डायरेक्टर डायरी : सत्यजित भटकल (22अप्रैल)
डायरेक्टर डायरी – 9
22 अप्रैल
अखबार पढ़ने के लिए सुबह-सवेरे जगा। रिव्यू पढ़ने से पहले तनाव में हूं। स्वाति को जगाया। उसने नींद में ही पढ़ने की कोशिश की। मैं पेपर छीन लेता हूं। टाइम्स ऑफ इंडिया ने हमें 3 स्टार दिए हैं और अच्छी समीक्षा लिखी है। ठीक है, पर दिल चाहता है कि थोड़ा और होता।
सुबह से नेट पर हूं। अपनी फिल्म के रिव्यू खोज रहा हूं। हालीवुड रिपोर्टर ने मिक्स रिव्यू दिया है, लेकिन कुल मिलाकर ठीक है। वैरायटी अमेरिकी फिल्म बाजार का बायबिल है। उसमें खूब तारीफ छपी है। और क्या चाहिए? भारतीय समीक्षाएं उतनी उदार नहीं हैं। कुछ तो बिल्कुल विरोधी हैं। इन सभी को पचाने में वक्त लगेगा।
मैं थिएटर के लिए निकलता हूं। सस्ते थिएटर जेमिनी में 50 दर्शक हैं... ज्यादा नहीं है, पर शुक्रवार की सुबह के लिहाज से कम नहीं कहे जा सकते। इंटरवल और फिल्म खत्म होने के बाद हम कुछ बच्चों और उनके अभिभावकों से बातें करते हैं । उन्हें फिल्म पसंद आई है। चलो अभी तक ठीक है। हम पीवीआर फीनिक्स जाते हैं। 250 रुपए का टिकट है। ज्यादा दर्शक नहीं हैं, लेकिन बच्चे और उनकी मम्मियों को फिल्म अच्छी लग रही है।
शाम होने तक थक गया हूं। भावनात्मक उछाल जारी है। खुद से वादा करता हूं कि कल ‘जोकोमोन’ का आखिरी दिन होगा। यह लंबी और थकान भरी यात्रा थी। मैंने फिल्म और खुद के प्रति ईमानदार रहने की पूरी कोशिश की। इसका मतलब यह भी है कि अब इस सफर का अंत आ गया है।
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