फिल्म समीक्षा रावण
मनोरम दृश्य, कमजोर कथा
मणि रत्नम की रावण निश्चित ही रामायण से प्रेरित है। अभिषेक बच्चन रावण उर्फ बीरा, ऐश्वर्या राय बच्चन रागिनी उर्फ सीता और विक्रम देव उर्फ राम की भूमिका में हैं। बाकी पात्रों में भी रामायण के चरित्रों की समानताएं रखी गई हैं।मणि रत्नम इस फिल्म के अनेक दृश्यों में रामायण के निर्णायक प्रसंग ले आते हैं। पटकथा लिखते समय ही मानो हाईलाइट तय कर दिए गए हों और फिर उन घटनाओं के इर्द-गिर्द कहानी बुनी गई हो। इसकी वजह से उन दृश्यों में तो ड्रामा दिखता है, लेकिन आगे-पीछे के दृश्य क्रम खास प्रभाव नहीं पैदा करते। मणि रत्नम ने राम, सीता और रावण की मिथकीय अवधारणा में फेरबदल नहीं किया है। उन्होंने मुख्य पात्रों के मूल्य, सिद्धांत और क्रिया-कलापों को आज के संदर्भ में अलग नजरिए से पेश किया है।
मणि रत्नम देश के शिल्पी फिल्मकार हैं। उनकी फिल्में खूबसूरत होती हैं और देश के अन देखे लोकेशन से दर्शकों का मनोरम मनोरंजन करती हैं। रावण में भी उनकी पुरानी खूबियां मौजूद हैं। हम केरल के जंगलों, मलसेज घाट और ओरछा के किले का भव्य दर्शन करते हैं। पूरी फिल्म में प्रकृति के पंचतत्वों में से एक जल विभिन्न रूपों में मौजूद है। फिल्म के सभी पात्र भीगे और गीले नजर आते हैं। नृत्य-गीत, एक्शन और इमोशन के दृश्य पानी से सराबोर हैं। कुछ दृश्यों में तो सामने बारिश हो रही है और पीछे धूप खिली हुई है। पहाड़, नदी और झरने कोहरे में डूबे हैं। प्राचीन इमारतों पर काई जमी है। मणि रत्नम इन सभी के जरिए फिल्म का भाव और वातावरण तैयार करते हैं। सब कुछ अद्भुत रूप से नयनाभिरामी है।
फिल्म के कथ्य की बात करें तो मणि रत्नम ने बीरा और देव को आमने-सामने खड़ा करने के साथ उनके बीच रागिनी को विवेक के तौर पर रखा है। रागिनी कुछ समय तक बीरा के साथ रहने और उसके पक्ष को समझने के बाद अपने पति देव के इरादों और उद्देश्यों पर सवाल उठाती है। उसे लगता है कि बीरा गलत नहीं है। सरकार के प्रतिनिधि के रूप में वह अपने पति को देखती है और इस निर्णय पर पहुंचती है कि बीरा ज्यादा मानवीय और नेक है। उसमें एक निश्छलता है। वह अपने समाज के लिए बदले की भावना से उसका अपहरण तो करता है, लेकिन उसे सिर्फ हथियार के तौर पर इस्तेमाल करता है। रागिनी के प्रति उसके मन में प्रेम जागता है, लेकिन वह मर्यादा हीन नहीं है। वह उसे छूता तक नहीं है। बीरा के चंगुल से रागिनी को देव निकाल लेता है और सीता की अग्नि परीक्षा की तरह रागिनी से पॉलीग्राफ टेस्ट की बात करता है। यहां आज की सीता यानि रागिनी बिफरती है और फिर से बीरा के पास पहुंच जाती है। रामायण की कथा का यह विस्तार दर्शक नहीं पचा पाएंगे। हालांकि आखिरकार बीरा मारा जाता है, लेकिन फिल्म का क्लाइमेक्स इस वजह से कमजोर हो जाता है।
कलाकारों में विक्रम सबसे ज्यादा प्रभावित करते हैं। सहयोगी भूमिकाओं में आए निखिल द्विवेदी, रवि किशन और प्रियमणि अपेक्षित योगदान करते हैं। रागिनी के किरदार के द्वंद्व को ऐश्वर्या राय बच्चन ने अच्छी तरह व्यक्त किया है। बीरा के रूप में अभिषेक बच्चन अधिक प्रभावित नहीं करते। वे बीरा के स्वभाव के भिन्न भावों को नहीं ला पाते। हो सकता है कि लेखक-निर्देशक ने उन्हें ऐसी ही हिदायत दी हो,लेकिन उसकी वजह से फिल्म का इंपैक्ट कमजोर हुआ है। बीरा रावण का मुख्य पात्र है और वही चरित्र और अभिनय के लिहाज से कमजोर हो गया है।
** 1/2 ढाई स्टार
Comments
k
किसी भी चीज की आलोचना करते वक्त उसका विकल्प हमारे पास होना जरूरी है, इसलिए लगता है मुझे भी 'रावण' की समीक्षा लिखनी होगी.