गुलज़ार :गीत यात्रा के पांच दशक-अमितेश कुमार
गुलज़ार बहुआयामी प्रतिभा के धनी हैं। फ़िल्मों मे निर्देशन, संवाद और गीत लेखन के साथ अदबी जगत में भी सक्रिय हैं। गुलज़ार का फ़िल्मकार रूप मुझे हमेशा आकर्षित करता रहा है। लोकप्रिय सिनेमा की सरंचना में रहते हुए उन्होंने सार्थक फ़िल्में बनाई हैं। उनके द्वारा निर्देशित फ़िल्मों की सिनेमा के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण जगह है। मेरे अपने, कोशिश, मौसम, आंधी, खुशबु, परिचय, इजाजत, माचिस इत्यादि उनके द्वारा निर्देशित फ़िल्में एक व्यवस्थित और विस्तृत अध्ययन की मांग करती हैं। मेरा ध्यान इस वक्त सिर्फ़ उनके गीतों और वो भी फ़िल्मों में लिखे गीतों पर केंद्रित है।
गुलज़ार के गीतों की तह में जाने से पहले कुछ सूचनात्मक जानकारियां बांट ली जाये। गुलज़ार ने अब तक लगभग सौ फ़िल्मों के लिये गीत लिखें हैं और बाइस फ़िल्में निर्देशित की हैं। कुछ फ़िल्मों के लिये संवाद भी लिखे हैं जिसमें आनंद, नमकहराम, माचिस ,साथियां इत्यादि हैं।
गुलज़ार अब तक सात राष्ट्रीय पुरस्कार जीत चुके हैं। सर्वश्रेष्ठ निर्देशन - मौसम, सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म - माचिस, सर्वश्रेष्ठ गीत - मेरा कुछ सामान (इजाजत), यारा सीली सीली (लेकिन), सर्वश्रेष्ठ पटकथा - कोशिश, सर्वश्रेष्ठ वृतचित्र - पं भीमसेन जोशी और उस्ताद अमजद अली खान। गीतों के लिये गुलज़ार को नौ फ़िल्मफ़ेअर अवार्ड मिला। निर्देशन के लिए एक (मौसम), कहानी के लिये एक (माचिस), फ़िल्म के लिये एक (आंधी ,समीक्षक) और संवाद के लिये चार (आनंद, नमकहराम, मचिस और साथिया।) फ़िल्मफ़ेअर अवार्ड मिला है।
उनके कहानी संग्रह धुआं के लिये 2003 में उन्हें साहित्य अकादमी अवार्ड मिला और 2004 में भारत सरकार ने उन्हें पद्म भुषण से समानित किया।
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आत्म परिचय-
- अपनी तारीफ़ उलझा हुआ दिखता हुं शायद सुलझा हुं। अपने बारे में, अपनी भावनाओं को व्यक्त करने में हमेशा परेशानी होती है। सलाह अच्छी देता हुं, राजदार अच्छा हुं, इस्लिये कुछ लोगों के अंतरंग का गवाह हूं। किताब, क्रिकेट, सिनेमा, नाटक, संगीत और प्रेम में गहरी दिलचस्पी है। घर में सबसे आलसी, लापरवाह और नालायक (वैसे ये विशेषण मेरे एक दोस्त का दिया है) हूं। गप्प करने की क्षमता असाधारण है अगर मंडली मन माफ़िक हो। उम्र में बडो की संगती भाती है। जो लोग मुझ नहीं पहचान पाते है उनके लिये रुड, घमंडी, एरोगेंट हूं। अपने इर्द गिर्द एक दीवार बनाये हुए हूं जिसमे घुसने की इजाजत कुछ ही लोगो को है। अगम्भीर किस्म का गम्भीर इन्सान हूं। अपने व्यवहार का आकलन करने के बाद इतना ही जान पाया हूं बाकि मेरे मित्र और घर के लोग बता पायेंगे। किताबों के बाहर की दुनिया में सीखने कि लिये ज्यादा कुछ है…ऐसा मानना है। क्या कर रहा हूं ये बताने मुझे मजा नहीं आता…और जिस काम में मजा नहीं आता वो करता नहीं हूं इसलिये इतना ही….
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