डायरेक्टर डायरी : सत्यजित भटकल (18अप्रैल)
डायरेक्टर डायरी – 7
18 अप्रैल
हम दिल्ली निकलते हैं। आकाश से मुंबई झोंपड़पट्टियों का हुजूम लगती है। दुनिया में ऐसा कोई शहर नहीं है। भारत में भी नहीं है... मुंबई का आकाशीय दर्शन अवसाद से भर देता है। फिर भी यह देश के मनोरंजन उद्योग का केंद्र है। निश्चित ही यह महज संयोग नहीं हो सकता।
हम नोएडा के एक स्कूल में जाते हैं। दर्शील को बच्चे घेर लेते हैं। मुझे भी बच्चों ने घेर लिया है... अजीब लगता है। बच्चे एकदम से अपरिचित चेहरे से ऑटोग्राफ मांग रहे हैं। मैं अब भीड़ की मानसिकता पर संदेह करने लगा हूं... खासकर स्कूलों की भीड़।
रात में दोस्तों के साथ डिनर करता हूं। मेरा ड्रायवर मुझे नोएडा में छोड़कर निकल जाता है। अब मेरे दोस्त को डिनर के बाद 50 किलोमीटर की ड्रायविंग का आनंद उठाना होगा। किनारों पर लगे पेड़ों वाली चौड़ी सड़क, चौड़ा फुटपाथ, हर मोड़ पर फुलवारी... मेरी मुंबइया आंखों को दिल्ली किसी और देश का शहर लगता है।
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