क्रिकेट और सिनेमा
'अजय ब्रह्मात्मज
क्या कभी ऐसा भी होगा कि किसी फिल्म की पूर्वघोषित रिलीज की तारीख देख कर क्रिकेट वर्ल्ड कप या आईपीएल के आयोजक अपने मैच की तारीख बदल दें या उस तारीख को पहले ही से कोई मैच न रखें? फिलहाल इसकी कोई संभावना नहीं बनती, क्योंकि हम देख रहे हैं कि क्रिकेट मैचों के डर से फिल्मों की रिलीज आगे-पीछे खिसकाई जा रही हैं। इस साल 19 फरवरी को वर्ल्ड कप आरंभ हुआ। उसके ठीक एक दिन पहले विशाल भारद्वाज की फिल्म 7 खून माफ रिलीज हुई। फिल्म को दर्शकों ने माफ नहीं किया। कुछ ट्रेड पंडितों और प्रियंका चोपड़ा को लगता है कि वर्ल्ड कप ने उनके दर्शकों को घरों में बांध लिया। हालांकि इस धारणा का कोई प्रमाण नहीं है, फिर भी हर फ्लॉप के दस कारण होते हैं। वर्ल्ड कप तो एक ठोस कारण बनता है। इस धारणा को इस तथ्य से बल मिलता है कि उसके बाद केवल चार मार्च को तनु वेड्स मनु ही रिलीज हो पाई। वैसे वर्ल्ड कप के दरम्यान इस फिल्म का कारोबार औसत से बेहतर रहा। इस फिल्म के चलने से 7 खून माफ के पक्ष में वर्ल्ड कप का कारण थोड़ा कमजोर हो जाता है।
7 खून माफ और तनु वेड्स मनु के विपरीत बिजनेस के बावजूद सच यही है कि वर्ल्ड कप ने हिंदी फिल्मों के कारोबार पर ओलों की बौछार कर दी। मैंने सुना और पढ़ा कि दूसरी भाषाओं की फिल्मों की स्थिति भी अच्छी नहीं रही। तमिल और तेलुगू भाषाओं की फिल्में भी रिलीज के लिए जमा हो गई हैं। हिंदी में वर्ल्ड कप समाप्त होने के पहले एक अप्रैल को गेम और फालतू रिलीज हो रही हैं। इन्हें वर्ल्ड कप के फाइनल की मार शनिवार को झेलनी होगी, लेकिन उसके बाद के पांच दिन इन्हें व्यापार के लिए मिल जाएंगे, बशत्र्ते दर्शकों को दोनों फिल्में पसंद आएं। अभी से कुछ भी कह पाना मुश्किल है। हां, फिल्में न चलने पर अभिषेक बच्चन और जैकी भगनानी वर्ल्ड कप के फाइनल का बहाना गढ़ सकते हैं। फिल्में चल गई, तो वाशु भगनानी सबसे ज्यादा खुश होंगे। वे बीवी नंबर 1 के उदाहरण में फालतू को जोड़ते हुए समझाएंगे कि फिल्में वर्ल्ड कप में भी चलती हैं।
दरअसल, भारतीय समाज में क्रिकेट और सिनेमा जनमानस के लिए मनोरंजन के सबसे सस्ते साधन हैं। दोनों की लोकप्रियता असंदिग्ध है। दोनों में दर्शकों की प्राथमिकता आंक पाना मुश्किल है। चूंकि फिल्में सालों भर रिलीज होती हैं और उन्हें बाद में भी देखा जा सकता है, इसलिए क्रिकेट मैच के सामने दर्शक सिनेमा को दरकिनार कर देते हैं। उनके इस रवैये को देखते हुए निर्माता और वितरक डर जाते हैं। वे बड़ी और अच्छी फिल्मों को भी रिलीज करने का रिस्क नहीं लेते। पिछले कुछ सालों से यह देखने में आ रहा है कि ज्यादातर पॉपुलर स्टारों की फिल्में दूसरी छमाही में रिलीज होती हैं। गौर करें, तो 19 फरवरी से 2 अप्रैल के बीच तो फिल्में रिलीज नहीं हो सकीं, लेकिन निर्माता आईपीएल के मैचों के दौरान मजबूरन अपनी फिल्में रिलीज कर रहे हैं। अनुमान है कि अप्रैल और मई में लगभग 28 फिल्में रिलीज होंगी। दो महीनों में 9 शुक्रवारों को आ रही 28 फिल्मों के हश्र का अनुमान लगाया जा सकता है। ये फिल्में आपस में ही लड़ेंगी और एक-दूसरे को नुकसान पहुंचाएंगी। बेहतर होगा कि अगले साल से निर्माता क्रिकेट से डरना छोड़ें और दर्शकों की प्राथमिकता पर यकीन करते हुए अपनी फिल्में रिलीज करें। आखिरकार तनु वेड्स मनु का उदाहरण हमारे सामने है। फिल्म अच्छी होगी, तो जरूर चलेगी।
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