लंबे गैप के बाद तब्बू तो बात पक्की में दिखेंगी। केदार शिंदे निर्देशित इस फिल्म में उनके साथ शरमन जोशी और वत्सल सेठ भी हैं। बातचीत तब्बू से..।

लंबे गैप के बाद आप फिल्म तो बात पक्की केसाथ आ रही हैं?

बहुत समय से कॉमेडी करने की इच्छा थी। ऐसी कॉमेडी, जिसमें रोल अच्छा हो और कहानी भी हो। यह चलती-फिरती कॉमेडी फिल्म नहीं है। यह छोटे शहर के मिडिल क्लास फैमिली की कहानी है। कोई मुद्दा या समस्या नहीं है। फिर फिल्म के निर्माता रमेश तौरानी ने साफ कहा कि आप नहीं करेंगी, तो हम फिल्म नहीं बनाएंगे। उनका आग्रह अच्छा लगा। फिर बात पक्की हो गई।

नए डायरेक्टर के साथ फिल्म करने के पहले कोई उलझन नहीं हुई?

मेरे लिए नए डायरेक्टर के साथ काम करने का सवाल उतना मायने नहीं रखता। मैंने ज्यादातर नए डायरेक्टर के साथ ही काम किया है। मैंने कभी किसी नए डायरेक्टर के साथ काम करने को रिस्क नहीं समझा। कहानी और स्क्रिप्ट पर भरोसा है, तो मैं हां कर देती हूं।

क्या स्क्रिप्ट पढ़कर आप डायरेक्टर पर भरोसा कर लेती हैं?

हां, इतनी समझ तो हो ही गई है। भरोसा तो आप बड़े डायरेक्टर का भी नहीं कर सकते। मैं इतना नहीं सोचती। मुझे जिन फिल्मों में सराहना मिली या जो फिल्में हिट हुई, वे किसी बड़े डायरेक्टर या बैनर की नहीं थीं। मैंने कभी डायरेक्टर के लिए इंतजार नहीं किया। हां, अभी निर्माता का नाम जरूर देखती हूं। अगर अच्छा और मजबूत निर्माता न हो, तो फिल्म अटक जाती है। यहां तो रमेश तोरानी हैं।

अपने किरदार और कहानी के बारे में बताएं?

मैं लाउड कैरेक्टर राजेश्वरी के रोल में हूं। वह काफी एग्रेसिव और जोड़-तोड़ वाली है। वह अपनी बहन निशा की शादी किसी राजकुमार से करना चाहती है, इसके लिए हर तरीके अपनाती है। लोगों को कभी उस पर गुस्सा आ सकता है, लेकिन उसकी ख्वाहिश है। वह बहन के लिए चिंतित रहती है।

आप काफी दिनों से खामोश रहीं। इधर कोई फिल्म भी नहीं आई। वजह?

मैं तो हमेशा खामोश रहती हूं। अपना काम करती रहती हूं। फिल्में आती हैं, तब भी ज्यादा चूं-चपड़ नहीं करती। इस बार निर्माता का दबाव था कि आप सामने आएं और बोलें, इसलिए मैं दिख रही हूं और लोग मुझे सुन रहे हैं। आजकल रिलीज के समय प्रचार पर बहुत जोर रहता है।

आप रिजल्ट पर ज्यादा ध्यान देती हैं या प्रोसेस का आनंद उठाती हैं?

मैं रिजल्ट पर ध्यान देती, तो फिल्में नहीं कर पाती, जो मैंने किए हैं। कई बार फिल्में साइन करो, तो कुछ लोग समझाते हैं, लेकिन मैंने कभी दूसरों की बातों पर ध्यान नहीं दिया। मैं प्रोसेस का आनंद उठाती हूं। मैं काम करने में बिलीव करती हूं। फल की चिंता नहीं करती। अगर किसी फिल्म की शूटिंग में मजा नहीं आया हो, तो उसके हिट होने पर भी खुशी नहीं मिलती।

आपको अपनी कौन-सी फिल्म पसंद और याद हैं?

माचिस तो है ही। उसके अलावा चांदनी बार, अस्तित्व, मकबूल और चीनी कम का नाम लूंगी। मैंने दूसरी भाषा की भी फिल्में की हैं। उन्हें सराहना मिली है। अफसोस कि मेरे हिंदी फिल्मों के दर्शक उनके बारे में नहीं जानते।

ऐसा नहीं लगता कि योग्यता के मुताबिक आपको फिल्में नहीं मिलीं?

मैं करती ही नहीं। आपको क्यों लगता है कि मुझे फिल्में नहीं मिलती हैं? मेरे पास आने से लोग डरते हैं। मुझे कम फिल्में ही अच्छी लगती हैं। बीस साल हो गए हैं अभिनय करते हुए और मैंने मुश्किल से चौंसठ फिल्में की हैं।


Comments

Parul kanani said…
tabbu ji kamaal ki adakara hai..unse ki ye guftgu bhi rochak hai :)
सुंदर आलेख. अच्छा लगा पढ़कर.

Popular posts from this blog

तो शुरू करें

फिल्म समीक्षा: 3 इडियट

सिनेमालोक : साहित्य से परहेज है हिंदी फिल्मों को