जोखिम से मिलेगी जीत

-अजय ब्रह्मात्‍मज

मध्य प्रदेश, कश्मीर, महाराष्ट्र और केरल के दूर-दराज इलाकों में फिल्मों की शूटिंग में व्यस्त इन हीरोइनों के पास न तो मुंबई के स्टूडियो का सुरक्षित माहौल है और न वे सारी सुविधाएं हैं, जिनकी उन्हें आदत पड़ चुकी है। सभी हर प्रकार से जोखिम के लिए तैयार हैं। ग्लैमर व‌र्ल्ड की चकाचौंध से दूर प्राकृतिक वातावरण में धूल-मिट्टी, हवा, जंगल और बगीचे में फिल्म की जरूरत के मुताबिक परिधान पहने इन हीरोइनों को देखकर एकबारगी यकीन नहीं होता कि अभी कुछ दिनों और घंटों पहले तक वे रोशनी में नहाती और कमर मटकाती हीरो के चारों ओर चक्कर लगा रही थीं।

साफ दिख रहा है कि हिंदी फिल्मों की कहानी बदल रही है और उसी के साथ बदल रही है फिल्मों में हीरोइनों की स्थिति और भूमिका। फार्मूलाबद्ध कामर्शियल सिनेमा में आयटम गर्ल और ग्लैमर डॉल की इमेज तक सीमित हिंदी फिल्मों की हीरोइनों के बारे में कहा जाता रहा है कि वे नाच-गाने के अलावा कुछ नहीं जानतीं। ऐसे पूर्वाग्रही भी चारों सीनों में क्रमश: कट्रीना, प्रियंका, दीपिका और ऐश्वर्या की मौजूदगी से महसूस करेंगे कि हीरोइनों ने कुछ नया करने की ठान ली है। कुछ भी कर गुजरने को तैयार गंभीर हीरो की तर्ज पर अब वे 'शी-हीरो' या मैरियम वेबस्टर डिक्शनरी का सहारा लें तो 'शीरो' बन रही हैं। उन्हें निर्देशकों का सहयोग मिल रहा है। उन पर भरोसा किया जा रहा है और चुनौतीपूर्ण भूमिकाएं लिखी जा रही हैं।

जी हाँ, इस साल आप हीरोइनों को गंभीर किस्म की विविध भूमिकाओं में देखेंगे। पिछले दिनों एक निर्देशक ने शिकायत की थी कि आज नरगिस, मधुबाला, मीना कुमारी, वहीदा रहमान और नूतन जैसी अभिनेत्रियां नहीं हैं, इसलिए फिल्मों में हीरोइनों के लिए ठोस भूमिकाएं नहीं लिखी जातीं। निश्चित ही उक्त निर्देशक राजनीति में कट्रीना, सात खून माफ में प्रियंका, खेले हम जी जान से में दीपिका और रावण में ऐश्वर्या को देखने के बाद अपनी राय बदलेंगे। इन चारों के साथ करीना कपूर, विद्या बालन, कोंकणा सेनशर्मा, लारा दत्ता और बिपाशा बसु भी कुछ नया और जोरदार करने के प्रयास में हैं। सभी को लगने लगा है कि अगर लंबी पारी खेलनी है और दर्शकों के बीच स्थायी जगह के साथ इतिहास में दर्ज होना है तो ठोस और यादगार भूमिकाएं करनी होंगी। देश के अनुभवी निर्देशकों का विश्वास जीतना होगा। अपनी क्षमता से उन्हें प्रेरित करना होगा कि वे हीरोइनों की दमदार भूमिका वाली कहानियां चुनें। फिल्म की शूटिंग में सुविधाओं और नखरों को भुलाकर हर किस्म का समर्थन और सहयोग देना होगा। पूर्ण समर्पण के बाद ही उन्हें प्रतिष्ठित हीरोइनों के समूह में शामिल किया जाएगा। निश्चित ही इसमें दर्शकों का भी योगदान है। उनकी स्वीकृति ने ही हीरोइनों को ऐसी भूमिकाओं को चुनने का साहस दिया है। यह एक प्रकार का जोखिम है, लेकिन इस जोखिम में जीत की संभावना है। आखिरकार सफलता संभावनाओं की जोखिम भरी छलांग ही तो है!

[सीन-1]

भोपाल में हजारों की भीड़ के बीच अपनी साड़ी के पल्लू से बेपरवाह दोनों हाथ जोड़कर लोगों का अभिवादन करती बिंदु सेक्सरिया को देख कर यकीन नहीं होता कि कट्रीना कैफ किसी रोल में इतने आत्मविश्वास से भरी नजर आ सकती हैं। अपने रूप, यौवन और मादक अदाओं से हिंदी फिल्मों के दर्शकों की फेवरिट बन चुकी कट्रीना को समीक्षकों ने अभी तक सीरियस भूमिकाओं के योग्य नहीं माना। विदेश से भारत आई इस अदाकारा ने प्रकाश झा की फिल्म राजनीति में एक जुझारू राजनीतिज्ञ की भूमिका में सभी को चौंका दिया है। माना जा रहा है कि इस फिल्म में कट्रीना अपने बारे में बनी सारी धारणाओं को तोड़ एक नई छवि के साथ उभरेंगी।

[सीन-2]

राष्ट्रीय पुरस्कार जीतने और खतरों के खिलाड़ी के अगले सीजन की होस्ट की खबरों से सुर्खियों में छाई प्रियंका चोपड़ा ने ट्वीट किया कि वह विशाल भारद्वाज की फिल्म सात खून माफ की शूटिंग के लिए उत्तर भारत के एक अनजान शहर में जा रही हैं। उन्होंने शहर का नाम गुप्त रखा, लेकिन प्रशसकों ने अगले ही दिन बुरका पहन कर जाती प्रियंका चोपड़ा की तस्वीर ऑनलाइन कर फिल्म की लोकेशन और लुक जाहिर कर दी। वह काश्मीर के एक बाग में बुरका पहने नजर आई। ह्वाट्स योर राशि? में वह बारह रूपों में दिखी थीं तो सात खून माफ में उनके सामने नसीरूद्दीन शाह और इरफान खान समेत सात अभिनेता होंगे। उन सभी के साथ प्रियंका चोपड़ा को अपना दम-खम दिखाना पड़ेगा और यह साबित करना होगा कि वह किसी से कम नहीं हैं।

[सीन-3]

गोवा के करीब महाराष्ट्र के छोटे शहर सावंतवाड़ी में रात के तीन बजे हैं। खेत और बगीचों से आ रही झिंगुरों की आवाजें रात की खामोशी का संगीत सुना रही हैं। अंधेरी रात के इस सन्नाटे में सावंतवाड़ी के पास के गांव में पूरी हलचल है। लाइट, कैमरा, साउंड के बाद आशुतोष गोवारिकर के एक्शन कहते ही बंदूक दागने की 'धांय' सुनाई पड़ती है। मानीटर पर हम देखते हैं कि बंगाली स्टाइल में साड़ी पहने दीपिका पादुकोन और अभिषेक बच्चन खिड़कियों से बाहर झांक रहे हैं। यह आशुतोष गोवारिकर की फिल्म खेलें हम जी जान से का एक महत्वपूर्ण सीन है। आजादी की लड़ाई के दिनों में चिटगांव के विद्रोह पर आधारित इस फिल्म में दीपिका पादुकोन क्रांतिकारी कल्पना दत्ता की भूमिका निभा रही हैं।

[सीन-4]

शहरी सभ्यता से दूर केरल के जंगलों में ऐश्वर्या राय को डर है कि कहीं उनके शरीर से जोंक न चिपक जाए। इस खौफ के बावजूद वह पति अभिषेक बच्चन के साथ अस्थायी कैंप में डटी हुई हैं। आधुनिक सुविधाओं से वंचित ऐश्वर्या राय की एक ही चिंता है कि मणिरत्नम को उनका वांछित शॉट मिल जाए। हर सीन को हिंदी में शूट करने के बाद तमिल में शूट किया जा रहा है। डबल मेहनत हो रही है। फिर भी न चेहरे पर शिकन है और न जुबान पर उफ्फ। वह मणिरत्नम की फिल्म रावण में सीता की भूमिका निभा रही हैं। हिंदी और तमिल दोनों भाषाओं में बन रही इस फिल्म में वह कलात्मक चुनौतियों से जूझ रही हैं। कोशिश है कि दर्शकों को उर्जा से भरपूर उनकी भंगिमा दिखे।

[क्या सोचते हैं निर्देशक]

''दीपिका में एक ठहराव है। वह क्लासिकल ब्यूटी है। कल्पना का कैरेक्टर बहुत स्ट्रांग है और दीपिका इस कैरेक्टर को सही प्रभाव के साथ निभा रही है। हिंदी की कामर्शियल फिल्मों में हीरोइनें ज्यादातर गानों और रोमांस के लिए रहती हैं। मेरी कोशिश रहती है कि ऐसा न हो। मैं कहानी लिखते समय हीरोइनों की ठोस मौजूदगी सुनिश्चित करता हूं। फिल्मों में हीरोइनों के महत्वपूर्ण योगदान को रेखांकित करना चाहिए।''

[आशुतोष गोवारिकर]

''पहली फिल्म इरूवर से रावण तक में ऐश्वर्या राय के कमिटमेंट में फर्क नहीं आया है। अभी वह ज्यादा रिफाइंड और मैच्योर हो गई हैं। उम्मीद करता हूं कि वह इसी समर्पण के साथ आगे भी काम करती रहेंगी।''

[मणिरत्नम]

''नयी उम्र की हीरोइनों में प्रियंका चोपड़ा जैसी विविधता कम है। कमीने में उन्होंने मराठी लड़की की भूमिका को जीवंत किया। सात खून माफ में उनकी भूमिका अधिक चुनौतीपूर्ण है। अच्छी बात है कि वह अपनी जिम्मेदारियों को समझती हैं और पूरा सहयोग देती हैं। उन्हें सेट से जाने की जल्दबाजी नहीं रहती। फिल्म के लिए आवश्यक वर्कशॉप में वह सभी के साथ भाग लेती हैं। मैंने हमेशा उन्हें एक हीरो की तरह ही पाया है।''

[विशाल भारद्वाज]

''कट्रीना जैसी समर्पित, विनम्र और लगनशील अभिनेत्री हाल-फिलहाल कोई और नहीं दिखी। वह अपना काम करेक्ट और परफेक्ट करने की कोशिश में रहती हैं। एक दिन वह गलतफहमी में किसी और सीन की तैयारी कर आ गई थी, जबकि हमें शपथ ग्रहण का सीन करना था। कट्रीना ने माफी मांगी। पूरी शपथ को याद किया और अगले दिन एक टेक में शूट किया। मुझे कभी कट्रीना की वजह से दूसरा टेक नहीं लेना पड़ा।''

[प्रकाश झा]

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जीत के लिए तो जोखिम उठाना ही पड़ता है!

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