फिल्‍म समीक्षा : तुम मिलो तो सही

-अजय ब्रह्मात्‍मज 

इस फिल्म को देखने की एक बड़ी वजह नाना पाटेकर और डिंपल कपाडि़या हो सकते हैं। दोनों के खूबसूरत और भावपूर्ण अभिनय ने इस फिल्म की बाकी कमियों को ढक दिया है। उनके अव्यक्त प्रेम और साहचर्य के दृश्यों उम्रदराज व्यक्तियों की भावनात्मक जरूरत जाहिर होती है। तुम मिलो तो सही ऊपरी तौर पर तीन प्रेमी युगलों की प्रेम कहानी लग सकती है, लेकिन सतह के नीचे दूसरी कुलबुलाहटें हैं। कबीर सदानंद अपनी पहली कोशिश में सफल रहते हैं। नाना पाटेकर और डिंपल कपाडि़या दो विपरीत स्वभाव के व्यक्ति हैं। दोनों अकेले हैं। नाना थोड़े अडि़यल और जिद्दी होने के साथ अंतर्मुखी और एकाकी तमिल पुरुष हैं, जबकि डिंपल मुंबई की बिंदास, बातूनी और सोशल स्वभाव की पारसी औरत हैं। संयोग से दोनों भिड़ते, मिलते और साथ होते हैं। इनके अलावा दो और जोडि़यां हैं। सुनील शेट्टी और विद्या मालवड़े के दांपत्य में पैसों और जिंदगी की छोटी प्राथमिकताओं को लेकर तनाव है, जो बड़े शहरों के युवा दंपतियों के बीच आम होता जा रहा है। अंत में सुनील को अपनी गलतियों का एहसास होता है और दोनों की जिंदगी सुगम हो जाती है। रेहान और अंजना दो भिन्न पृष्ठभूमि के युवा हैं और यही उन्हें एक-दूसरे की तरफ खींचता है। कबीर सदानंद ने लकी कैफे को केंद्र बना कर आज की मुंबई की दिक्कतों और मुश्किलों के बीच साथ जीने की स्वाभाविक इच्छा को सुंदर तरीके से चित्रित किया है। फिल्म किसी संदेश या उपदेश के दावे के साथ आरंभ नहीं होती, लेकिन चरित्रों के टकराव और साथ रहने में हमें अनायास ही मिलकर रहने की शिक्षा मिलती है। नाना और डिंपल ने इस फिल्म को बांधे रखा है। लंबे गैप के बाद तुम मिलो तो सही में डिंपल का स्वाभाविक अभिनय देख कर मन में यह सवाल जागता है कि वह एक्टिंग से क्यों दूर रहती हैं? रेहान खान और अंजना सुखानी ने अपनी सीमित भूमिकाओं को ठीक-ठीक निभाया है। दोनों अभी कैमरे के सामने पूरी तरह से खुल नहीं पाए हैं। सुनील शेट्टी की एक्टिंग का अलग अंदाज कुछ दृश्यों में दिखा है। विद्या मालवाड़े अपने इमोशनल सीन में नाटकीय हो गई हैं।

*** तीन स्टार

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