दरअसल:मेनस्ट्रीम सिनेमा में नार्थ-ईस्ट के किरदार
-अजय ब्रह्मात्मज
पिछले दिनों एक फिल्म आई थी बदमाश कंपनी। यशराज फिल्म्स के लिए इसे परमीत सेठी ने निर्देशित किया था। फिल्म का विषय पुराना था, लेकिन उसकी प्रस्तुति नई थी। हीरो के भटकने और फिर सुधरने की फिल्में हम सातवें और आठवें दशक में खूब देखते थे। खासकर संयुक्त परिवार के विघटन और न्यूक्लियर फैमिली के विकास के दौर में ऐसी ढेर सारी फिल्में आई। शहरों के विकास के साथ माइग्रेशन बढ़ा और पारिवारिक रिश्तों के नए समीकरण बने।
सामाजिक संरचना के इस संक्रमण काल में हमारे हीरो भी संकट के शिकार हुए। अब संक्रमण नए किस्म का है। उपभोक्तावाद और बाजार के दबाव में उद्यमशीलता बढ़ी है, लेकिन बाकी सरोकार छीज गए हैं। अब व्यक्ति स्वयं की चिंता में रहता है और चाहता है कि उसकी मेहनत का फल उसे ही मिले। समाज में आ रहे बदलाव के इस भाव को ही परमीत सेठी ने फिल्मी शॉर्टकट में दिखाया था।
बदमाश कंपनी में एक खास बात भी थी। इस के चार प्रमुख किरदारों में से एक जिंग को सिक्किम का बताया गया था। गौर करें, तो हिंदी फिल्मों के नायक और सहयोगी किरदार मुख्य रूप से पंजाब के होते हैं या फिर उनकी कोई पहचान ही नहीं होती। उनका सरनेम हटा दिया जाता है। वे रोहित, राज, विजय, अजय आदि होते हैं। हालांकिचरित्रांकन या चरित्र निर्माण का ऐसा कोई लिखित नियम नहीं है, लेकिन यह सच्चाई है कि हिंदी फिल्मों का नायक दक्षिण भारत (एक दूजे के लिए अपवाद है) का नहीं होता। वह नार्थ ईस्ट का भी नहीं होता। वह यादव, पासवान, महतो आदि भी नहीं होता। हमारे समाजशास्त्री इस संदर्भ में शोध कर सकते हैं। वह दलित समुदाय से भी नहीं होता। हिंदी फिल्मों के अघोषित नियमों के मुताबिक ही हीरो के नाम तय किए जाते हैं। उनकी शक्ल-ओ-सूरत तय की जाती है। आम मुहावरा है कि फलां में हीरो मैटीरियल नहीं है। हीरो मैटीरियल का मतलब क्या होता है? बदमाश कंपनी इस लिहाज से एक प्रस्थान है। फिल्म के चार मुख्य चरित्रों में से एक को सिक्किम का बताया गया है। उसका नाम जिंग है। उसकेसाथ वे सारे मजाक होते हैं, जो उत्तर-पूर्व के भारतीय नागरिकों को महानगरों में झेलने पड़ते हैं। उन्हें कोई सहज ही चीनी कह बैठता है और यह बताने से भी नहीं हिचकता सारे नार्थ-ईस्टर्न लोग एक जैसे ही लगते हैं। बदमाश कंपनी में जिंग मुख्य किरदार है। वह अपने माखौल का पलट कर जवाब देता है और एक तरीके से पूरे नार्थ-ईस्ट का प्रतिनिधि बन जाता है। परमीत सेठी ने उसे मेनस्ट्रीम के हिस्से के रूप में पेश कर उल्लेखनीय सामाजिक और राजनीतिक पहल की है। उन्होंने अलग-थलग समझे जाने वाले एक किरदार को पॉपुलर हिंदी फिल्म में मुख्य भूमिका दी है। उन्होंने एक फिल्म में झटाक से वह कर दिखाया है, जो सालों से केंद्र सरकार और नार्थ-ईस्ट की सरकारें नहीं कर पा रही हैं।
हिंदी फिल्में भारतीय समाज की सोच और मानसिकता को गैरइरादतन तरीके से पेश करती हैं। शुद्ध कॉमर्शियल हिंदी फिल्मों में भी हमारे समय का समाज दिखता है। हमारे रवैयों को किरदारों के रवैयों के रूप में देखा जा सकता है। हर फिल्म के किरदार भिन्न और स्वतंत्र होते हैं, लेकिन उनमें एक प्रकार से सोच और समझ की सामूहिकता नजर आती है। तभी वे पूरे भारत और भारत के बाहर के दर्शकों का मनोरंजन कर पाती हैं। उन्हें व्यापक स्वीकृति मिलती है। बदमाश कंपनी से सिक्किम के किरदार को मेनस्ट्रीम में स्वीकृति मिली है। इसके पहले हमने यशराज फिल्म्स की ही चक दे इंडिया में हाकी खिलाड़ी के रूप में नार्थ-ईस्ट की लड़कियों को देखा था। कोशिश होनी चाहिए कि हम नार्थ-ईस्ट और दूसरे प्रांत के किरदारों को फिल्म के प्रमुख चरित्र के रूप में और ज्यादा पेश करें और भारत की राजनीतिक-सामाजिक एकता को बढ़ावा दें।
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