फिल्म समीक्षा लफंगे परिंदे
गढ़ी प्रेमकहानी
-अजय ब्रह्मात्मज
एक नंदू है और एक पिंकी। दोनों मुंबई की एक ही वाड़ी में रहते हैं। निम्न मध्यवर्गीय परिवार की इस वाड़ी में पिंकी का परिवार तो दिखता है, लेकिन नंदू के परिवार का कोई सदस्य नहीं दिखता। उसके तीन और लफंगे दोस्त हैं। बॉक्सिंग का शौकीन नंदू वन शॉट नंदू के नाम से मशहूर हो जाता है। दूसरी तरफ पिंकी स्केटिंग डांस के जरिए इस वाड़ी से निकलने का सपना देखती है। इन दोनों के बीच उस्मान भाई आ जाते हैं। अनचाहे ही उनकी करतूत से दोनों की जिंदगी प्रभावित होती है। और फिर एक प्रेमकहानी गढ़ी जाती है। परिणीता के निर्देशक प्रदीप सरकार की लफंगे परिंदे लुक और अप्रोच में मॉडर्न होने के बावजूद प्रभावित नहीं कर पाती।
लफंगे परिंदे के किरदार, लैंग्वेज, पहनावे और माहौल में मुंबई की स्लम लाइफ दिखाने में लेखक-निर्देशक असफल रहे हैं, क्योंकि सोच और दृष्टि का आभिजात्य हावी रहा है। फिल्म की जमीन स्लम की है, लेकिन उसकी प्रस्तुति यशराज की किसी और फिल्म से कम चमकीली नहीं है। फिल्म के नायक-नायिका अपने मैनरिज्म और लैंग्वेज में निरंतरता नहीं रख पाए हैं। कभी भाषा सुसंस्कृत हो जाती है तो कभी चाल-ढाल। इस वजह से लफंगे परिंदे वास्तविकता और फंतासी के बीच फड़फड़ाती रह जाती है। नील नितिन मुकेश और दीपिका पादुकोन अपनी मेहनत के बावजूद किरदारों को निभा नहीं पाते। अंधी दीपिका कुछ ज्यादा ही निराश करती हैं। अंधे होने के बाद भी उनके बोलने और चलने-फिरने में कोई फर्क ही नहीं आता। पीयूष मिश्रा तक अप्रभावी रहे, बाकी की क्या बात की जाए? प्रेमकहानी का द्वंद्व कमजोर है, इसलिए क्लाइमेक्स प्रभावशाली नहीं बन पाया है।
क्या वजह है कि यशराज फिल्म्स की हाल-फिलहाल की अधिकांश फिल्मों की कहानियां स्पोर्ट्स, डांस और कंपीटिशन से संबंधित हो गई हैं। किरदार बदलते हैं, लेकिन कथ्य लगभग एकजैसा रहता है। एक बड़े बैनर की फिल्मों में यह दोहराव चिंतनीय है।
Comments
सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी
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