डायरेक्टर डायरी : सत्यजित भटकल (16 अप्रैल)
डायरेक्टर डायरी – 5
16 अप्रैल 2011
एक हफ्ते के अंदर फिल्म रिलीज होगी। पिछली रात फोन आया कि होर्डिंग लग गए हैं। स्वाति मुझे और बच्चों से कहती है कि हमलोग चलें और बांद्रा वेस्ट में लगी होर्डिंग देख कर आए। शाम का समय है और सड़क पर भारी ट्रैफिक है, लेकिन बच्चे उत्साहित हैं। मेरी बेटी आलो अपना नया कैमरा ले लेती है और हम निकलते हैं। सड़क पर भारी ट्रैफिक है। मेरा बेटा निशांत कार्टर रोड पर बॉस्किन रॉबिंस आइस्क्रीम, डूनट आदि खाने की फरमाईश करता है... तर्क है कि हमें सेलिब्रेट करना चाहिए। सड़क की ट्रैफिक में कार के अंदर बहस चल रही है कि होर्डिंग देखने के बाद हम किस आइसक्रीम पार्लर जाएंगे। 20वें मिनट पर मैं किसी सुपरहीरो की तरह उड़़ कर होर्डिंग तक पहुंच जाना चाहता हूं। उसे लगा देना चाहता हूं। काश!
ट्रैफिक की भीड़ और कार में प्रतिद्वंद्वी आइस्क्रीम पार्लरों पर चल रही बच्चों की बहस की गर्मी के बावजूद होर्डिंग की पहली झलक का जादुई असर होता है। सुंदर तरीके से डिजायन की गई होर्डिंग बस स्टाप पर लगी है। ‘बैकलिट’ रोशनी से चमकीला प्रभाव पड़ रहा है। पब्लिक ट्रांसपोर्ट मुझे कभी इतना रोमांटिक नहीं लगा। खयाल आया... ‘युवा प्रेमी टेक्स्ट करेंगे... सी यू एट जोकोमोन बस स्टॉप’।
होर्डिंगमें सबसे ज्यादा अनरियल क्या था? उस पर मेरा नाम लिखा था। पहले के कामों के लिए अखबारों में मेरा नाम खूब छपा था। फिर भी मैं स्वीकार करूंगा कि सार्वजनिक स्पेस में अपना नाम देखना अनरियल और लार्जर दैन लाइफ एहसास देता है। यह भारत के लिए क्रिकेट टेस्ट मैच खेलने जैसा है। आप सेंचुरी मारें या जीरो पर आउट हों, लेकिन आप इतिहास का हिस्सा हो गए। बच्चों ने बस स्टॉप पर मुझे खड़ा कर दिया है। वे ‘जोकोमोन’ के साथ मेरी तस्वीरें उतार रहे हैं... मानो में भी उस होर्डिंग का हिस्सा हूं।
लौटते समय हमलोग विशालकाय होर्डिंग देखते हैं... 50 फीट ऊंची... और उसी अनुपात में मेरा नाम..
मैं भयभीत हूं!
Comments
jokoman
darne se kaam nahi chalta yaha ha ye alag baat hai ki daar mujhe bhi lagta hai aur inshaan ko darna bhi chahiye par jyada darna khatarnaak ho jaata hai.
JHAKJHAKIYA;)