बातचीत में आत्मकथा ए आर रहमान की
-अजय ब्रह्मात्मज
इंटरनेट पर अलग-अलग जानकारियां पढ़ने को मिल जाएंगी कि उनका नाम एआर रहमान कैसे पड़ा और पर्दे की दुनिया से उनके जीवन की सच्ची कहानी क्या है? रहमान बताते हैं कि सच है कि अपना यह नाम उन्हें कभी पसंद नहीं आया और उन्हें इसका कारण भी नहीं मालूम? वह बताते हैं कि बस मुझे अपने नाम की ध्वनि अच्छी नहीं लगती थी। उनके मुताबिक महान अभिनेता दिलीप कुमार के प्रति उनका कोई अनादर नहीं है। उन्हें लगता था कि उनकी खुद की छवि के अनुरूप उनका नाम नहीं था। सूफी मत का अनुकरण करने से कुछ समय पहले वह लोग एक ज्योतिषी के पास बहन की जन्मपत्री लेकर गए थे, क्योंकि मां उसकी शादी कर देना चाहती थी। यह उसी समय की बात है, जब वह अपना नाम बदलना चाहते थे और इस बहाने एक नई पहचान पाना चाहते थे। ज्योतिषी ने उनकी तरफ देखा और कहा, इस व्यक्ति में कुछ खास है। उन्होंने अब्दुल रहमान और अब्दुल रहीम नाम सुझाया और कहा कि दोनों में से कोई भी नाम उनके लिए बेहतर रहेगा। उन्हें रहमान नाम एकबारगी में पसंद आ गया। यह भी एक संयोग ही था कि एक हिंदू ज्योतिषी ने उन्हें यह मुस्लिम नाम दिया था। फिर उनकी मां चाहती थी कि वह अपने नाम में अल्लाहरखा जोड़ें। इसका मतलब होता है ऐसा व्यक्ति जो ईश्वर द्वारा रक्षित है। इस तरह उनका नाम एआर रहमान हो गया। यह असामान्य नाम है। वह बताते हैं कि वर्ष 1991 में जब अपनी पहली फिल्म रोजा के लिए मैंने काम शुरू किया तो खयाल आया कि फिल्म और अलबम के क्रेडिट में मेरा नया नाम जाए तो बेहतर हो सकता है। मेरे परामर्शदाता मणि रत्नम और रोजा के निर्माता के बालाचंदर इस प्रस्ताव पर सहज ही राजी हो गए। यह तो एक सवाल का जवाब है और इससे हमें सीधे शब्दों में पूरी जानकारी मिल जाती है कि पहले के दिलीप कुमार का नाम कैसे बाद में एआर रहमान पड़ा। नसरीन मुन्नी कबीर के सवालों में ठोस जिज्ञासा के साथ यह कोशिश भी जुड़ी दिखती है कि जवाबों से रहमान का जीवन क्रम भी बनता जाए। हालांकि नसरीन ने इसे बचपन से अभी तक के सफर के कालक्रम में नहीं रखा है, फिर भी एआर रहमान से उनकी अंतरंग बातचीत में जीवन की झलक मिल ही जाती है। नसरीन कबीर ने उनसे जुड़े सभी असमंजस को साफ करने की कोशिश करती हैं। एआर रहमान के जीवन प्रसंगों की अस्पष्टता इस पुस्तक की बातचीत से खत्म होती है। एआर रहमान के प्रशंसकों, फिल्म संगीत प्रेमियों और फिल्मी हस्तियों में रुचि रखनेवाले पाठकों के लिए यह एक रुचिकर और बेहतरीन पुस्तक है जिसे पढ़ा जाना चाहिए। नसरीन मुन्नी कबीर हिंदी फिल्मों, फिल्म कलाकारों और फिल्म विधा पर नियमित रूप से गवेषणात्मक और गंभीर काम कर रही हैं। वह पॉपुलर कल्चर के प्रभाव से परे जाकर उन बारीक रेखाओं और बिंदुओं पर नजर डालती हैं, जिनसे कोई तस्वीर बनती है। उनकी हर किताब हिंदी फिल्म के इतिहास के किसी पहलू, व्यक्ति या प्रसंग का क्लाजेअप शॉट होता है। उनकी हर पुस्तक में विस्तृत और गहरी विवेचना पढ़ने को मिलती है, जो उनकी लेखन कला के साथ-साथ एक व्यक्तिगत खूबी भी है। वह अनावश्यक विश्लेषण और चीरफाड़ नहीं करतीं। उनकी हर पुस्तक पढ़ने पर ऐसा लगाता है कि अब इस विषय पर इससे ज्यादा जानने की जरूरत नहीं रह गई है। नसरीन मुन्नी कबीर चाहतीं तो एआर रहमान की जीवनी लिख सकती थीं, लेकिन उन्होंने इसे सवाल-जवाब के ढांचे तक ही सीमित रखना ज्यादा उचित समझा। वैसे एआर रहमान संकोची और शर्मीले स्वभाव के व्यक्ति हैं। उनके जवाब कई बार संक्षिप्त और अस्पष्ट होते हैं। प्रचलित फिल्मी इंटरव्यू को वह एक जरूरी काम के तौर पर निबटाते हैं। इस पुस्तक की बातचीत में रहमान शॉर्टकट नहीं लेते और जवाब देने में कोई संकोच भी नहीं दिखते। उन्होंने पिता, मां, पत्नी, बच्चों समेत अपने दोस्तों और हलीबुल्लाह स्ट्रीट के उस घर की भी बात की है, जिसकी छतें चूती थीं। घर के बारे में सोचने पर उन्हें अपना वहीं घर याद आता है। इस पुस्तक में रहमान ने दार्शनिक बनने या अपने अतीत के प्रति नॉस्टेलजिक होने की भी कोशिश नहीं की है। चूंकि हर जवाब में उनके ही शब्द और भाव हैं, इसलिए इस पुस्तक को प्रश्नोत्तरी आत्मकथा कहा जा सकता है। एआर रहमान ने फिल्म संगाीत पर विस्तृत जवाब दिए हैं। वह फिल्म संगीत में आई नई ध्वनियों की पृष्ठभूमि और परिस्थितियों के बारे में भी विस्तार से बताते हैं। इस प्रयत्न में उन्होंने अपने समकालीनों और पूर्वजों के प्रति कहीं भी अनादर व्यक्त नहीं किया है। वह अपनी श्रेष्ठता स्थापित नहीं करते, बल्कि उनकी श्रेष्ठता जाहिर हो जाती है। उन्होंने फिल्मों के बैकग्राउंड स्कोर (पार्श्व संगीत) पर अपनी फिल्मों के संदर्भ व उदाहरणों से सप्रसंग बातें की हैं। निश्चित ही इस पुस्तक को पढ़ने के बाद उन फिल्मों को देखने का आनंद बढ़ जाएगा। ए आर रहमान-द स्पिरिट ऑफ म्यूजिक हमारे वर्तमान के एक सक्रिय और सफल संगीतकार की साधना, सफलता और सफर का विवरण है। उन्हीं के शब्दों में इसे पढ़कर यह अहसास होता है कि रहमान हमीं से बातें कर रहे हैं और हमें सब कुछ बता रहे हैं। इस पुस्तक के साथ उनकी आठ संगीत रचनाओं की एक ऑडियो सीडी भी है
Comments
बेहतरीन प्रस्तुति !
पुस्तक के प्रकाश्क ्के नाम का जिक्र भी यदि होता, तो हम जैसे कस्बाई चरित्र के पाठकों को पुस्तक प्राप्त करने में आसानी होती ।
मुझे समझ नहीं आता आखिर क्यों यहाँ ब्लॉग पर एक दूसरे के धर्म को नीचा दिखाना चाहते हैं? पता नहीं कहाँ से इतना वक्त निकाल लेते हैं ऐसे व्यक्ति. एक भी इंसान यह कहीं पर भी या किसी भी धर्म में यह लिखा हुआ दिखा दें कि-हमें आपस में बैर करना चाहिए. फिर क्यों यह धर्मों की लड़ाई में वक्त ख़राब करते हैं. हम में और स्वार्थी राजनीतिकों में क्या फर्क रह जायेगा. धर्मों की लड़ाई लड़ने वालों से सिर्फ एक बात पूछना चाहता हूँ. क्या उन्होंने जितना वक्त यहाँ लड़ाई में खर्च किया है उसका आधा वक्त किसी की निस्वार्थ भावना से मदद करने में खर्च किया है. जैसे-किसी का शिकायती पत्र लिखना, पहचान पत्र का फॉर्म भरना, अंग्रेजी के पत्र का अनुवाद करना आदि . अगर आप में कोई यह कहता है कि-हमारे पास कभी कोई आया ही नहीं. तब आपने आज तक कुछ किया नहीं होगा. इसलिए कोई आता ही नहीं. मेरे पास तो लोगों की लाईन लगी रहती हैं. अगर कोई निस्वार्थ सेवा करना चाहता हैं. तब आप अपना नाम, पता और फ़ोन नं. मुझे ईमेल कर दें और सेवा करने में कौन-सा समय और कितना समय दे सकते हैं लिखकर भेज दें. मैं आपके पास ही के क्षेत्र के लोग मदद प्राप्त करने के लिए भेज देता हूँ. दोस्तों, यह भारत देश हमारा है और साबित कर दो कि-हमने भारत देश की ऐसी धरती पर जन्म लिया है. जहाँ "इंसानियत" से बढ़कर कोई "धर्म" नहीं है और देश की सेवा से बढ़कर कोई बड़ा धर्म नहीं हैं. क्या हम ब्लोगिंग करने के बहाने द्वेष भावना को नहीं बढ़ा रहे हैं? क्यों नहीं आप सभी व्यक्ति अपने किसी ब्लॉगर मित्र की ओर मदद का हाथ बढ़ाते हैं और किसी को आपकी कोई जरूरत (किसी मोड़ पर) तो नहीं है? कहाँ गुम या खोती जा रही हैं हमारी नैतिकता?
मेरे बारे में एक वेबसाइट को अपनी जन्मतिथि, समय और स्थान भेजने के बाद यह कहना है कि- आप अपने पिछले जन्म में एक थिएटर कलाकार थे. आप कला के लिए जुनून अपने विचारों में स्वतंत्र है और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में विश्वास करते हैं. यह पता नहीं कितना सच है, मगर अंजाने में हुई किसी प्रकार की गलती के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ. अब देखते हैं मुझे मेरी गलती का कितने व्यक्ति अहसास करते हैं और मुझे "क्षमादान" देते हैं.
आपका अपना नाचीज़ दोस्त रमेश कुमार जैन उर्फ़ "सिरफिरा"