बी आर चोपड़ा का सफ़र- प्रकाश के रे
भाग- छह
1951 की फ़िल्म जांच समिति ने सिर्फ़ फ़िल्म उद्योग की दशा सुधारने के लिये सिफ़ारिशें नहीं दी थी, जैसा किपिछले भाग में उल्लिखित है, उसने फ़िल्म उद्योग को यह सलाह भी दी कि उसे 'राष्ट्रीय संस्कृति, शिक्षा और स्वस्थ मनोरंजन' के लिये काम करना चाहिए ताकि 'बहुआयामीय राष्ट्रीय चरित्र' का निर्माण हो सके. यह सलाह अभी-अभी आज़ाद हुए देश की ज़रूरतों के मुताबिक थी और बड़े फ़िल्मकारों ने इसे स्वीकार भी किया था.
बी आर चोपड़ा भी सिनेमा को 'देश में जन-मनोरंजन और शिक्षा का साधन तथा विदेशों में हमारी संस्कृति का दूत' मानते थे. महबूब, बिमल रॉय और शांताराम जैसे फ़िल्मकारों से प्रभावित चोपड़ा का यह भी मानना था कि फ़िल्में किसी विषय पर आधारित होनी चाहिए. अपनी बात को लोगों तक पहुंचाने के लिये उन्होंने ग्लैमर और मेलोड्रामा का सहारा लिया.
निर्माता-निर्देशक के बतौर अपनी पहली फ़िल्म एक ही रास्ता में उन्होंने विधवा-विवाह के सवाल को उठाया. हिन्दू विधवाओं के विवाह का कानून तो 1856 में ही बन चुका था लेकिन सौ बरस बाद भी समाज में विधवाओं की बदतर हालत भारतीय सभ्यता के दावों पर प्रश्नचिन्ह लगा रही थी. सौ बरस बाद ही 1956 में विधवाओं को मृतकपति की संपत्ति पर अधिकार मिल पाया था. उसी बरस चोपड़ा ने यह फ़िल्म प्रदर्शित की. हालाँकि फ़िल्म में संपत्ति-संबंधी अधिकारों का उल्लेख नहीं था, किन्तु विधवाओं की नैतिकता और पवित्रता को लेकर समाज में व्याप्त पूर्वाग्रहों पर सवाल उठाया गया था.
फ़िल्म की कहानी पंडित मुखराम शर्मा ने लिखी थी और गीत मजरूह सुल्तानपुरी के थे. सुप्रसिद्ध गायक और संगीतकार हेमंत कुमार ने संगीत दिया था. फ़िल्म के गीतों को तब काफ़ी सराहा गया था. मीना कुमारी पर फ़िल्माया गया और लता मंगेशकर द्वारा गाया गया 'बेकस की आबरू को नीलाम कर के छोड़ा' औरत के दर्द को बड़े मार्मिक ढंग से बयान करता है. यह आज भी बेहद लोकप्रिय गीत है. एक अन्य गीत 'सो जा नन्हे मेरे' भी दर्द भरा गीत है जिसे हेमंत कुमार और लता जी ने गाया है. 'चमका बन के अमन का तारा' गीत भारत और उसके नेता जवाहरलाल के शांति के सन्देश को गाता है. एक अन्य बहुत लोकप्रिय गीत 'चली गोरी पी से मिलन को चली' इसी फ़िल्म का है जिसे हेमंत कुमार ने गाया है. 'सांवले सलोने आए दिन बहार के' एक अन्य सुंदर गीत है.
यह फ़िल्म उस साल की सफलतम फ़िल्मों में से थी और इसी के साथ बी आर फ़िल्म्स का बैनर की सफल यात्रा शुरू हो गयी. अगले साल चोपड़ा की नया दौर प्रदर्शित हुई जिसने सफलता के सारे रिकॉर्ड तोड़ डाला और आज तक की बेहतरीन फ़िल्मों में उसकी गिनती होती है.
(अगले हफ़्ते ज़ारी)
Comments