फिल्मों का सेंसर बोर्ड

फिल्मों का सेंसर बोर्डहम केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड को ही सेंसर बोर्ड के नाम से जानते हैं। इस बोर्ड की मुख्य जिम्मेदारी फिल्मों और दूसरे ऑडियो विजुअल सामग्रियों के प्रदर्शन का सर्टिफिकेट देना है। मुंबई समेत देश के कई शहरों में इसके दफ्तर हैं, जहां निर्माता बोर्ड के अधिकारियों के समक्ष अपनी फिल्मों को दिखाकर उनके प्रदर्शन का सर्टिफिकेट लगते हैं। फिल्म के कंटेंट के आधार पर अभी फिल्मों को यू (यूनिवर्सल), ए (एडल्ट), यूए (पैरेंटल गाइडेंस) या एस (स्पेशल) सर्टिफिकेट दिए जाते हैं। सेंसर बोर्ड के अधिकारी सुनिश्चित दिशानिर्देशों को ध्यान में रखते हुए तय करते हैं कि किसी फिल्म को क्या सर्टिफिकेट दिया जाए। अगर उन्हें कुछ आपत्तिजनक लगता है तो उसे फिल्म से निकालने या काटने की सलाह देते हैं। हम सभी सेंसर कट शब्द से भी परिचित हैं। कट आने या न आने पर ही विवाद होते हैं। सेंसर बोर्ड अपने गठन के बाद से कमोबेश यह जिम्मेदारी निभाता रहा है। कभी-कभी सेंसर बोर्ड के फैसलों और रवैयों को लेकर विवाद होते रहे हैं। फिल्म इंडस्ट्री का एक तबका सेंसर बोर्ड को गैरजरूरी मानता है। उसके मुताबिक फिल्ममेकर समझदार होते हैं। हमें सेल्फ सेंसरशिप की नीति अपनानी चाहिए।

बहरहाल, सेंसर बोर्ड इस बार अलग कारणों से चर्चा में है। शर्मिला टैगोर का कार्यकाल समाप्त हो गया। उनकी जगह लीला सैमसन को लाया गया है। लीला सैमसन भरतनाट्यम की नृत्यांगना हैं। उनकी नियुक्ति पर सवाल उठाए जा रहे हैं कि लीला सैमसन का फिल्मों से कोई नाता नहीं रहा है, फिर उन्हें ऐसी जिम्मेदारी सौंपने का क्या तुक है? निस्संदेह वे प्रवीण नृत्यांगना हैं और चेन्नै स्थित कलाक्षेत्र को उन्होंने अच्छी तरह संभाला है। संगीत नाटक अकादमी में भी उनके कार्यो की प्रशंसा की गई है। अपनी इन खूबियों के बावजूद क्या वे फिल्म जैसे पापुलर मीडियम की एक संस्था को ढंग से संभाल पाएंगी? दरअसल, फिल्मों को लेकर जब विवाद उठते हैं तो वे काफी संवेदनशील और दूरगामी प्रभाव के होते हैं। सेंसर बोर्ड का अध्यक्ष एक स्तर पर सरकार का प्रतिनिधि और प्रवक्ता भी होता है। उसकी परीक्षा विवादों के समय ही होती है। शर्मिला टैगोर और उनके पहले के अध्यक्षों को कई बार पब्लिक और मीडिया का निशाना बनना पड़ा था। सेंसर बोर्ड का अध्यक्ष दोतरफा आलोचना का शिकार होता है। उसे फिल्म बिरादरी की नाखुशी और पब्लिक की आपत्ति एक साथ झेलनी पड़ती है। लीला सैमसन की योग्यता से इनकार नहीं किया जा सकता। उन्होंने देश-विदेश में इसके प्रमाण भी दिए हैं। समर्थकों की राय में सेंसर बोर्ड का दैनिक कार्य तो उसके अधिकारी ही करते हैं। केवल नीतिगत फैसलों और अहम मुद्दों के समय अध्यक्ष की दरकार पड़ती है, इसलिए लीला को कोई दिक्कत नहीं होगी। सार्वजनिक जीवन और प्रबंधन के अपने अनुभवों से वे सेंसर बोर्ड में भी सफल होंगी। सेंसर बोर्ड पर उनकी नियुक्ति पर फिल्मकार मुजफ्फर अली की प्रतिक्रिया गौरतलब है कि फिल्में अंतिम संस्कार के लिए सेंसर बोर्ड में जाती हैं। अगर लीला भी दो-चार मंत्र पढ़ लेंगी, तो क्या बन या बिगड़ जाएगा? यह प्रतिक्रिया सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष की भूमिका जाहिर कर देती है। लीला ने अभी पिछले हफ्ते ही कार्य संभाला है। अभी तो कोई ऐसी फिल्म आए, जो सेंसर बोर्ड में फंसे या उसकी वजह से विवादास्पद हो। फिर समझ में आएगा कि लीला सैमसन अपने सामान्य ज्ञान और कौशल का सही इस्तेमाल कर पा रही हैं या नहीं?

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