।

भाषा और दृश्यों की नवीनता के साथ देल्ही बेली की चुस्त एडीटिंग और गति सोचने और पलक झपकाने का मौका नहीं देती। फिल्म देखते हुए कुछ भी अविश्वसनीय नहीं लगता, जबकि फिल्मी फार्मूलों और नाटकीयता का भरपूर इस्तेमाल किया गया है। लेखक-निर्देशक ने बड़ी चालाकी के साथ पारंपरिक शैली और शिल्प का उपयोग किया है। उन्होंने परंपरागत किरदारों को नया लुक और लैंग्वेज दे दिया है। हमें लगता है कि हम कुछ नया देख रहे हैं, जबकि फिल्म सोच और निर्वाह में किसी साधारण फिल्म की तरह रूढि़वादी, घिसी-पिटी और ट्रेडिशनल है। फिल्म को पेश करने में कास्मेटिक बदलाव लाया गया है और यही देल्ही बेली की खासियत बन गई है।

कुणाल राय कपूर और वीर दास अपनी भूमिकाओं में प्रभावित करते हैं। उनकी वैशाखी पर इमरान खान भी चल जाते हैं। ताशी के किरदार में इमरान अभिनय की पूरी रंगत नहीं दिखा पाए हैं। पूर्णा जगन्नाथन और विजय राज भी अच्छे लगते हैं। फिल्म का गीत-संगीत प्रचार में अश्लील और आक्रामक लग रहा था। फिल्म में उनका बैकग्राउंड में संयमित उपयोग किया गया है।

देल्ही बेली आमिर खान के सधे हाथों में होने के कारण अपने प्रभाव से उतनी खतरनाक नहीं है, लेकिन निश्चित ही इसके प्रभाव में आई अगली फिल्में भ्रष्ट हो सकती हैं। हिंदी सिनेमा में आए इस नए विस्तार का स्वागत करते हुए भी मैं सशंकित हूं। कहीं गलत ट्रेंड की पहली फिल्म न हो जाए देल्ही बेली?

*** 1/2 साढ़े तीन स्टार

Comments

Anonymous said…
सवाल ये है कि हम हिंदी वालों को (तमिलियन होते तो कोई समस्या नहीं थी) कौन सी फ़िल्म देखनी चाहिए?
यह फिल्म लीक से हट कर है.. तो अपुन ज़रूर देखेंगे !
अजय जी बौलिवुडिया सिनेमा कि भाषा शैली और भारतीय समाज कि जीवन शैली में अंतर निरंतर बढ़ता जा रहा है | आम हिंदी भाषी समाज इन ऊट पटांग भाषाओँ के साथ जीता तो जरूर है, पर अपने सपने सौम्य ही सजाता है | वास्तविक्ता ये है कि समाज बादल रहा है, पर समाज में गालियाँ और द्विअर्थी संवाद तब भी प्रचलन में थे जब मदर इंडिया और जिस देश में गंगा बहती है जैसी फिल्मे बना करती थी, ये बात और है कि तब कोस्मो पोलिटन जनरेशन नहीं पैदा हुई थी | आमिर खान कुछ नया करने के लिए जाने जाते है, कह सकते हैं कि इस बार उन्होंने ये फिल्म मल्टीप्लेक्स से भी आगे बढ़ कर कॉस्मिकप्लेक्स के लिए बनायीं है | हिंदी के सुधि दर्शक (हिंदी प्रदेश के युवा दर्शक) तो आज भी दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे, तेरे नाम, कहो ना प्यार है, दिल तो पागल है और वीर जारा पर अपनी जान छिड़कता है | मै समझता हु कि कोई भी सिंसियर लड़का अपनी गर्लफ्रेंड को लेकर ऐसी ऊट पटांग फिल्म तो नहीं देखने जायेगा | लेकिन क्या पता जनरेशन चेंज हो चुकी है.!!
Udan Tashtari said…
देखते हैं यह मूवी....परंपरायें तो ऐसे ही बनती हैं अच्छी/बुरी दोनों...
Swapnil said…
I went to Delhi Belly this Sunday | 10:00 am show | Very highly recommended movie | A lot of people liked it, and recommended it.

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My experience:

1. For some time, found it naughty and entertaining with all its jokes, and the way the three friends live – pretty close to actual Delhi Belly Student Residences.

2. After that, it just became a sequence of events that were
2.1: Easily guessed by most of the audience before they happened
2.2: Just very loosely written – bahut jhol tha picture mein

3. After that, it became so boring that I actually started answering work emails from within the theatre.

4. After that, in the end, the song by Amir was liked by most audience, but I find that Aamir has used a lot of make-up and very little skill of acting to do his stuff there. I am sure Amir is capable of pulling off such a song with much more beauty.

naah! wont’ recommend further.

Cheers,
Swapnil
Anonymous said…
iss film ke wajah se ek samasya ho sakti hai ki, aage ki filme english me banani lage aur hindi filmo ka antt ho jaaye. Agar ye traned chal gaya to hamare jaise hindi darshak ke liye bhojpuri filme hi bachengi...

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