चवन्नी पर बोधिसत्व

बोधिसत्‍व की यह टिप्‍पणी मैंने 3 सितंबर 2007 को पोस्‍ट की थी। आज चवन्‍नी का आखिरी दिन है,लेकिन चवन्‍नी चैप आप की वजह से चलता रहेगा।

चवन्नी को बोधिसत्व की यह टिपण्णी रोचक लगी.वह उसे जस का तस् यहाँ यहाँ प्रस्तुत कर खनक रहा है।आपकी टिपण्णी की प्रतीक्षा रहेगी.- चवन्नी चैप
चवन्नी खतरे में है। कोई उसे चवन्नी छाप कह रहा है तो कोई चवन्नी चैप। वह दुहाई दे रहा है और कह रहा है कि मैं सिर्फ चवन्नी हूँ। बस चवन्नी। पर कोई उसकी बात पर गौर नहीं कर रहा है। और वह खुद पर खतरा आया पा कर छटपटा रहा है। यह खतरा उसने खुद मोल लिया होता तो कोई बात नहीं थी। उसे पता भी नहीं चला और वह खतरे में घिर गया। जब तक इकन्नी, दुअन्नी, एक पैसे दो पैसे , पाँच, दस और बीस पैसे उसके पीछे थे वह इतराता फिरता रहा।उसके निचले तबके के लोग गुम होते रहे, खत्म होते रहे फिर भी उसने उनकी ओर पलट कर भी नहीं देखा। वह अठन्नी से होड़ लेता रहा। वह रुपये का हिस्सेदार था एक चौथाई का हिस्सेदार। पर अचानक वह खतरे के निशान के आस-पास पाया गया। उसे बनाने वालों ने उसकी प्रजाति की पैदावार पर बिना उसे इत्तिला दिए रोक लगाने का ऐलान कर दिया तो वह एक दम बौखला गया। बोला बिना मेरे तुम्हारा काम नहीं चलेगा। पर लोग उसके गुस्से पर मस्त होते रहे। निर्माताओं की हँसी से उसको अपने भाई-बंदों के साथ हुए का अहसास हुआ।अब चवन्नी के गिरने की आवाज बहुत धीमी हो गई है। वह पैर के पास गिरता है तो भी पता भी नहीं चलता। कभी-कभी तो उसे गिरता जान कर जेब खुश होती है कि अच्छा हुआ यह गिर गया। बेवजह मुझे फाड़ने पर लगा था। चवन्नी को ज्यादा दुख इस बात का भी है कि उसे गिरा पाकर कोई खुश नहीं होता। ताँबे का होता तो बच्चों के करधन और गले में नजरिया बन कर बचा लेता खुद को। जस्ते का होता तो बरतन बन कर घरों में घुस लेता। पता नहीं किस धातु से बनाया उसको बनाने वालों ने। वह बार-बार खुद को खुरच कर देखता है और समझ नहीं पाता कि किस मिट्टी का बना है वह।उसे भारत के देहातों ने पहले दुत्कारा। फिर शहरों ने । फिर सबने। वह बेताब होकर एक अच्छी खबर के लिए तरस रहा है। और उसके लिए मुंबई से एक अच्छी खबर है भी। यहाँ की बसों में उसके होने को मंजूरी दे दी गई है। और दक्षिण भारत के किसी मंदिर से उसे और अठन्नी को हर महीने करोड़ो की संख्या में लाया जाएगा। पर उसे बहुत राहत नहीं है। वह अपने नये चमकीले साथियों को न पाकर दुखी है। वह अपनी प्रजाति के पैदाइश पर रोक से हताश है। वह रातों में सोते से जाग उठता है, कि कहीं कल बसों में उसकी खपत बंद हो जाए तो। असल में वह खत्म नहीं होना चाहता । उसे इतिहास में नहीं मौजूदा समाज में अपनी जगह चाहिए। जेबों में गुल्लकों में अपनी खनक सुनना चाहता है चवन्नी। वह अपनों के बीच रहना चाहता है। पर कोई उसके होने और रोने पर विचार ही नहीं कर रहा। कोई उसकी नहीं सुन रहा जबकि वह काफी काम की बात करता सोचता है। उसके विचार अच्छे हैं, उसका नजरिया अच्छा है और उसकी, बातें, बेचैनी और दुख अपने से लगते हैंदोस्तों अपने चवन्नी को देखें- पढ़ें। उसे खुशी होगी और आप को संतोष । चवन्नी इतिहास नहीं वर्तमान में जिंदा रहेगा। हमारे आपके बीच उसकी खनक रहेगी। और खनक हमेशा अच्छी ही होती है अगर उसमें खोट ना हो।

Comments

.हिरदय से जाओगी तो निरदय जानूँगों तोय
जा न सकोगी तुम, चवन्नी तुम बहुत याद आओगी,
हम तुम्हें पाई और कौड़ी के समान जीवित रखेंगे ।
Arvind Mishra said…
चवन्नी चैप -संभवत चवन्नी छाप का अंग्रेजियत बोध-रूप और "चवन्नी छाप से' इंगित हेयता बोध का का आवरण !
यही न ? मुझे तो चवन्नी छाप ही पसंद है -अब तो इसका विंटेज वैल्यू भी बढ़ता जाएगा !
क्या ख़याल है ?
sir sahi kaha apne chavanni bhale hi chali gai hai hamare beech se lekin vo ab bhi zinda hai yadon ke roop mein..chavanni chap ke roop me.(aur hamare blog ke ek kone se bhi chavanni jhank rahi hai chavanni chap ki oor)

Popular posts from this blog

तो शुरू करें

फिल्म समीक्षा: 3 इडियट

सिनेमालोक : साहित्य से परहेज है हिंदी फिल्मों को