दरअसल : पद्म पुरस्कारों का छद्म
सवाल उठ रहा है कि क्या सैफ अली खान को अभी पद्मश्री से सम्मानित करना उचित है, जबकि फिल्म इंडस्ट्री के अनेक सीनियर अभी तक पद्म सम्मानों से वंचित हैं। एक्टिंग के क्षेत्र में ही सैफ से अधिक योगदान कर चुके कलाकारों की लंबी फेहरिस्त बनाई जा सकती है। उन्हें क्यों इस सम्मान से दूर रखा गया है? मुमकिन है कि सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अधिकारियों और स्वयं मंत्री के पास इसके जवाब हों, लेकिन आम नागरिकों की बात करें, तो वे इस तुक और तर्क को नहीं समझ पाते। उन्हें लगता है कि यह किसी जोड़-तोड़ का खेल है, एक छद्म है, जिसमें सत्ता के करीब बैठे या गलियारे में भटकते लोगों का प्रभाव काम करता है।
सभी प्रदेश की सरकार, केंद्र शासित प्रशासन और विभिन्न संगठनों से भेजे गए नामों पर गृह मंत्री, प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति की संस्तुति के बाद पद्म पुरस्कारों की अंतिम सूची तय होती है। इस प्रक्रिया से स्पष्ट है कि सत्ताधारी पार्टी और उसके नुमाइंदों की सिफारिश से पद्म पुरस्कारों के काबिल हस्तियों की सूची बनती है। जाहिर सी बात है कि विरोधी पार्टियों के करीबी लोगों को पुरस्कार के योग्य नहीं माना जाता। मुगल और अंग्रेजों के समय से ऐसी उपाधियों और सम्मान देने का रिवाज चला आ रहा है। पहले राजा की इच्छा और पसंद से व्यक्तियों का चुनाव किया जाता था। अब प्रजा के द्वारा सत्ता में भेजी गई पार्टी के प्रतिनिधि ये चुनाव करते हैं, लेकिन अंतिम मोहर केंद्रीय सरकार की लगती है।
पद्म पुरस्कारों में पारदर्शिता का मसला बार-बार उठता रहा है। जिन्हें यह नहीं मिलता है, वे नाराज और नाखुश दिखते हैं। कई व्यक्ति देर से पुरस्कार मिलने पर उसे ठुकरा देते हैं। इस साल हिंदी कवि पं. जानकी वल्लभ शास्त्री ने यह सम्मान ठुकरा दिया है। कुछ सालों पहले सितारा देवी ने ठुकरा दिया था। सरकार से ऐसी गफलत होना नई बात नहीं है। समाज में सच्चा योगदान कर रहे व्यक्तियों पर सरकार और सरकारी नुमाइंदों की नजर देर से पड़ती है। हां, अगर विदेश से कोई सम्मान मिल गया हो, तो आनन-फानन में उसे सम्मानित कर दिया जाता है। साउंड रिकॉर्डिस्ट रसूल पुट्टाकुट्टी को मिले पुरस्कार के बारे में क्या कहेंगे? हम अपने देश में ऐसी प्रक्रिया क्यों नहीं विकसित करते कि विभिन्न क्षेत्र की प्रतिभाओं का सही समय पर सम्मान कर सकें।
लेखक, रंगकर्मी, समाजसेवी और नॉन ग्लैमरस फील्ड में काम कर रहे योग्य व्यक्तियों की शिकायत रहती है कि खेल, फिल्म और दूसरे चर्चित क्षेत्र के व्यक्तियों को छोटी उपलब्धियों पर भी सम्मान मिल जाता है, जबकि दूसरे क्षेत्र की महान हस्तियां बड़े योगदान के बावजूद सरकारी सम्मानों से वंचित रह जाती हैं। दरअसल, पॉपुलर कल्चर के इस युग में पॉपुलैरिटी किसी भी सम्मान का बड़ा पैमाना हो गई है। किसी प्रयोगशाला में शोधरत वैज्ञानिक भले ही मानवता के विकास के लिए खुद को होम कर दें, लेकिन एक समाज के तौर पर हम माला उसे पहनाते हैं, जो हमें बार-बार दिखता है। मैं पॉपुलर व्यक्तियों के योगदान को भी महत्वपूर्ण मानता हूं। उनके सम्मान को गैरवाजिब नहीं मानता, लेकिन झटपट बांटे जा रहे सम्मानों को देखकर कोफ्त होती है कि सीनियर, श्रेष्ठ और समर्पित देशवासियों को हम कब सरकारी सूचियों में शामिल करेंगे? कहीं पद्म पुरस्कार सम्मान का सरकारी छद्म तो नहीं है?
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