फिल्म समीक्षा : चलो दिल्ली
* मध्यवर्ग के मूल्य, आदर्श, प्रेम और उत्सवधर्मिता से बहुत कुछ सीखा जा सकता है। चलो दिल्ली में निर्देशक शशांत शाह की यह कोशिश रंग लाई है। उन्होंने इस संदेश के लिए एक उच्चवर्गीय और एक मध्यवर्गीय किरदार के साथ जयपुर से दिल्ली का सफर चुना है।
*मनु गुप्ता दिल्ली के चांदनी चौक के निवासी हैं। मनु गुप्ता की करोलबाग में लेडीज आयटम की दुकान है। वे गुटखे के शौकीन हैं और धारीदार अंडरवियर पहनते हैं। मिहिका बनर्जी मुंबई की एक कारपोरेट कंपनी की मालकिन हैं, जिनके अधीन 500 से अधिक लोग काम करते हैं। वह आधुनिक शहरी कारपोरेट कन्या हैं, जिनकी हर बात और काम में सलीका है।
*बात तब बिगड़ती है, जब दोनों परिस्थितिवश एकही सवारी से जयपुर से दिल्ली के लिए निकलते हैं। मनु गुप्ता के लिए कोई भी घटना-दुर्घटना कोई बड़ी बात नहीं है, जबकि मिहिका बनर्जी हर बात पर भिनकती और झिड़कती रहती है। अलग-अलग परिवेश और उसकी वजह से भिन्न स्वभाव के दो व्यक्तियों का हमसफर होना ही हंसी के क्षण जुटाता है।
*जयपुर से दिल्ली के सफर में कई ब्रेक लगते हैं। मनु और मिहिका को इलाके में प्रचलित हर सवारी का सहारा लेना पड़ता है। हम इसी बहाने राजस्थान दर्शन भी करते जाते हैं। रास्ते में मिले लोगों से यह अंदाजा लगता है कि ज्यादातर भ्रष्ट, अपराधी और कुकर्मी हैं। एक ढाबा मालिक ही नेक स्वभाव के मिलते हैं। अपनी सुविधा के लिए सभी राहगीरों को निगेटिव छवि देना ठीक बात नहीं है।
*विनय पाठक इस फिल्म में भेजा फ्राय वाले फार्म में हैं। ऐसे रोल में वे जंचते हैं। अपने भाव और अंदाज से वे मनु गुप्ता के किरदार को बखूबी निभाते हैं। मिहिका बनर्जी के रोल में लारा दत्ता ने उनसे तालमेल बिठाने की भरपूर कोशिश की हैं। वह एक हद तक सफल रही हैं। कहीं-कहीं वह किरदार से बाहर निकल कर लारा दत्ता बन जाती हैं। अब इतनी छूट तो देनी पड़ेगी, क्योंकि वह निर्माताओं में से एक हैं।
*फिल्म के क्लाइमेक्स में एक सरप्राइज भी है। उस के बारे में यहां लिखना ठीक नहीं होगा। और हां, एक पॉपुलर स्टार भी स्वाभाविक रूप में दिखते हैं। वे इस विशेष भूमिका में अपनी पिछली फ्लॉप फिल्मों से बेहतर फार्म में हैं। हल्के-फुल्के अंदाज में बनी यह फिल्म हृषीकेष मुखर्जी और बासु चटर्जी के मिडिल सिनेमा की याद दिलाती है।
रेटिंग- *** तीन स्टार
Comments
waise kaam accha karte hai karte rahiye
sachin
jhakjhakiya