दर्शकों की पसंद, फिल्मों का बिजनेस

-अजय ब्रह्मात्‍मज

न कोई ट्रेड पंडित और न ही कोई समीक्षक ठीक-ठीक बता सकता है कि किस फिल्म को दर्शक मिलेंगे? फिल्मों से संबंधित भविष्यवाणी अक्सर मौसम विभाग की भविष्यवाणियों की तरह सही नहीं होतीं। किसे अनुमान था कि आशुतोष गोवारीकर की फिल्म खेलें हम जी जान से को दर्शक देखने ही नहीं आएंगे और बगैर किसी पॉपुलर स्टार के बनी सुभाष कपूर की फिल्म फंस गए रे ओबामा को सराहना के साथ दर्शक भी मिलेंगे? फिल्मों का बिजनेस और दर्शकों की पसंद-नापसंद का अनुमान लगा पाना मुश्किल काम है। हालांकि इधर कुछ बाजार विशेषज्ञ फिल्मों के बिजनेस की सटीक भविष्यवाणी का दावा करते नजर आ रहे हैं, लेकिन कई दफा उन्हें भी मुंह छिपाने की जरूरत पड़ती है। दशकों के कारोबार के बावजूद फिल्म व्यापार बड़ा रहस्य बना हुआ है।

हिंदी फिल्मों के इतिहास में अधिकतम सफल फिल्में दे चुके अमिताभ बच्चन पहली पारी के उतार के समय अपनी फ्लॉप फिल्मों से परेशान होकर कहते सुनाई देते थे कि दर्शकों के फैसले के बारे में कुछ भी नहीं कहा जा सकता। कभी बॉक्स ऑफिस पर सफलता की गारंटी समझे जाने वाले अमिताभ बच्चन ने यह बात घोर हताशा में कही थी, लेकिन हिंदी फिल्मों की यही सच्चाई है। दूसरी तरफ बाजार के बढ़ते प्रभाव ने अब धीरे-धीरे दर्शकों के दिमाग में बिठा दिया है कि बॉक्स ऑफिस पर सफल हुई फिल्में अच्छी होती हैं। मीडिया रिपोर्ट भी फिल्मों की कामयाबी से प्रेरित होती है। अच्छा का सीधा मतलब मुनाफे से है। अगर फिल्म मुनाफा दे रही है, तो गोलमाल-3 अच्छी फिल्म कही जाएगी। फिल्म को दर्शक नहीं मिले तो नेक इरादों और सुंदर कोशिश के बावजूद खेलें हम जी जान से बुरी फिल्म की श्रेणी में आ जाएगी। कैसी विडंबना है?

आखिर दर्शक कैसे तय करते हैं कि उन्हें कौन सी फिल्म देखनी है? यह स्थिति लगभग भारतीय चुनाव की तरह है। कोई भी राजनीतिक पार्टी चुनाव में दावा नहीं कर सकती कि उसे कितने प्रतिशत मत मिलेंगे और उसका कौन सा उम्मीदवार निश्चित रूप से विजयी होगा। इस अनिश्चितता के बावजूद कई बार हवा चलती है और किसी एक वजह से सभी उम्मीदवारों को फायदा हो जाता है। फिल्मों के साथ भी यही होता है। कभी गाना, कभी स्टार, कभी किसी और वजह से कोई फिल्म गर्म हो जाती है और उसे दर्शक मिल जाते हैं। अभी गीत शीला की जवानी.. ने गदर मचा रखा है और माना जा रहा है कि फराह खान की तीस मार खां को जबरदस्त ओपनिंग मिलेगी। इस फिल्म का वीकऐंड बिजनेस अच्छा रहेगा।

स्टार संपन्न और आक्रामक प्रचार से फिल्मों को ओपनिंग मिल जाती है। उसके बाद फिल्म का कंटेंट ही दर्शकों को वापस खींचकर थिएटर में लाता है। किसी भी फिल्म को बड़ी कामयाबी वापस आए दर्शकों से ही मिलती है। लोगों ने भी सुना होगा कि सिनेप्रेमी पसंद आई फिल्मों को बार-बार देखते हैं। कभी दोस्तों के साथ तो कभी परिजनों के साथ, तो कभी किसी और बहाने से। ऐसी ही फिल्में जबरदस्त हिट होती हैं। 3 इडियट्स और दबंग को अनेक दर्शकों ने बार-बार देखा है।

आमतौर पर माना जाता है कि समीक्षकों की राय से फिल्म का बिजनेस अप्रभावित रहता है। इसी साल की बात करें, तो लव सेक्स और धोखा, उड़ान, तेरे बिन लादेन, फंस गए रे ओबामा और बैंड बाजा बारात देखने के लिए समीक्षकों ने ही दर्शकों को प्रेरित किया। इन सभी फिल्मों को अच्छी ओपनिंग न हीं मिली थी, लेकिन समीक्षकों से मिली सराहना से इनके दर्शक बढ़े। हां, बड़ी कॉमर्शियल फिल्मों की भ‌र्त्सना करने से भी फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि आम दर्शक उन्हें देखने का मन बना चुके होते हैं। ऐसे कट्टर दर्शकों की राय बदल पाना किसी के वश में नहीं होता।


Comments

Creative Manch said…
बहुत अच्छा विश्लेषण किया है.
लेकिन अक्सर ऐसा क्यूँ है कि कई फ़िल्में ओवेरसीस अच्छा बिजनेस करती है लेकिन देश में पिट जाती है ..देखने वाले दोनों ही जगह भारतीय होते हैं.
..यह बात पूरी तरह सही है कि कहीं के भी दर्शक समीक्षा देख कर प्रभावित हो सकते हैं.
...............
नववर्ष २०११ की हार्दिक शुभकामनाएँ.

ऑडियो क्विज़

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