फिल्म समीक्षा:ये साली जिंदगी
नए प्रकार का हिंदी सिनेमा आकार ले रहा है। इस सिनेमा के पैरोकारों में सुधीर मिश्र का नाम अग्रिम रहा है। इस रात की सुबह नहीं से लेकर हजारों ख्वाहिशों ऐसी तक उन्होंने कथ्य, शिल्प और प्रस्तुति में हिंदी फिल्मों के दर्शकों को झकझोरा है। ये साली जिंदगी में उनकी कुशाग्रता अधिक तीक्ष्ण हो गई है। यह फिल्म सतह पर उलझी और बेतरतीब नजर आती है, लेकिन इसकी अनियंत्रित और अव्यवस्थित सी पटकथा में एक तारत्म्य है। यह फिल्म निश्चित ही दर्शकों से अतिरिक्त ध्यान और एकाग्रता की मांग करती है।
दिल्ली के अरुण और कुलदीप छोटे-मोटे क्रिमिनल हैं। अपराध ही उनका पेशा है। सामाजिक जीवन में हम ऐसे किरदारों को ज्यादा करीब से नहीं जानते। उनकी गिरफ्तारी और कारनामों से सिर्फ यही पता चलता है कि वे अपराधी हैं। इन अपराधियों के जीवन में भी कोमल कोने होते हैं, जहां प्यार और एहसास के बीज अंकुरित होते हैं। ये साली जिंदगी में अरुण और कुलदीप अलग-अलग ठिकानों से यात्रा आरंभ करते हैं और अपहरण की एक घटना से जुड़ जाते हैं। उनकी जिंदगी में प्रीति और शांति की बड़ी भूमिका है। अपनी प्रेमिका और बीवी के लिए वे अपराध में धंसते हैं और अपनी चूकों से अपराध में लथपथ होते हैं। अपनी चाहत और मोहब्बत के लिए वे जिंदगी को दांव पर लगाने से गुरेज नहीं करते। इश्क के लिए बुलेट भी स्वीकार है। आशिक तो आशिक होता है, अगर वह अंडरवर्ल्ड, अंडरबेली और सतह के नीचे का बाशिंदा हो तो उसकी मोहब्बत अधिक रोमांचक हो जाती है। अपनी जिंदगी को लेकर उनके मुंह से गाली निकलती है, लेकिन ये साली जिंदगी को कौन छोड़ता है.. सभी इसे भरपूर जीना चाहते हैं।
सुधीर मिश्र ने फिल्म की कथा और किरदारों की तीक्ष्णता को देखते हुए शिल्प में प्रयोग किया है। फुर्सत से एकरेखीय कहानी के आदी दर्शकों को हैरत हो सकती है कि आखिर सुधीर मिश्र क्या दिखाना और बताना चाहते हैं? वास्तव में यह फिल्म अपने किरदारों की तरह ही व्यवस्थित ढांचे का पालन नहीं करती। उनकी अस्त-व्यस्त जिंदगी की तरह ही फिल्म की कहानी में घटनाएं एक-दूसरे से जुड़ी नजर नहीं आती, लेकिन जरा दूर या ऊपर से देखें तो इस भूलभुलैया में भागते सभी किरदारों को बांधे तार को देखा और समझा जा सकता है। सुधीर के इस प्रयोग का बेतुकापन ही इसकी खूबी है। तुक और तर्क जिंदगी में खोजने चलो तो वह नीरस और सपाट हो जाएगी।
फिल्म के किरदारों के मनोभाव को स्वानंद किरकिरे के गीतों से सार्थक अभिव्यक्ति मिली है। महत्वपूर्ण दृश्यों की पृष्ठभूमि में आए गीत के अंश कथ्य की जरूरत पूरी करते हैं। वहां संवादों के बगैर हम निर्देशक का मंतव्य समझते हैं। कलाकारों में इरफान, चित्रांगदा, अरुणोदय और अदिति प्रमुख किरदारों को निभाने में पूरी तरह से सफल रहे हैं। इस फिल्म में अदिति राव विशेष रूप से प्रभावित करती हैं। सहयोगी कलाकारों का सुधीर मिश्र ने सक्रिय और उचित उपयोग किया है।
*** तीन स्टार
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