फिल्‍म समीक्षा : दम मारो दम

दम मारो दम: पुराना कंटेंट, नया  क्राफ्ट पुराना कंटेंट, नया क्राफ्ट

-अजय ब्रह्मात्‍मज

निर्देशक और अभिनेता की दोस्ती और समझदारी से अच्छी फिल्में बनती हैं। दम मारो दम भी अच्छी है, अगर अभिषेक बच्चन की पिछली फिल्मों की पृष्ठभूमि में देखें तो दम मारो दम अपेक्षाकृत अच्छी फिल्म है। रोहन सिप्पी ने अभिषेक बच्चन का बेहतर इस्तेमाल किया है। अन्य फिल्मों की तरह यहां वे बंधे, सिकुड़े, सिमटे और सकुचाए नहीं दिखते। स्क्रिप्ट की अपनी सीमा में उन्होंने निखरा प्रदर्शन किया है। उन्हें सहयोगी कलाकारों का अच्छा साथ मिला है। इसके बावजूद यह फिल्म कई स्तरों पर निराश करती है। दम मारो दम माडर्न मसाला फिल्म है, जिसमें पुराने फार्मूले की छौंक भर है।

फिल्म में तीन मुख्य किरदार हैं, जो वास्तव में एक ही कहानी के हिस्से हैं। तीन कहानियों को एक कहानी में समेटने की संरचना अलग होती है। इस फिल्म में एक ही कहानी को टुकड़ों में बांट कर फिर से बुना गया है। लेखक और निर्देशक की कोशिश इसी बहाने क्राफ्ट में कमाल दिखाने की हो सकती है, लेकिन अगर यह विष्णु कामथ की सीधी कहानी के तौर पर पेश की जाती तो प्रभावशाली होती। विष्णु कामथ अपनी जिंदगी में सब कुछ खो चुका पुलिस अधिकारी है। सब कुछ से यहां मतलब परिवार है। हताशा की कगार पर पहुंचे विष्णु कामथ को गोवा में मादक पदार्थो के धंधे को रोकने की चुनौती के रूप में एक मकसद मिलता है। इस मकसद के लिए वह अपनी जान की परवाह नहीं करता। लॉरी और जोकी इस धंधे को समझाने के दो किरदार हैं। बाकी एक ड्रग लॉर्ड है, जिसे आठवें-नौवें दशक के खलनायकों की तरह खूंखार दिखाने की कोशिश भर की गई है। चूंकि ड्रग लॉर्ड बिस्किट की भूमिका निभा रहे आदित्य पंचोली कमजोर अभिनेता हैं, इसलिए यह किरदार भी कमजोर हो गया है।

फिल्म नई सोच की है। हीरो, हीरोइन, जीत, हार के पारंपरिक ढांचे में न होने की वजह थोड़ी बिखरी, अधूरी और ढीली लगती है। हमें आदत है हीरो और विलेन को लड़ते देखने की। नए किस्म के किरदारों पर अधिक मेहनत नहीं की गई है, इसलिए वे कनविंसिंग नहीं लगते। जोकी और लॉरी को आधे-अधूरे ढंग से पेश किया गया है। अभिनेताओं की बात करें तो प्रतीक की मौजूदगी भर ही अच्छी लगती है। उन्हें अभी बहुत सीखना है। राणा दगुबटी अच्छे लगे हैं, लेकिन उन्हें ज्यादा विस्तार नहीं मिला है। बिपाशा बसु चलताऊ और उन्होंने उसे उसी तरीके से निभा दिया है। आयटम गीत मिट जाए गम में दीपिका के लटकों-झटकों में दम नहीं है। संवाद चुटीले ओर आज की लैंग्वेज में हैं।

रेटिंग- तीन स्टार

Comments

amitesh said…
ऐसा लग रहा है जैसे आप उलझन में हैं, और फ़िल्म औसत है यह कहने से बचना चाह रहें हैं. रोहन सिप्पी जब अभिषेक बच्चन से काम करा सकते हैं तो पंचोली अभिषेक से अच्छे अभिनेता है.
Anonymous said…
दम मारो दम भी अच्छी है….

इसके बावजूद यह फिल्म कई स्तरों पर निराश करती है

हीरो, हीरोइन, जीत, हार के पारंपरिक ढांचे में न होने की वजह थोड़ी बिखरी, अधूरी और ढीली लगती है।

नए किस्म के किरदारों पर अधिक मेहनत नहीं की गई है, इसलिए वे कनविंसिंग नहीं लगते।

आयटम गीत मिट जाए गम में दीपिका के लटकों-झटकों में दम नहीं है।

Incase you are not sure about the film, write clearly that it is not good.

Incase you are not sure about yourself, please stop this chavanni chaap critics. You are not contributing to Cinema by writing.
chavannichap said…
फिल्‍म को अव्‍छी या बुरी के कैटेगरी में ही देखने के आदी हैं तो मैंकुछ नहीं कर सकता। यहां उसकी कमियों केसाथ नवीनता की भी बात की गई है।
Anonymous said…
Hi chawanni chap
apun to saala sadak chap hai!
Waise kehne wale apun ko JHAKJHAKIYA V kehte bolte hai;)
Wo ka kehte hai ki.
"I like u"
sachinkej@yahoo.co.in

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