एक हैं के बालाचंदर

मिला मेहनत का फल-अजय ब्रह्मात्‍मज

हिंदी फिल्मों के दर्शकों को फिल्म एक दूजे के लिए अवश्य याद होगी। कमल हासन और रति अग्निहोत्री की इस फिल्म की लव स्टोरी ने दर्शकों को अलग किस्म का आनंद दिया था। दक्षिण के लड़के और उत्तर भारत की लड़की की इस प्रेमकहानी में दोनों संस्कृतियों की भिन्नता के साथ विशेषताओं को साथ रखते हुए के बालाचंदर ने रोचक तरीके से कमल हासन और रति अग्निहोत्री को पेश किया था। इसके पहले की हिंदी फिल्मों में दर्शकों ने दक्षिण भारत के चरित्रों को सहयोगी और हास्यास्पद भूमिकाओं में ही देखा था। हर संवाद के आगे-पीछे अई यई यई ओ.. बोलते ये पात्र अपनी लुंगी संभालने में ही वक्त बिताते थे। खास कर महमूद ने इनकी इमेज बिगाड़ कर रख दी थी, जबकि पड़ोसन में उन्होंने उसे फिल्म का पैरेलल किरदार बनाया था। बहरहाल, के बालाचंदर की इस प्रस्तुति को हिंदी दर्शकों ने पसंद किया। कमल हासन उसके चहेते बन गए। के बालाचंदर की दूसरी फिल्म जरा सी जिंदगी भी दर्शकों ने पसंद की थी। बाद में दक्षिण की फिल्मों में अपनी व्यस्तता और हिंदी फिल्मों की ट्रेडिशनल लॉबी की राजनीति की वजह से उन्होंने हिंदी फिल्मों से किनारा कर लिया। उनके प्रिय स्टार कमल हासन भी दक्षिण लौट गए।

के बालाचंदर को इस साल का दादा साहेब फाल्के पुरस्कार मिला है। यह पुरस्कार फिल्मों में अप्रतिम योगदान के लिए दिया जाता है। के बालाचंदर ने अपने लेखन और निर्देशन से तमिल सिनेमा को हर लिहाज से समृद्ध किया। उन्होंने तमिल के साथ तेलुगू, कन्नड़ और हिंदी में भी फिल्में निर्देशित कीं। फिल्मों से समय निकालकर टीवी के लिए भी वे काम करते रहे। कुछ लोग मानते हैं कि अगर कोई व्यक्ति ज्यादा काम करता है तो उसके काम की क्वालिटी पर असर पड़ता है। के बालाचंदर इस धारणा को झुठलाते हैं। उन्होंने निरंतर काम किया और हमेशा औसत से बेहतर उनका प्रदर्शन रहा।

7 जुलाई 1930 को तमिलनाडु के तंजावुर जिले के एक गांव में पैदा हुए के बालाचंदर का पूरा नाम कैलाशम बालाचंदर है। बीएससी की पढ़ाई करने के बाद वे नौकरी करने लगे, लेकिन उन्होंने अपने मित्रों के साथ एक नाट्य मंडली बनाई और नाटकों का मंचन करते रहे। उनके नाटकों में मुख्य रूप से मध्यवर्गीय परिवारों की कहानियां रहती थीं। आजादी के बाद के उभरते मध्यवर्ग को अपनी ये कहानियां पसंद आई। के बालाचंदर इतने मशहूर और व्यस्त हुए कि उन्होंने नौकरी छोड़ने का मन बना लिया। समस्या एक ही थी कि क्या फ्रीलांसिंग से परिवार का खर्च चलाया जा सकता है? तमिल फिल्मों के अनेक निर्माता और स्टार उनके साथ काम करने के लिए तैयार थे। वे चाहते थे कि के बालाचंदर उनके साथ जुड़ें। एक निर्माता ने तो उन्हें दो सालों के नियमित वेतन तक के लिए आश्वस्त किया। यह निर्माता की उदारता से अधिक के बालाचंदर की योग्यता का संकेत देती है।

के बालाचंदर की पारखी नजर कलाकारों के चुनाव में नजर आती है। उन्होंने अपनी फिल्मों में अनेक नए चेहरों को पेश किया, जो बाद में तमिल सिनेमा के स्टार बने। उनमें से कमल हासन, रजनीकांत और प्रकाश राज को हिंदी फिल्मों के दर्शक भी जानते हैं। सुजाता, जय गणेश और विवेक को दक्षिण के दर्शक अच्छी तरह पहचानते हैं। के बालाचंदर की फिल्मों में मुख्य रूप से पारिवारिक और प्रेम संबंधों की ही कहानियां मिलती हैं। पिछले पांच दशकों के सफर में उनकी बेसिक शैली में ज्यादा फर्क नहीं आया। जब उन्होंने देखा कि फिल्मों का माहौल एकदम बदल गया है तो उन्होंने टीवी के जरिये अपनी कहानियां सीरियलों में कहनी शुरू कर दीं। तकनीक और स्टाइल से अधिक वे भाव और भावनाओं पर ध्यान देते रहे। वे कभी स्टारों पर निर्भर नहीं रहे। अगर उनके खोजे स्टारों ने अपनी व्यस्तता की वजह से उन्हें समय नहीं दिया तो उन्होंने एक नया अभिनेता या अभिनेत्री की खोज कर ली। सचमुच सधा फिल्मकार किसी स्टार पर निर्भर नहीं करता।

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