सीरियल में सिनेमा की घुसपैठ
इसकी आकस्मिक शुरुआत सालों पहले भाई-बहन के प्रेम से हुई थी। तब एकता कपूर की तूती बोलती थी। उनका सीरियल क्योंकि सास भी कभी बहू थी और कहानी घर घर की इतिहास रच रहे थे। एकता कपूर की इच्छा हुई कि वह अपने भाई तुषार कपूर की फिल्मों का प्रचार अपने सीरियल में करें। स्टार टीवी के अधिकारी उन्हें नहीं रोक सके। लेखक तो उनके इशारे पर सीन दर सीन लिखने को तैयार थे। इस तरह शुरू हुआ सीरियल में सिनेमा का आना। बड़े पर्दे के कलाकार को जरूरत महसूस हुई कि छोटे पर्दो के कलाकारों के बीच उपस्थित होकर वह घरेलू दर्शकों के भी प्रिय बन जाएं। यह अलग बात है कि इस कोशिश के बावजूद तुषार कपूर पॉपुलर स्टार नहीं बन सके। यह भी आंकड़ा नहीं मिलता कि इस प्रयोग से उनकी फिल्मों के दर्शक बढ़े या नहीं, लेकिन फिल्म इंडस्ट्री को प्रचार का एक और जरिया मिल गया।
प्रोफेशनल और सुनियोजित तरीके से संभवत: पहली बार जस्सी जैसी कोई नहीं में हम तुम के स्टार सैफ अली खान को कहानी का हिस्सा बनाया गया। यशराज फिल्म्स की तत्कालीन पीआर एजेंसी स्पाइस के प्रमुख प्रभात चौधरी याद करते हैं, ''वह अलग किस्म की फिल्म थी। इसके प्रचार में आदित्य चोपड़ा नई युक्तियों का सहारा ले रहे थे। आप को याद होगा कि एक अंग्रेजी अखबार में कार्टून स्ट्रिप भी चलाए थे।''
यूनिवर्सल के पराग देसाई बताते हैं, ''कुछ फिल्म स्टार तो प्रचार की ऐसी जरूरतों के लिए सहज तैयार हो जाते हैं, लेकिन प्रचार और साक्षात्कार से यथासंभव दूर रहने वाले अजय देवगन को राजी करना मुश्किल काम होता है।'' अजय देवगन साफ कहते हैं, ''अगर पीआर एजेंसी का प्रेशर न हो तो मैं बिल्कुल न जाऊं। मैं शुरू से मानता रहा हूं कि आखिरकार फिल्म ही चलती है। दर्शकों को फिल्म अच्छी लगनी चाहिए।''
ज्यादातर फिल्म स्टार इसे जरूरी ट्रेंड मान कर पीआर की सलाह पर अमल करते हैं, लेकिन वे यहां भी परफॉर्म कर रहे होते हैं। उनकी अंदरूनी इच्छा नहीं रहती कि उस सीरियल या टीवी शो का हिस्सा बनें, पर मजबूरी क्या नहीं कराती। सो, नवंबर के दूसरे पखवाड़े में रितिक रोशन गुजारिश के प्रचार के लिए जी टीवी के सारे गा मा पा सिंगिंग स्टार में गए। वहां उन्होंने खुद भी गीत गाए। इन्हीं दिनों बिग बॉस और केबीसी में फिल्म सितारों का जमघट देखा गया। इनमें सभी अपनी फिल्मों के प्रचार के लिए गए थे।
प्रभात चौधरी कहते हैं, ''वास्तव में यह दोनों के लिए विन-विन सिचुएशन है। इस से सीरियलों का आकर्षण बढ़ता है, जो उनकी टीआरपी में नजर आता है। दूसरी तरफ फिल्म की जानकारी वैसे दर्शकों के बीच पहुंच जाती है, जो फिल्म शो, प्रिंट मीडिया या दूसरे पारंपरिक माध्यमों के करीब नहीं हैं।''
सीरियलों में फिल्मी सितारों की बढ़ती मौजूदगी की आर्थिक वजह भी है। बीते महीनों में टीवी चैनलों ने विज्ञापन दर बढ़ा दी हैं। फिल्मों के प्रोमो के लिए दी जाने वाली रियायत भी खत्म की जा रही है। ऐसी स्थिति में सभी फिल्म निर्माताओं के लिए विज्ञापन के समय खरीद पाना संभव नहीं रहा है। सो, फिल्म निर्माताओं ने बीच का रास्ता खोज निकाला है। वे पॉपुलर सीरियलों की कहानी में अपनी फिल्म के कलाकारों के लिए जगह बनवाते हैं। इसके एवज में उन्हें प्रचार मिल जाता है।
सब टीवी के तारक मेहता का उल्टा चश्मा में सबसे अधिक फिल्मों के कलाकार आते हैं। इस सीरियल के निर्माता असित कुमार मोदी बताते हैं, ''हमें फिल्म निर्माता अप्रोच करते हैं तो हम अपने लेखकों के साथ बैठ कर उनकी फिल्मों के लिए सिचुएशन बनाते हैं। कोशिश रहती है कि सीरियल के दर्शकों को झटका न लगे और उनका अतिरिक्त मनोरंजन भी हो जाए। दो दूनी चार के प्रचार के लिए आए ऋषि कपूर और नीतू को दर्शकों ने खूब पसंद किया।'' असित मानते हैं कि चूंकि तारक मेहता का उल्टा चश्मा गुजरात समेत पश्चिम भारत में बहुत पापुलर है, इसलिए निर्माता इस सीरियल में आना चाहते हैं।
फिल्म की रिलीज के समय रियलिटी शो में कलाकार लंबे समय से आते रहे हैं। सीरियलों में उनके आने की फ्रीक्वेंसी अभी बढ़ी है। 2010 की आखिरी तिमाही में अजय देवगन आक्रोश के लिए क्राइम पेट्रोल में, सलमान खान दबंग के लिए लागी तुझ से लगन, मल्लिका सहरावत हिस्स के लिए न आना इस देश लाडो जॉन अब्राहम झूठा ही सही के लिए एफआईआर में नजर आए।
आक्रामक प्रचार के इस दौर में सीरियल मुफ्त के माध्यम के रूप में सामने आए हैं। युवा टीवी विश्लेषक विनीत कुमार के शब्दों में, ''बॉलीवुड के सितारे टेलीविजन पर आकर कोई एहसान नहीं करते, बल्कि दोनों के बीच एक मैच्योर बिजनेस समझौता बना है। प्रमोशन के जरिए, टेलीविजन उन्हें सिनेमाघरों से पहले लोगों के ड्राइंग रूम और बेडरूम में पहुंचाने का काम करता है।''
कहना मुश्किल है कि सीरियल और फिल्मों का यह हनीमून कितना लंबा चलेगा? फिलहाल दोनों पक्षों को मजा आ रहा है और दोनों खुद को फायदे में समझ रहे हैं!
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