फिल्म समीक्षा : आई एम्...
पहचान से जूझते किरदार -अजय ब्रह्मात्मज *इस फिल्म के लिए पैसे चंदे से जुटाए गए हैं। आई एम.. क्राउड फंडिंग से बनी भारत की पहली फिल्म है। ओनिर और संजय सूरी की मेहनत और कोशिश और एक्टरों के समर्थन से फिल्म तो बन गई। अब यह ढंग से दर्शकों के बीच पहुंच जाए तो बात बने। यहीं फिल्म के ट्रैडिशनल व्यापारी पंगा करते हैं। *आई एम .. लिंग, जाति, धर्म और प्रदेश से परे व्यक्ति के पहचान और आग्रह की फिल्म है। हम अपनी जिंदगी में विभिन्न मजबूरियों की वजह से खुद को एसर्ट नहीं करते। अपना आग्रह नहीं रखते और पहचान के संकट से बिसूरते रहते हैं। *आई एम.. में आशु उर्फ अभि (संजय सूरी) से सारे किरदार जुड़ते हैं, लेकिन वे एक कहानी नहीं बनते। नैरेशन का यह शिल्प नया और रोचक है। *आफिया, मेघा, अभिमन्यु और ओमर के जरिए ओनिर ने आधुनिक औरत के मातृत्व के आग्रह, कश्मीर से विस्थापित पंडित के द्वंद्व, सौतेले पिता के शारीरिक शोषण की पीड़ा और वैकल्पिक सेक्स की दिक्कतों के मुद्दों को संवेदनशील तरीके से चित्रित किया है। फिल्म में इन मुद्दों के ग्राफिक विस्तार में गए बिना ओनिर संकेतों और प्रतीकों में अपना मंतव्य रखते हैं। वे...