दरअसल : मुनाफा बांटने में हर्ज क्या है ?
मानव संसाधन विकास मंत्रालयके के अधीन गठित कॉपीराइट संशोधन समिति से आमिर खान ने इस्तीफा दे दिया है। उन्हें ऐसा लगा कि जावेद अख्तर के हवाले से छपी खबरों में उन्हें बेवजह निशाना बनाया गया है और उनकी छवि धूमिल की गई है। ऐसा संकेत मिल रहा था कि पूरे मामले में आमिर का विरोधी रवैया है और वे गीतकारों के साथ मुनाफा शेयर करने के पक्ष में नहीं हैं।
विमर्श के दौरान उठे विरोधी स्वर को समझने-गुनने से पहले जावेद अख्तर द्वारा सार्वजनिक कर देना एक प्रकार की जल्दबाजी कही जाएगी। अगर इसके साथ समिति की नैतिकता जोड़ी जाए, तो मसला और गंभीर हो जाता है। बहरहाल आमिर के इस्तीफे से कॉपीराइट संशोधन का मुद्दा सरेआम हो गया। चैनल और अखबारों की नजर उस पर गई और पिछले हफ्ते से ही किसी न किसी बहाने से इस पर बहस और खबरें चल रही हैं। आम नागरिक के लिए कॉपीराइट का मुद्दा उतना गंभीर नहीं है। अचानक आमिर ने उन्हें सचेत कर दिया है। यह अच्छा झटका है। अभी चल रही बहस और खबरों से कॉपीराइट के मुद्दे को जानने-समझने का मौका मिल रहा है।
यह मामला लंबे समय से अटका पड़ा था। दुनिया भर में कॉपीराइट के प्रावधानों में नित नए संशोधन किए जाते हैं। नए माध्यमों के उपयोग और प्रचलन में आने के बाद उनके संदर्भ में नए अधिकार सुनिश्चित किए जाते हैं। कोशिश रहती है कि मूल सर्जक को उसके योगदान का निरंतर लाभ मिलता रहे। पश्चिमी देशों में कॉपीराइट नियम इतने सख्त हैं कि किसी भी कृति के व्यावसायिक उपयोग और व्यापार में उनका खयाल रखा जाता है। कोशिश होती है कि उन नियमों का उल्लंघन न हो। अगर किसी ने उल्लंघन किया और वह पकड़ में आ गया, तो उसे मुआवजे के तौर पर भारी रकम चुकानी पड़ती है। कई बार जेल जाने की नौबत भी आ जाती है।
अपने देश में गरीबी, बदहाली और बेरोजगारी की वजह से कॉपीराइट की कोई परवाह नहीं करता। रचनाकार अपनी कृतियों की वाजिब कीमत नहीं ले पाते। उन्हें अपनी मौलिकता, बुद्धि और रचना सस्ते में बेचनी पड़ती है। फिल्मों के संदर्भ में निर्माता, किताबों के मामले में प्रकाशक और नौकरी के मामलों में मालिक कम से कम पैसे देकर ज्यादा से ज्यादा उपयोग करते हैं। हिंदी का कोई लेखक खुश होकर नहीं कहता कि प्रकाशक ने उसे समुचित पैसे दिए। इसी प्रकार फिल्मों का हर लेखक और गीतकार दुखी दिखता है। जो लोग महंगे और मशहूर हैं, वे भी संतुष्ट नहीं हैं। उनकी असंतुष्टि की वजह से ही कॉपीराइट का मुद्दा इस रूप में सामने आया है।
दरअसल, अगर कोई गीत पॉपुलर होता है और वह ज्यादा से ज्यादा बजता है, तो सिर्फ फिल्म कंपनी या म्यूजिक कंपनी ही पूरे लाभ पर कुंडली मारकर कैसे बैठ सकती है? स्वानंद किरकिरे ने सही कहा है कि अगर आप पैसे कमा रहे हैं, तो थोड़ा बांटने में क्या हर्ज है? विदेश में तो लेखक और गीतकारों को पच्चीस प्रतिशत तक का हिस्सा मिलता है। अपने देश में ही गीतकार और लेखक को एकमुश्त पैसे दे देने के बाद कुछ और नहीं दिया जाता। ऐसी स्थिति में लेखक और गीतकारों का दावा उचित है, ..और फिर वे अतिरिक्त लाभ में से ही हिस्सा मांग रहे हैं।
अभी कॉपीराइट संशोधन के ज्यादातर मुद्दे फिल्मों से संबंधित हैं। फिल्मों से बाहर के क्षेत्रों में भी कॉपीराइट के मामलों पर विचार होना चाहिए। प्रकाशन संस्थानों के क्रय-विक्रय और लेखकों के कॉपीराइट पर जांच समिति बैठनी चाहिए। क्या 50 करोड़ से अधिक हिंदी भाषियों के बीच किसी पुस्तक की 500 प्रतियों की ही खपत होती है या प्रकाशक सही आंकड़े नहीं देता..?
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