लता मंगेशकर को मिले सम्मान के बहाने
-अजय ब्रह्मात्मज
पिछले सप्ताह बुधवार की शाम को मुंबई में एक पुरस्कार समारोह में लता मंगेशकर को लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया गया। उन्हें उनकी छोटी बहन आशा भोसले और ए आर रहमान ने सम्मानित किया। इस अवसर पर रहमान ने अपनी मां का बताया एक संस्मरण सुनाया कि उनके पिता रोज सुबह लता मंगेशकर की तस्वीर का दर्शन करने के बाद ही संगीत की रचना करते थे। उन्होंने प्रकारांतर से लता मंगेशकर की तुलना सरस्वती से की। सम्मान के पहले समारोह में आए संगीतकारों ने उनके गीत एक प्यार का नगमा है.. गाकर उन्हें भावभीनी स्वरांजलि दी। शंकर महादेवन ने गीत गाया, तो शांतनु मोइत्रा और उत्तम सिंह ने गिटार और वायलिन बजाकर संगीतपूर्ण संगत दी। दर्शक भी भावविभोर हुए। सम्मान के इस अवसर पर भी आशा भोसले ने अपनी शिकायत दर्ज की। उन्होंने कहा कि दीदी कभी मेरे गाने नहीं सुनतीं। आज भी वे देर से आई। आशा की शिकायत पर हंसते हुए लता ने पलट कर कहा कि तू हमेशा झगड़ती है, लेकिन मैं तुम्हें पहले की तरह आज भी माफ करती हूं। आशा ने तुरंत जवाब दिया कि माफ तो करना ही पड़ेगा। मां तो माफ करती ही है। इस नोकझोंक में थोड़ी देर के लिए लगा कि मामला तूल पकड़ेगा और दोनों बहनों की लड़ाई सार्वजनिक हो जाएगी, लेकिन लता जी ने बड़प्पन दिखाते हुए प्रसंग बदल दिया।
लता मंगेशकर ने कहा कि लाइफटाइम अचीवमेंट अवश्य दें, लेकिन उसके बाद आर्टिस्ट को भूल न जाएं। उसे काम दें और उसे विकास करने के नए अवसर दें। कहीं लता मंगेशकर अपने दर्द का बयान तो नहीं कर रही थीं? दशकों से हिंदी फिल्मों की गायकी में उनका एकछत्र साम्राज्य रहा। उनके सामने किसी और गायिका को आगे बढ़ने का मौका नहीं मिला। केवल उनकी छोटी बहन आशा भोंसले ही उनके आसपास नजर आती हैं। संगीत के गलियारे में लोग दबी आवाज में दोनों बहनों के मनमुटाव की बातें करते हैं। आज लता मंगेशकर गायकी की जिस ऊंचाई पर बैठी हैं। वहां तक पहुंचने का सपना भी नई गायिकाएं नहीं देख सकतीं। किसी में न उतनी वैरायटी है और न वे लगातार गा पा रही हैं। सुनिधि चौहान और श्रेया घोषाल के बाद किसी गायिका की पहचान नहीं बन पाई है। ऐसे माहौल में नई से नई गायिकाओं के प्रति संगीतकारों के रुझान को देखते हुए ही लता मंगेशकर ने यह बात कही होगी। कहीं न कहीं वे आज फिल्मों में न गा पाने की अपनी तकलीफ जाहिर कर रही थीं।
गौर करें, तो हिंदी फिल्मों में गायकी तेजी से बदली है। अभी संगीतकार किसी एक गायक पर निर्भर नहीं करते। यह भी देखा जा रहा है कि एक गायक फिल्म के सभी गाने नहीं गाता। गायकों को पहचान के संकट से गुजरना पड़ रहा है।
अभी पॉपुलर स्टारों के साथ गायकों का एसोसिएशन नहीं होता है। वे दिन गए, जब मुकेश का गाना सुनते ही एहसास हो जाता था कि इसे पर्दे पर राज कपूर ने ही गाया होगा। इसी प्रकार दिलीप कुमार की आवाज मोहम्मद रफी और देव आनंद की आवाज किशोर कुमार थे। अभी किसी पॉपुलर सितारे के लिए किसी खास गायक की जरूरत महसूस नहीं होती। जो गायक पॉपुलर हो जाए, उसकी आवाज सभी सितारों के लिए इस्तेमाल की जाने लगती है। उदाहरण के लिए, राहत फतेह अली खान सभी की आवाज बन चुके हैं। उन्हें किसी एक स्टार से नहीं जोड़ा जा सकता।
लता मंगेशकर या आशा भोसले की तरह आज किसी गायिका या गायक को मौका नहीं मिल सकता। अभी स्वर से ज्यादा ध्यान धुन पर रहता है और आर्केस्ट्रा इतना ज्यादा व ऊंचा होता है कि गायकों की आवाज दब जाती है। गायक भी अधिक मेहनत करते नजर नहीं आते। उनके हिंदी और उर्दू के उच्चारण में सफाई नहीं रहती। इधर अंग्रेजी बोलों का चलन बढ़ा है। गौर करें, तो सारे गायक अपनी अंग्रेजी के सही उच्चारण पर बहुत ध्यान देते हैं और हिंदी-उर्दू के प्रति बेपरवाह रहते हैं। अगर ये गायक लता मंगेशकर जैसा नाम और काम करना चाहते हैं, तो निश्चित ही उन्हें लगन बढ़ानी होगी।
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