कामेडी का बुद्धिमान चेहरा बोमन ईरानी
-अजय ब्रह्मात्मज
हिंदी फिल्मों में कॉमेडी के इंटेलीजेंट और मैच्योर फेस के रूप में हम सभी बोमन ईरानी को जानते हैं।
44 साल की उम्र में फिल्मों में बोमन देर से आए, लेकिन इतने दुरुस्त आए कि अभी उनके बगैर सीरियस कामेडी की कल्पना नहीं की जा सकती। उन्होंने कामेडी जॉनर की ज्यादा फिल्में नहीं की हैं, लेकिन अपनी अदाओं और भंगिमाओं से वे किरदार को ऐसी तीक्ष्णता दे देते हैं कि वह खुद तो हास्यास्पद हो जाता है, लेकिन दर्शकों के दिल में हंसी की न मिटने वाली लकीर छोड़ा जाता है।
पिछले हफ्ते उनकी फिल्म वेल डन अब्बा आई। इस फिल्म में उन्होंने प्यारे अब्बा के रूप में हंसाने के साथ देश की सोशल और पॉलिटिकल सिचुएशन पर तंज भी किया। यह श्याम बेनेगल की खासियत है, लेकिन उसे पर्दे पर बोमन ईरानी ने बड़ी सहजता के साथ उतारा।
हिंदी फिल्मों में अपनी मजबूत मौजूदगी से वाकिफ बोमन के लिए कॉमेडी केले के छिलके से फिसलना नहीं है। बोमन कहते हैं, इस पर कोई बचा हंस सकता है, क्योंकि वह चलते-फिरते व्यक्ति को गिरते देख कर चौंकता है और उस गिरने के पीछे का लॉजिक नहीं समझ पाने के कारण हंसता है। मेरी कामेडी केले के छिलके से फिसलने के बाद या उसके पहले शुरू होती है। आपको मालूम है कि कुछ घटने वाला है, लेकिन मैं कैसे रिएक्ट करूंगा या करता हूं, उसी से मेरे परफार्मेस में भिन्नता आती है। बोमन खुद को लकी मानते हैं कि वे फिल्मों में देर से आए और उसकी वजह से उन्हें खास किस्म के रोल मिले।
हालांकि जोश से सन 2000 में उन्होंने शुरुआत की, लेकिन लेट्स टॉक से उन्हें पहचान मिली। राजकुमार हिरानी की मुन्नाभाई एमबीबीएस में डा. जेसी अस्थाना के रोल में बोमन ने बता दिया कि वे पहले के कामेडियन की तरह सिर्फ चेहरे बना-बिगाड़कर या भोंडी हरकत कर दर्शकों को नहीं हंसाएंगे। उनकी आवाज और संवाद अदायगी के खास अंदाज ने उन्हें सबसे अलग बना दिया और सिलसिला चल निकला।
अपने फिल्मी सफर से संतुष्ट बोमन ने कहा, मैंने लगभग 50 फिल्में कर ली हैं या जल्दी ही कर लूंगा, लेकिन ऐसा लगता है कि मैं सदियों से फिल्में ही कर रहा हूं। मुझे सारे बड़े डायरेक्टर और बैनरों ने आजमाया और अपनी जरूरत के लिए फिट पाया। हमारी उम्र के एक्टर अगर फिल्मों में फिट होते हैं, तभी उन्हें रोल मिलते हैं। यह सचाई है कि हमारे लिए रोल नहीं लिखे जाते। हां, रोल के लिए चुन लिए जाने के बाद हमारी कमियों के हिसाब से हमें काटा-छांटा जाता है। कोशिश की जाती है कि रोल में हम फिट हो जाएं। इसी काट-छांट में जो हरकतें करता हूं, उससे आपको हंसी आती है। आपको लगता है कि मैं हंसा रहा हूं। वास्तव में मैं अपनी जान की दुहाई और उस रोल से होने वाली कमाई के लिए कसमसा रहा होता हूं। सच कहूं, तो हम सभी एक्टर बंदर होते हैं और निर्देशक मदारी, जो हमें जमा हुई भीड़ के मुताबिक करतब दिखाने के लिए कहता है।
अपनी कॉमेडी में गंभीरता और सैटेरिकल होने के पुट को वे अपनी उम्र के साथ जोड़ते हैं। उसके अलावा वे अपनी पारसी पृष्ठभूमि का योगदान भी मानते हैं। उन्होंने बताया, एक तो मैं पारसी हूं। हम लोगों का सेंस ऑफ ह्यूमर थोड़ा अलग होता है। हम लोग निजी जिंदगी में एक-दूसरे की चुटकी लेने से नहीं चूकते। फिल्मों में पारसियों को बेवकूफ और जिद्दी व्यक्ति के रूप में दिखाया जाता रहा है। हम लोग वैसे नहीं होते। हमारे बोलने में नाक से आवाज आती है, लेकिन हम नकचढ़े नहीं होते। एक तो मैं पारसी और ऊपर से इस उम्र का, लिहाजा ओवरबोर्ड एक्टिंग कर ही नहीं सकता। मैं खुशनसीब हूं कि दर्शकों ने मुझे पसंद कर लिया।
अपनी अभिनय शैली के बारे में बोमन का कहना है, मैं अलग से कुछ नहीं सोचता। सबसे पहले निर्देशक की सलाह सुनता हूं और फिर उसके बताए तरीके से सामने बैठे या खड़े एक्टर के साथ मेल-जोल कर थोड़ी-बहुत एक्टिंग कर लेता हूं। हर एक्टर का अभिनय सहयोगी एक्टर के काम से चमकता है। वायरस का ही किरदार देखें। अगर साथ में आमिर खान नहीं होता, तो मैं कितना बेवकूफ लगता। वैसे मुझे बेवकूफ ही लगता था। मेरे कहने का मतलब समझ रहे हैं ना!
बोमन वेल डन अब्बा को अपने करियर का सबसे बड़ा चैलेंज मानते हैं। श्याम बेनेगल की तारीफ करते हुए वे कहते हैं, पहली बार उनकी फिल्म में मुझे लीड रोल मिला। साथ में कोई स्टार या आइटम भी नहीं था।
उस फिल्म में स्टोरी और राइटिंग ही स्टार है और फिर श्याम बाबू की क्या टीम है? छोटे-छोटे रोल में आए एक्टर के परफार्मेस भी दंग करते हैं। मुझे तो यही अछा लगा कि श्याम बाबू ने मुझे अरमान के रोल के लिए चुना। हिंदी फिल्मों की कॉमेडी और उसके भविष्य की बात चली, तो बोमन ने खास अंदाज में आंख मारते हुए बताया, देखो, अपने को काम मिलता रहेगा। बदहाली, मुश्किल और तेज भागती जिंदगी में अब फिल्मों से ही हंसने के अवसर मिलते हैं। आप याद करो ना कि कब अपनी बीवी, बचों या मां-पिताजी के साथ किसी बात पर आप लास्ट टाइम हंसे थे। जिसे देखो वही गुस्से में है। नाराजगी के साथ शिकायतों का पुलिंदा लिए घूम रहा है। हम उसकी जिंदगी में हंसने के पल लाते हैं, क्योंकि उसके आगे-पीछे हमारी एक-दूसरे से कोई अपेक्षा नहीं रहती।
पहचान और मशहूरियत के बीच बोमन को तब तकलीफ होती है, जब सरेराह लोग उन्हें मसखरा समझ कर उनसे लतीफे या ऐसी हरकत की उम्मीद करते हैं कि उन्हें हंसने का मौका मिले। उन्होंने सुनाया कि एक बार सुबह-सुबह फ्लाइट पकड़ने के लिए सिक्योरिटी चेक की लाइन में लगा था। कुछ सहयात्री घेर कर खड़े हो गए और फिर कुछ सुनाने की फरमाइश करने लगे। मुझे अच्छा नहीं लगा।
हमारा काम पर्दे पर हंसाना है। वास्तविक जिंदगी में हम भी दर्शकों की तरह आम आदमी हैं। हर दम लतीफेबाजी थोड़े ही करते रहते हैं। ऐसे ही तो नहीं फिसल जाएंगे। सिचुएशन बने। केले का छिलका गिरा हो और हमारी नजर उस पर नहीं पड़े तो जाहिर है कि फिसलेंगे और आप हंसेंगे। आप कहेंगे कि फिसल कर दिखाओ, तो कैसे चलेगा?
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