पापुलैरिटी को एंजाय करते हैं शाहरुख
-अजय ब्रह्मात्मज
शाहरुख खान से मिलना किसी लाइव वायर को छू देने की तरह है। उनकी मौजूदगी से ऊर्जा का संचार होता है और अगर वे बातें कर रहे हों तो हर मामले को रोशन कर देते हैं। कई बार उनका बोलना ज्यादा और बड़बोलापन लगता है, लेकिन यही शाहरुख की पहचान है। वे अपने स्टारडम और पापुलैरिटी को एंजाय करते हैं। वे इसे अपनी मेहनत और दर्शकों के प्यार का नतीजा मानते हैं। उन्होंने इस बातचीत के दरम्यान एक प्रसंग में कहा कि हम पढ़े-लिखे नहीं होते तो इसे लक कहते ़ ़ ़ शाहरुख अपनी उपलिब्धयों को भाग्य से नहीं जोड़ते। बांद्रा के बैंडस्टैंड पर स्थित उनके आलीशान बंगले मन्नत के पीछे आधुनिक सुविधाओं और साज-सज्जा से युक्त है उनका दफ्तर। पूरी चौकसी है। फिल्मी भाषा में कहें तो परिंदा भी पर नहीं मार सकता, लेकिन फिल्म रिलीज पर हो तो पत्रकारों को आने-जाने की परमिशन मिल जाती है।
उफ्फ! ये ट्रैफिक जाम
मुंबई में कहीं भी निकलना और आना-जाना मुश्किल हो गया है। मन्नत से यशराज स्टूडियो (12-15 किमी) जाने में डेढ़ घंटे लग जाते हैं। मैं तो जाने से कतराता हूं। मेरा नया आफिस खार में बन रहा है। लगता है कि यहीं है, लेकिन 35 मिनट से ज्यादा लगते हैं। कई बार ऐसा होता है कि 10-15 मिनट के काम से आफिस निकलता हूं, लेकिन लौटते-लौटते ढाई घंटे बीत जाते हैं। सड़कों पर बहुत क्राउड हो गया है अभी। कार्टर रोड पर हमेशा भीड़ लगी रहती है। मैं गलियों से निकलता हूं फिर भी फंस जाता हूं।
बेस्ट सिटी, दिल्ली
दिल्ली इस वक्त इंडिया के बेस्ट सिटी हो गई है। इंफ्रास्ट्रक्चर इतना अच्छा हो गया है। मैट्रो चालू हो गया है। ब्रिज बन गए हैं। सड़क पर कहीं रुकना नहीं पड़ता। मैं अभी तक मैट्रो में नहीं चढ़ा हूं। एक बार जाना था। मुझे ओपनिंग के लिए भी बुलाया था। मैं जा नहीं सका। अभी तो मुंबई में भी मैट्रो आ रही है। तब शायद मुंबई में कहीं आना-जाना आसान हो जाए।
सिक्युरिटी और प्रशंसक
दिल्ली और नॉर्थ में सिक्युरिटी का प्राब्लम हो जाता है। मैं कई बार सुनता हूं कि एक्टर गए और झगड़ा हो गया। मैं बहुत क्लियर हूं इस मामले में। अच्छी सिक्युरिटी रखो। किसी को चोटें-वोटें न लगें। भीड़ और भगदड़ में क्या होता है? हम तो भाग जाते हैं गाड़ी में बैठकर ़ ़ ़ मैंने एक-दो बार देखा है, कुछ लोग गिर जाते हैं। बहुत बुरा लगता है। एक बार किसी सिनेमाघर की ओपनिंग में गया था। कैमरामैन पीछे खिसकते-खिसकते कांच तोड़ गया। अच्छा हुआ कि नीचे नहीं गिरा, नहीं तो जान भी जा सकती थी। कोलकाता में काफी भीड़ लग जाती है। पिछले दिनों कोई गुवाहाटी बुला रहा था। मैंने समझाया कि वहां फंक्शन न करें। सिक्युरिटी की समस्या से कई शहरों में नहीं जा पाता। अपने सभी प्रशंसकों से मिलना नहीं हो पाता।
माय नेम इज खान
अलग किस्म की फिल्म है। वो सभी चीजें डालने की कोशिश की है, जो होनी चाहिए। यह इंडियन सिनेमा है। ज्यादा तामझाम नहीं रखा है। फिल्म की कास्ट और मेकिंग कमर्शियल रखी है। कैरेक्टर बहुत अमीर नहीं हैं, लेकिन लुक में रिचनेस है। बड़ी फिल्म है। अमेरिका में शूट हुई है। यह चक दे नहीं है। इसमें लव स्टोरी भी है। काजोल, शाहरुख और करण हों तो दर्शक की उम्मीदें रहती हैं। हम उन्हें निराश नहीं कर सकते। यह एक ड्रामैटिक फिल्म है। इस फिल्म को दूर से देखो तो एक लव स्टोरी और मुसलमान की कहानी लगती है। पास आकर देखो हिंदू, मुसलमान, सिख और ईसाई में फर्क नहीं दिखेगा। सच कहूं तो यह एक साउथ एशियन व्यक्ति की कहानी है, जो अमेरिका में रहता है। इस फिल्म से साउथ एशिया के सभी लोग आइडेंटिफाय करेंगे। अमेरिका में हमें बराबरी का दर्जा नहीं मिला हुआ है। फर्क बरकरार है। ईस्ट और वेस्ट की सोच का भी फर्क है।
टेररिज्म का बैकड्राप
यह फिल्म टेररिज्म के ऊपर नहीं है। इसमें उसका बैकड्रॉप है। उस माहौल में कुछ किरदार फंस गए हैं। इस फिल्म के किरदारों पर टेररिज्म का बटर फ्लाय इफेक्ट है। ऐसे इफेक्ट में हम शामिल नहीं होते हैं, लेकिन प्रभावित होते हैं। उदाहरण केलिए किसी की बीवी रूठ के विदेश जा रही है। वह उसे मनाने जा रहा है। टैक्सी बुलाता है। तभी शहर में दंगा भड़क जाता है और टैक्सी ड्रायवर को कोई मार देता है। वह व्यक्ति समय पर एयरपोर्ट नहीं पहुंच पाता। बीवी विदेश चली जाती है। अब उस दंगे से उस व्यक्ति की जिंदगी तो तबाह हो गई, लेकिन वह दंगे में शामिल नहीं था। माय नेम इज खान के किरदार इसी तरह टेररिज्म से प्रभावित होते हैं।
सच्चे किरदारों पर आधारित
यह फिल्म सच्चे किरदारों पर आधारित है। मैं मिल चुका हूं उनसे। मियां मुसलमान हैं और बीवी हिंदू। मियां ने एक दंगे में उसे बचाया था। दंगे में उसके पति को मार दिया गया था। बाद में दोनों ने शादी कर ली थी। अमेरिका में 9-11 की घटना के तीन महीने बाद दिसंबर में वे बेचारे ईद मना रहे थे। किसी ने शिकायत कर दी तो पुलिस पूछताछ के लिए ले गई। बीवी ने तब अपनी बीमार बेटी का खयाल करते हुए पुलिस से कह दिया कि मैं तो हिंदू हूं ... मैं जाऊं। पुलिस वैसे भी उन्हें छोड़ने वाली थी। बीवी पहले चली गई। मियां आधे घंटे के बाद घर पहुंचा। उसने बीवी से पूछा, मैंने तुम्हारी जान बचाई। तुम्हारा बच्चा मुझे बाप जैसा प्यार करता है और तुम्हें यह कहने की जरूरत पड़ गई कि तुम मुसलमान नहीं हो। मैं तुम्हें नहीं समझा सका कि मुसलमान होना गलत नहीं है तो दुनिया को क्या समझाऊंगा। तब से दोनों आपस में बातचीत नहीं करते। शादीशुदा हैं। एक घर में रहते हैं, लेकिन उनके संबंध खत्म हो गए हैं। कल हो न हो के समय की बात है। हमें आयडिया अच्छा लगा तो हम ने इस पर काम किया। 9-11 के टेररिस्ट अटैक करने वाले को क्या मालूम कि उसकी वजह से एक मियां-बीवी की जिंदगी तबाह हो गई।
इमोशनल रियलिटी
इमोशनल रियलिटी यूनिवर्सल होती है। किसी के मरने पर सभी को दुख होता है। जन्म लेने पर खुशी होती है। प्यार सबको अच्छा लगता है। झगड़े से सभी डरते हैं। आप दुनिया के किसी भी कोने में चले जाएं। सभी जगह एक ही भाव होते हैं। यही हमारा नवरस है। जर्मनी में मेरे लाखों फैन हैं। उन्हें भाषा समझ में नहीं आती, गाना समझ में नहीं आता, मेरी शक्ल समझ में नहीं आती, लेकिन पर्दे पर मुझे रोता हुआ देख कर रोते हैं। अब आप अवतार ही देखें। इस फिल्म को देखते हुए आप किरदारों के इमोशन के साथ जुड़ जाते हैं। इमोशनल रियलिटी सभी को अपील करती है। मुझे विश्वास है कि अगर हमने अच्छी एक्टिंग की है और फिल्म की स्टोरी लाइन सही है तो फिल्म लोगों को पसंद आएगी, क्योंकि वे इमोशनली कनेक्ट होंगे।
नए डायरेक्टर
नए डायरेक्टर में मुझे इम्तियाज अली, विशाल भारद्वाज, अनुराग कश्यप और अनुराग बसु पसंद हैं। ये सिनेमा का विस्तार कर रहे हैं। इनकी फिल्मों से इंडियन सिनेमा का वर्ल्ड व्यू बदल सकता है। उनकी फिल्मों में कुछ इंटरनेशनल बातें होती हैं। अनुराग कश्यप थोड़े ऑफ बीट हैं, अगर इन सभी के लिए प्लेटफार्म क्रिएट हो तो अच्छी बात होगी।
प्राइस नहीं मांगता
ज्यादातर लोगों को यकीन नहीं होगा, लेकिन जिन फिल्मों में मैं एक्टिंग करता हूं, उनके लिए प्राइस नहीं मांगता। अगर फिल्म पहले हफ्ते चल जाती है तो प्रोडयूसर खुद आकर पैसे दे देते हैं। पिछले दस-बारह साल में किसी प्रोड्यूसर को मैंने नहीं बताया कि ये मेरा प्राइस है। किसी से निगोशिएट नहीं किया। शुरू में करते थे, जब पैसे नहीं थे। इस से एक मैसेज गया कि पैसे देकर मुझ से फिल्म नहीं करा सकते। पैसे देकर आप बाकी सब कुछ करा सकते हैं। एड करा सकते हैं। डांस करा सकते हैं। पार्टी कर लें। फिल्म की वजह से ही मैं हूं, वो नहीं बिकता। वह दिल से होता है तो होता है, अन्यथा नहीं होता।
विवेक वासवानी
मैं सच कहता हूं कि अगर विवेक वासवानी नहीं होता तो मैं मुंबई में नहीं होता। झूठे दिल से नहीं, सच बता रहा हूं। उसने अजीज मिर्जा को पटाया, जूही चावला को लाया। अमृता सिंह को घुमाया। नाना पाटेकर को समझाया। जी पी सिप्पी से मुझे राजू बन गया जैंटलमैन में लांच करवा दिया। उसने ऐसा समां बांध दिया था कि जिस पार्टी में जाऊं, सामने से लोग ऐसे मिलते थे कि इंडिया का सबसे बड़ा स्टार आ गया। उस रेपुटेशन से ही मुझे एक-दो साल काम मिले।
एक दिन में चार पिक्चर
मुझे अच्छी तरह याद है कि एक ही दिन में चार पिक्चर साइन की थी। दिल आशना है, किंग अंकल, राजू बन गया जेंटल मैन और चमत्कार चारों फिल्में एक ही दिन मिली थीं। इतनी अच्छी शुरूआत रही।
प्रिपरेशन
मैं रिजवान खान वाली बीमारी से ग्रस्त दो लोगों से मिला हूं। मेरे दोस्त ले आए थे। उनसे 14 दिनों तक मिला। वे चुपचाप बैठते हैं। बोलते नहीं हैं। मैं उन्हें बैठे हुए देखता और आब्जर्ब करता था। फिर मैंने एक का वाक, एक का बाल, थोड़ा अटक कर बोलना या रिपीट करना ़ ़ ़ ये सब नोट किया। वे आंखें मिलाकर बातें नहीं करते। वे जमीन पर देखकर बातें करते हैं। यह फिल्म रोमांटिक है, लेकिन आंखों से आंखों के मिलने का चक्कर ही नहीं है। मुझे इंटरेस्टिंग लगा यह कंसेप्ट कि डू रोमांस विदाउट एक्सप्रेसिंग। उन्हें छूना नहीं आता। गले मिलना नहीं आता। वैसे वे बहुत इंटेलिजेंट होते हैं। इस किरदार को निभाने के लिए आंखें भी चढ़ाई हैं। एक रोमांटिक सीन में मेरी आंखें टेढ़ी लगेंगी।
सीरियस हूं मैं भी
लोग मुझ से बार-बार कहते हैं कि मैं हर फिल्म में एक जैसा ही दिखता हूं तो वही मैंने भी कहना शुरू कर दिया। ऐसे सवालों से मैं गुस्सा नहीं होता। मैं अपनी एक्टिंग के बारे में सीरियसली बातें नहीं करता तो इसका मतलब यह नहीं है कि मैं सीरियसली एक्टिंग नहीं करता हूं। अगर मैं हर फिल्म में सेम हूं तो लोग बीस सालों से मेरी फिल्में क्यों देख रहे हैं? एक ही फिल्म देखते रहते। हर फिल्म में कुछ तो अलग करता ही हूं न। क्या अभी एक्टिंग के बारे में बोलना शुरू कर दूं कि क्या-क्या किया? आपको जवाब दे सकता था कि मैंने बहुत मेहनत की और लीन हो गया रोल के अंदर और छह महीने तक... ऑस्कर वाइल्ड ने लिखा था कि दुनिया का सबसे बोरिंग आदमी होता है वह, जो हाउ आर यू पूछने पर अपने बारे में बताने लगता है। टेक्नीकल बातें मैं क्या बताऊं? मौका और दस्तूर देखकर हम लोग काम करते हैं। डान एकदम स्टाइलिश है तो स्टाइल से चलूंगा, बैठूंगा, बातें करूंगा। बाल, कपड़े, बंदूक ़ ़ ़ सब कुछ स्टाइल में होंगे। अभी रा 1 करूंगा तो वही सुपरहीरो बनूंगा। मैं तो कहता हूं कि इंटेंस एक्टर से जरा बगीचे में तुझे देखा तो ये जाना सनम करा के दिखा दो। मैं वो कर सकता हूं और चक दे भी कर सकता हूं। अभी मुझे सीरियस एक्टिंग नहीं करनी है। मुझे कुछ हंसी की पिक्चर करनी है।
अवार्ड और एक्टिंग
किसी ने कहा था कि कामेडी करो तो लोग उसे एक्टिंग न हीं मानते। मुझे लगता है कि गोविंदा को अवश्य नेशनल अवार्ड मिलना चाहिए। मेरी बड़ी तमन्ना है नेशनल अवार्ड जीतने की। मुझे लगा कि चक दे और स्वदेस में मैंने अच्छा किया। वही एक अवार्ड मुझे नहीं मिला है। मेरी तमन्ना है कि आस्कर मिलने से पहले नेशनल मिल जाए तो अच्छा रहेगा। नहीं तो सभी को बुरा लगेगा कि देखो आस्कर मिल गया, नेशनल नहीं मिला। नेशनल अवार्ड मिले तो बच्चे भी खुश होंगे।
करण जौहर
वे जिस उम्र और मुकाम पर रहते हैं, उसी पर फिल्म बनाते हैं। 25-26 साल की उम्र में उन्होंने कुछ कुछ होता है बनायी थी। फिर डैडी के साथ उनका रिलेशन बेहतर हुआ और फैमिली को करीब से समझा तो उन्होंने कभी खुशी कभी गम बनाई। कल हो न हो बनाते समय उनके पिता की मौत हुई। उसके बहुत उनके सारे दोस्तों के विवाह टूट रहे थे तो उन्होंने कभी अलविदा ना कहना बनाई। अभी उन्होंने माय नेम इज खान बनाई है। इसमें आज का मुद्दा है।
इंडिया का मुसलमान
मेरी जिंदगी खुशहाल है। मैं इंडिया का मुसलमान हूं। हिंदू डोमिनेटेड देश में सुपर स्टार हूं। हिंदू से शादी हुई है मेरी। मुझे कभी कोई परेशानी नहीं हुई। न तो देश के अंदर और न देश के बाहर। मैं तो हर तरह से सही हूं, लेकिन दूसरों की कहानियां सुनता हूं तो मुझे लगता है कि इस पर बातें होनी चाहिए। मैंने महसूस किया है कि अभी परसेप्शन बदल रहा है।
एक किस्सा
दुनिया के एक अमीर आदमी से एक रिपोर्टर ने पूछा कि तुम्हारे पास इतने पैसे हैं। बड़ा बिजनेस है। हर बार ठीक बिजनेस कैसे कर लेते हो? अमीर ने कहा, हमेशा सही डिसीजन लेता हूं। भला यह भी कोई बात हुई? चलो, यही बताओ कि सही डिसीजन कैसे लेते हो? रिपोर्टर का अगला सवाल था। अमीर आदमी ने जवाब दिया, एक्सपीरिएंस से... फिर रिपोर्टर ने पूछा, एक्सपीरिएंस कहां से आया? अमीर ने जवाब दिया, गलत डिसीजन से, बार-बार गलत डिसीजन लेने से एक्सपीरिएंस हो गया।
उफ्फ! ये ट्रैफिक जाम
मुंबई में कहीं भी निकलना और आना-जाना मुश्किल हो गया है। मन्नत से यशराज स्टूडियो (12-15 किमी) जाने में डेढ़ घंटे लग जाते हैं। मैं तो जाने से कतराता हूं। मेरा नया आफिस खार में बन रहा है। लगता है कि यहीं है, लेकिन 35 मिनट से ज्यादा लगते हैं। कई बार ऐसा होता है कि 10-15 मिनट के काम से आफिस निकलता हूं, लेकिन लौटते-लौटते ढाई घंटे बीत जाते हैं। सड़कों पर बहुत क्राउड हो गया है अभी। कार्टर रोड पर हमेशा भीड़ लगी रहती है। मैं गलियों से निकलता हूं फिर भी फंस जाता हूं।
बेस्ट सिटी, दिल्ली
दिल्ली इस वक्त इंडिया के बेस्ट सिटी हो गई है। इंफ्रास्ट्रक्चर इतना अच्छा हो गया है। मैट्रो चालू हो गया है। ब्रिज बन गए हैं। सड़क पर कहीं रुकना नहीं पड़ता। मैं अभी तक मैट्रो में नहीं चढ़ा हूं। एक बार जाना था। मुझे ओपनिंग के लिए भी बुलाया था। मैं जा नहीं सका। अभी तो मुंबई में भी मैट्रो आ रही है। तब शायद मुंबई में कहीं आना-जाना आसान हो जाए।
सिक्युरिटी और प्रशंसक
दिल्ली और नॉर्थ में सिक्युरिटी का प्राब्लम हो जाता है। मैं कई बार सुनता हूं कि एक्टर गए और झगड़ा हो गया। मैं बहुत क्लियर हूं इस मामले में। अच्छी सिक्युरिटी रखो। किसी को चोटें-वोटें न लगें। भीड़ और भगदड़ में क्या होता है? हम तो भाग जाते हैं गाड़ी में बैठकर ़ ़ ़ मैंने एक-दो बार देखा है, कुछ लोग गिर जाते हैं। बहुत बुरा लगता है। एक बार किसी सिनेमाघर की ओपनिंग में गया था। कैमरामैन पीछे खिसकते-खिसकते कांच तोड़ गया। अच्छा हुआ कि नीचे नहीं गिरा, नहीं तो जान भी जा सकती थी। कोलकाता में काफी भीड़ लग जाती है। पिछले दिनों कोई गुवाहाटी बुला रहा था। मैंने समझाया कि वहां फंक्शन न करें। सिक्युरिटी की समस्या से कई शहरों में नहीं जा पाता। अपने सभी प्रशंसकों से मिलना नहीं हो पाता।
माय नेम इज खान
अलग किस्म की फिल्म है। वो सभी चीजें डालने की कोशिश की है, जो होनी चाहिए। यह इंडियन सिनेमा है। ज्यादा तामझाम नहीं रखा है। फिल्म की कास्ट और मेकिंग कमर्शियल रखी है। कैरेक्टर बहुत अमीर नहीं हैं, लेकिन लुक में रिचनेस है। बड़ी फिल्म है। अमेरिका में शूट हुई है। यह चक दे नहीं है। इसमें लव स्टोरी भी है। काजोल, शाहरुख और करण हों तो दर्शक की उम्मीदें रहती हैं। हम उन्हें निराश नहीं कर सकते। यह एक ड्रामैटिक फिल्म है। इस फिल्म को दूर से देखो तो एक लव स्टोरी और मुसलमान की कहानी लगती है। पास आकर देखो हिंदू, मुसलमान, सिख और ईसाई में फर्क नहीं दिखेगा। सच कहूं तो यह एक साउथ एशियन व्यक्ति की कहानी है, जो अमेरिका में रहता है। इस फिल्म से साउथ एशिया के सभी लोग आइडेंटिफाय करेंगे। अमेरिका में हमें बराबरी का दर्जा नहीं मिला हुआ है। फर्क बरकरार है। ईस्ट और वेस्ट की सोच का भी फर्क है।
टेररिज्म का बैकड्राप
यह फिल्म टेररिज्म के ऊपर नहीं है। इसमें उसका बैकड्रॉप है। उस माहौल में कुछ किरदार फंस गए हैं। इस फिल्म के किरदारों पर टेररिज्म का बटर फ्लाय इफेक्ट है। ऐसे इफेक्ट में हम शामिल नहीं होते हैं, लेकिन प्रभावित होते हैं। उदाहरण केलिए किसी की बीवी रूठ के विदेश जा रही है। वह उसे मनाने जा रहा है। टैक्सी बुलाता है। तभी शहर में दंगा भड़क जाता है और टैक्सी ड्रायवर को कोई मार देता है। वह व्यक्ति समय पर एयरपोर्ट नहीं पहुंच पाता। बीवी विदेश चली जाती है। अब उस दंगे से उस व्यक्ति की जिंदगी तो तबाह हो गई, लेकिन वह दंगे में शामिल नहीं था। माय नेम इज खान के किरदार इसी तरह टेररिज्म से प्रभावित होते हैं।
सच्चे किरदारों पर आधारित
यह फिल्म सच्चे किरदारों पर आधारित है। मैं मिल चुका हूं उनसे। मियां मुसलमान हैं और बीवी हिंदू। मियां ने एक दंगे में उसे बचाया था। दंगे में उसके पति को मार दिया गया था। बाद में दोनों ने शादी कर ली थी। अमेरिका में 9-11 की घटना के तीन महीने बाद दिसंबर में वे बेचारे ईद मना रहे थे। किसी ने शिकायत कर दी तो पुलिस पूछताछ के लिए ले गई। बीवी ने तब अपनी बीमार बेटी का खयाल करते हुए पुलिस से कह दिया कि मैं तो हिंदू हूं ... मैं जाऊं। पुलिस वैसे भी उन्हें छोड़ने वाली थी। बीवी पहले चली गई। मियां आधे घंटे के बाद घर पहुंचा। उसने बीवी से पूछा, मैंने तुम्हारी जान बचाई। तुम्हारा बच्चा मुझे बाप जैसा प्यार करता है और तुम्हें यह कहने की जरूरत पड़ गई कि तुम मुसलमान नहीं हो। मैं तुम्हें नहीं समझा सका कि मुसलमान होना गलत नहीं है तो दुनिया को क्या समझाऊंगा। तब से दोनों आपस में बातचीत नहीं करते। शादीशुदा हैं। एक घर में रहते हैं, लेकिन उनके संबंध खत्म हो गए हैं। कल हो न हो के समय की बात है। हमें आयडिया अच्छा लगा तो हम ने इस पर काम किया। 9-11 के टेररिस्ट अटैक करने वाले को क्या मालूम कि उसकी वजह से एक मियां-बीवी की जिंदगी तबाह हो गई।
इमोशनल रियलिटी
इमोशनल रियलिटी यूनिवर्सल होती है। किसी के मरने पर सभी को दुख होता है। जन्म लेने पर खुशी होती है। प्यार सबको अच्छा लगता है। झगड़े से सभी डरते हैं। आप दुनिया के किसी भी कोने में चले जाएं। सभी जगह एक ही भाव होते हैं। यही हमारा नवरस है। जर्मनी में मेरे लाखों फैन हैं। उन्हें भाषा समझ में नहीं आती, गाना समझ में नहीं आता, मेरी शक्ल समझ में नहीं आती, लेकिन पर्दे पर मुझे रोता हुआ देख कर रोते हैं। अब आप अवतार ही देखें। इस फिल्म को देखते हुए आप किरदारों के इमोशन के साथ जुड़ जाते हैं। इमोशनल रियलिटी सभी को अपील करती है। मुझे विश्वास है कि अगर हमने अच्छी एक्टिंग की है और फिल्म की स्टोरी लाइन सही है तो फिल्म लोगों को पसंद आएगी, क्योंकि वे इमोशनली कनेक्ट होंगे।
नए डायरेक्टर
नए डायरेक्टर में मुझे इम्तियाज अली, विशाल भारद्वाज, अनुराग कश्यप और अनुराग बसु पसंद हैं। ये सिनेमा का विस्तार कर रहे हैं। इनकी फिल्मों से इंडियन सिनेमा का वर्ल्ड व्यू बदल सकता है। उनकी फिल्मों में कुछ इंटरनेशनल बातें होती हैं। अनुराग कश्यप थोड़े ऑफ बीट हैं, अगर इन सभी के लिए प्लेटफार्म क्रिएट हो तो अच्छी बात होगी।
प्राइस नहीं मांगता
ज्यादातर लोगों को यकीन नहीं होगा, लेकिन जिन फिल्मों में मैं एक्टिंग करता हूं, उनके लिए प्राइस नहीं मांगता। अगर फिल्म पहले हफ्ते चल जाती है तो प्रोडयूसर खुद आकर पैसे दे देते हैं। पिछले दस-बारह साल में किसी प्रोड्यूसर को मैंने नहीं बताया कि ये मेरा प्राइस है। किसी से निगोशिएट नहीं किया। शुरू में करते थे, जब पैसे नहीं थे। इस से एक मैसेज गया कि पैसे देकर मुझ से फिल्म नहीं करा सकते। पैसे देकर आप बाकी सब कुछ करा सकते हैं। एड करा सकते हैं। डांस करा सकते हैं। पार्टी कर लें। फिल्म की वजह से ही मैं हूं, वो नहीं बिकता। वह दिल से होता है तो होता है, अन्यथा नहीं होता।
विवेक वासवानी
मैं सच कहता हूं कि अगर विवेक वासवानी नहीं होता तो मैं मुंबई में नहीं होता। झूठे दिल से नहीं, सच बता रहा हूं। उसने अजीज मिर्जा को पटाया, जूही चावला को लाया। अमृता सिंह को घुमाया। नाना पाटेकर को समझाया। जी पी सिप्पी से मुझे राजू बन गया जैंटलमैन में लांच करवा दिया। उसने ऐसा समां बांध दिया था कि जिस पार्टी में जाऊं, सामने से लोग ऐसे मिलते थे कि इंडिया का सबसे बड़ा स्टार आ गया। उस रेपुटेशन से ही मुझे एक-दो साल काम मिले।
एक दिन में चार पिक्चर
मुझे अच्छी तरह याद है कि एक ही दिन में चार पिक्चर साइन की थी। दिल आशना है, किंग अंकल, राजू बन गया जेंटल मैन और चमत्कार चारों फिल्में एक ही दिन मिली थीं। इतनी अच्छी शुरूआत रही।
प्रिपरेशन
मैं रिजवान खान वाली बीमारी से ग्रस्त दो लोगों से मिला हूं। मेरे दोस्त ले आए थे। उनसे 14 दिनों तक मिला। वे चुपचाप बैठते हैं। बोलते नहीं हैं। मैं उन्हें बैठे हुए देखता और आब्जर्ब करता था। फिर मैंने एक का वाक, एक का बाल, थोड़ा अटक कर बोलना या रिपीट करना ़ ़ ़ ये सब नोट किया। वे आंखें मिलाकर बातें नहीं करते। वे जमीन पर देखकर बातें करते हैं। यह फिल्म रोमांटिक है, लेकिन आंखों से आंखों के मिलने का चक्कर ही नहीं है। मुझे इंटरेस्टिंग लगा यह कंसेप्ट कि डू रोमांस विदाउट एक्सप्रेसिंग। उन्हें छूना नहीं आता। गले मिलना नहीं आता। वैसे वे बहुत इंटेलिजेंट होते हैं। इस किरदार को निभाने के लिए आंखें भी चढ़ाई हैं। एक रोमांटिक सीन में मेरी आंखें टेढ़ी लगेंगी।
सीरियस हूं मैं भी
लोग मुझ से बार-बार कहते हैं कि मैं हर फिल्म में एक जैसा ही दिखता हूं तो वही मैंने भी कहना शुरू कर दिया। ऐसे सवालों से मैं गुस्सा नहीं होता। मैं अपनी एक्टिंग के बारे में सीरियसली बातें नहीं करता तो इसका मतलब यह नहीं है कि मैं सीरियसली एक्टिंग नहीं करता हूं। अगर मैं हर फिल्म में सेम हूं तो लोग बीस सालों से मेरी फिल्में क्यों देख रहे हैं? एक ही फिल्म देखते रहते। हर फिल्म में कुछ तो अलग करता ही हूं न। क्या अभी एक्टिंग के बारे में बोलना शुरू कर दूं कि क्या-क्या किया? आपको जवाब दे सकता था कि मैंने बहुत मेहनत की और लीन हो गया रोल के अंदर और छह महीने तक... ऑस्कर वाइल्ड ने लिखा था कि दुनिया का सबसे बोरिंग आदमी होता है वह, जो हाउ आर यू पूछने पर अपने बारे में बताने लगता है। टेक्नीकल बातें मैं क्या बताऊं? मौका और दस्तूर देखकर हम लोग काम करते हैं। डान एकदम स्टाइलिश है तो स्टाइल से चलूंगा, बैठूंगा, बातें करूंगा। बाल, कपड़े, बंदूक ़ ़ ़ सब कुछ स्टाइल में होंगे। अभी रा 1 करूंगा तो वही सुपरहीरो बनूंगा। मैं तो कहता हूं कि इंटेंस एक्टर से जरा बगीचे में तुझे देखा तो ये जाना सनम करा के दिखा दो। मैं वो कर सकता हूं और चक दे भी कर सकता हूं। अभी मुझे सीरियस एक्टिंग नहीं करनी है। मुझे कुछ हंसी की पिक्चर करनी है।
अवार्ड और एक्टिंग
किसी ने कहा था कि कामेडी करो तो लोग उसे एक्टिंग न हीं मानते। मुझे लगता है कि गोविंदा को अवश्य नेशनल अवार्ड मिलना चाहिए। मेरी बड़ी तमन्ना है नेशनल अवार्ड जीतने की। मुझे लगा कि चक दे और स्वदेस में मैंने अच्छा किया। वही एक अवार्ड मुझे नहीं मिला है। मेरी तमन्ना है कि आस्कर मिलने से पहले नेशनल मिल जाए तो अच्छा रहेगा। नहीं तो सभी को बुरा लगेगा कि देखो आस्कर मिल गया, नेशनल नहीं मिला। नेशनल अवार्ड मिले तो बच्चे भी खुश होंगे।
करण जौहर
वे जिस उम्र और मुकाम पर रहते हैं, उसी पर फिल्म बनाते हैं। 25-26 साल की उम्र में उन्होंने कुछ कुछ होता है बनायी थी। फिर डैडी के साथ उनका रिलेशन बेहतर हुआ और फैमिली को करीब से समझा तो उन्होंने कभी खुशी कभी गम बनाई। कल हो न हो बनाते समय उनके पिता की मौत हुई। उसके बहुत उनके सारे दोस्तों के विवाह टूट रहे थे तो उन्होंने कभी अलविदा ना कहना बनाई। अभी उन्होंने माय नेम इज खान बनाई है। इसमें आज का मुद्दा है।
इंडिया का मुसलमान
मेरी जिंदगी खुशहाल है। मैं इंडिया का मुसलमान हूं। हिंदू डोमिनेटेड देश में सुपर स्टार हूं। हिंदू से शादी हुई है मेरी। मुझे कभी कोई परेशानी नहीं हुई। न तो देश के अंदर और न देश के बाहर। मैं तो हर तरह से सही हूं, लेकिन दूसरों की कहानियां सुनता हूं तो मुझे लगता है कि इस पर बातें होनी चाहिए। मैंने महसूस किया है कि अभी परसेप्शन बदल रहा है।
एक किस्सा
दुनिया के एक अमीर आदमी से एक रिपोर्टर ने पूछा कि तुम्हारे पास इतने पैसे हैं। बड़ा बिजनेस है। हर बार ठीक बिजनेस कैसे कर लेते हो? अमीर ने कहा, हमेशा सही डिसीजन लेता हूं। भला यह भी कोई बात हुई? चलो, यही बताओ कि सही डिसीजन कैसे लेते हो? रिपोर्टर का अगला सवाल था। अमीर आदमी ने जवाब दिया, एक्सपीरिएंस से... फिर रिपोर्टर ने पूछा, एक्सपीरिएंस कहां से आया? अमीर ने जवाब दिया, गलत डिसीजन से, बार-बार गलत डिसीजन लेने से एक्सपीरिएंस हो गया।
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