फिल्म समीक्षा : नॉक आउट
दो घंटे की फिल्म में दो घंटे की घटनाओं को मणि शंकर ने रोमांचक तरीके से गुंथा है। यह फिल्म एक विदेशी फिल्म की नकल है। शॉट और दृश्यों के संयोजन में मणि शंकर विदेशी फिल्म से प्रेरित हैं, लेकिन इमोशन, एक्शन और एक्सप्रेशन भारतीय हैं। उन्होंने भारतीयों की ज्वलंत समस्या का एक फिल्मी निदान खोजा है, जो खामखयाली से ज्यादा कुछ नहीं, फिर भी नॉक आउट अधिकांश हिस्से में रोमांचक बनी रहती है।
यह फिल्म सिर्फ इरफान के लिए भी देखी जा सकती है। टेलीफोन बूथ के सीमित स्पेस में कैद होने और एक हाथ में लगातार रिसीवर थामे रखने के बावजूद इरफान अपनी भाव मुद्राओं और करतबों से दर्शकों को उलझाए रखते हैं। उनके चेहरे के भाव और एक्सप्रेशन लगातार बदलते हैं,लेकिन वे किरदार की दुविधा,पश्चाताप,असमंजस और व्याकुलता को नहीं छोड़ते। उन्होंने निर्देशक की कल्पना को अच्छी तरह साकार किया है। इरफान के अभिनय की तरह फिल्म की संरचना भी उम्दा होती और इस पर किसी विदेशी फिल्म की नकल का आरोप नहीं होता तो निश्चित ही यह साधारण फिल्म नहीं रहती।
भारत से स्विस बैंक में जा रहे धन को फिर से भारत लाने का यह प्रयास अविश्सनीय और बचकाना है। हां, अगर इस फिल्म के बहाने इस मुद्दे पर दर्शकों का ध्यान जाए और वे जागृत हों तो निश्चित ही फिल्म का उद्देश्य पूरा होता है। मणि शंकर ने बताया कि अंग्रेजों ने अपने शासन काल में जितना धन नहीं लूटा, उससे अधिक धन सारे नेता पिछले साठ सालों में देश के बाहर ले जा चुके हैं। वह धन भारत आना चाहिए, लेकिन नॉक आउट के बताए रास्ते से लाना तो नामुमकिन है। इस अविश्वसनीय कहानी को इरफान और सुशांत सिंह जैसे सधे अभिनेताओं ने सहज और विश्वसनीय बनाया है। संजय दत्त का आकर्षक व्यक्तित्व फिल्म का प्रभाव बढ़ाने में कोई मदद नहीं करता और कंगना रनौत माफ करें, कंगना को संवाद अदायगी के लिए उच्चारण पर ध्यान देना होगा। सिर्फ वेशभूषा पर ध्यान देने से किरदार नहीं बनता। कंगना की कमजोरियां इस फिल्म में जाहिर हो गई हैं। टीवी जर्नलिस्ट की भूमिका में वह लचर और बेकार लगी हैं।
रेटिंग: दो स्टार
Comments
he's the actor away from league.. lyk Amir Khan.. he's on his way to the Irrfan Perfectionist khan... ye wo kalakar hai wo mitti haath me lekar usse sona kar dein...