फिल्‍म समीक्षा : शापित

डराने में सफल 

-अजय ब्रह्मात्‍मज

हिंदी में बनी डरावनी फिल्में लगभग एक जैसी होती हैं। किसी अंधविश्वास को आधार बनाकर कहानी गुंथी जाती है और फिर तकनीक के जरिए दर्शकों को चौंकाने की कोशिश की जाती है। साउंड इफेक्ट से दृश्यों का झन्नाटेदार अंत किया जाता है और हम अपेक्षित ढंग से अपनी सीट पर उछल पड़ते हैं। विक्रम भट्ट अपनी डरावनी फिल्मों में कुछ अलग करते हैं और दर्शकों में डर पैदा करने में सफल होते हैं।

शापित में अमन अपनी प्रेमिका काया के परिवार को मिले पुराने शाप को खत्म करने के लिए आत्मा की तलाश में निकलता है। इस खोज में डॉ ़पशुपति उसके साथ हैं। पता चलता है किएक दुष्ट आत्मा सदियों पहले दिए अभिशाप की रक्षा कर रही है। उस आत्मा की मुक्ति के बाद ही शाप से मुक्त हुआ जा सकता है। चूंकि अमन और काया के बीच बेइंतहा प्यार है, इसलिए अमन हर जोखिम के लिए तैयार है।

विक्रम भट्ट ने स्पेशल इफेक्ट से दृश्यों को डरावना बनाने के साथ उनके पीछे एक लॉजिक भी रखा है। अपनी खासियत के मुताबिक उन्होंने मुख्य किरदारों की प्रेमकहानी में दुष्टात्मा को विलेन की तरह पेश किया है। अतीत में लौटने केदृश्य सुंदर हैं। विक्रम ने पीरियड गढ़ने और उन्हें फिल्मांकित करने में अपनी दक्षता दिखाई है। कला निर्देशक से उन्हें इस फिल्मांकन में भरपूर सहयोग मिला है।

पहली फिल्म के लिहाज से आदित्य नारायण निराश नहीं करते। उन्होंने पूरे आत्मविश्वास के साथ अमन के किरदार को निभाया है। कद-काठी में हिंदी फिल्मों के हीरो की प्रचलित छवि से अलग होने के बावजूद आदित्य नारायण अपने अभिनय से प्रभावित करते हैं। नयी अभिनेत्री श्वेता अग्रवाल निराश करती हैं। दोनों के बीच आवश्यक केमिस्ट्री पैदा नहीं हो पाई है। छोटी भूमिका में भी शुभ जोशी पर ध्यान जाता है।

*** तीन स्टार

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