मुंबई आए रजनीकांत
मुंबई आए रजनीकांत
तमिल, तेलुगू और हिंदी तीनों ही भाषाओं में मणि शंकर निर्देशित रजनीकांत की रोबोट दर्शकों को भा रही है। पिछली फिल्म शिवाजी के बाद रजनीकांत के दर्शकों में भारी इजाफा हुआ है। अब वे केवल तमिल तक सीमित नहीं रह गए हैं। निश्चित रूप से भारतीय फिल्म स्टारों की अग्रिम पंक्ति में खड़े रजनीकांत को सभी भाषाओं के दर्शक देखना चाहते हैं। मुझे लगता है कि जिन भाषाओं में उनकी फिल्म डब नहीं हुई है और जो दर्शक तमिल, तेलुगू और हिंदी नहीं जानते, वे किस कदर 21वीं सदी के इस फेनोमेना से वंचित हैं। पॉपुलर कल्चर के अध्येताओं को रजनीकांत की लोकप्रियता के कारणों पर शोध और विमर्श करना चाहिए कि आखिर कैसे 61 साल का बुजुर्ग अभिनेता किसी भी जवान स्टार से अधिक लोकप्रिय हो गया?
पिछले हफ्ते रजनीकांत मुंबई आए। यहां उन्होंने अपनी फिल्म का विशेष शो रखा था, जिसमें हिंदी फिल्म इंडस्ट्री की सभी हस्तियों को आमंत्रित किया गया था। आमिर खान और अमिताभ बच्चन समेत सभी उनसे मिलने और उनकी फिल्म देखने गए और अभिभूत होकर लौटे। दक्षिण के इस स्टार का जादू मुंबई के स्टारों के सिर चढ़ कर बोल रहा है। खुद को नेशनल स्टार समझने वाले विस्मित हैं कि तमिल के रजनीकांत ने लोकप्रियता और बॉक्स ऑफिस कलेक्शन में अखिल भारतीय स्तर पर उन्हें पीछे छोड़ दिया है। गौरतलब है कि रोबोट पहले शाहरुख खान को ऑफर की गई थी। उनके मना करने के बाद रजनीकांत रोबोट के लिए राजी हुए थे। आज शाहरुख खान अफसोस कर रहे होंगे।
रोबोट शंकर की विस्मयकारी कल्पना है। उन्होंने वीएफएक्स के जरिए अपनी कल्पना को साकार किया है। उन्होंने विदेशी तकनीशियनों और नो हाउ का सहारा लेकर अकल्पनीय दृश्यों का सृजन किया है। इस फिल्म में रजनीकांत की चमत्कारी लोकप्रियता के साथ स्पेशल इफेक्ट का भी जादू चला है। दर्शक सम्मोहित होकर बैठे रहते हैं और पूरे स्क्रीन पर कुछ आकृतियां विभिन्न रूपों और आकारों में पल-पल बदल रही होती हैं। यह फिल्म अद्भुत ढंग से बांधती है। इंटरवल के पहले ऐश्वर्या राय से छेड़छाड़ कर रहे गुंडों से जूझने के दरम्यान जब रोबोट की बैट्री कमजोर पड़ती है और वह चलती ट्रेन से नीचे गिरता है, तो हम चौंकते हैं और अगले सीन के बारे में सोच नहीं पाते। शंकर ने तकनीक के साथ भारतीय इमोशन का सुंदर इस्तेमाल किया है। निश्चित ही यह फिल्म भारतीय सिनेमा को विस्तार देती है, लेकिन क्या रजनीकांत के बगैर भी ऐसी फिल्म की योजना बनाई जा सकती है। मुझे लगता है कि नहीं, कम लोकप्रिय अभिनेता के साथ कोई भी निर्माता-निर्देशक इतना बड़ा जोखिम नहीं उठा पाएगा।
मुंबई प्रवास के दौरान रजनीकांत शिवसेना के प्रमुख बाला साहेब ठाकरे से भी मिले। अगले दिन सभी अखबारों में गलबहियां डाले दोनों की तस्वीरें छपीं। उनकी तस्वीरों के आगे रोबोट के स्पेशल शो में स्टारों के संग की रजनीकांत की ही तस्वीरें फीकी लग रही थीं, क्योंकि बाला साहेब ठाकरे के साथ की तस्वीर खबर के रूप में आई। इस खबर में रजनीकांत ने उन्हें भगवान कहा। देश का लोकप्रिय स्टार एक राजनीतिक पार्टी के प्रमुख को अगर भगवान कहता है, तो उसके कई निहितार्थ निकलते हैं। निश्चित ही रजनीकांत को ऐसे बयान से बचना चाहिए था। वे मूल रूप से मराठी मानुस हैं और शिवसेना और बाल ठाकरे से खुद को जोड़े रखने का उनका प्रादेशिक दबाव समझा जा सकता है, लेकिन ऐसी स्वीकृति उनके बाकी प्रशंसकों को संशय में डाल देती है। रजनीकांत ने किसी खास अभिप्राय से उन्हें भगवान नहीं कहा होगा, लेकिन आम दर्शक तो उनके बयानों से प्रेरित और प्रभावित होते हैं। यह भी शोध का विषय हो सकता है कि बाला साहेब ठाकरे और रजनीकांत की मुलाकात महज औपचारिकता थी या इसके पीछे कोई दूसरा आशय है..।
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