-अजय ब्रह्मात्मज
तो शुरू करें
यह तो मज़ा आ गया,अब हिंदी में लिखना इतना आसान हो गया है । मैं यहाँ सिनेमा की बात करूंगा । क्या आप फ़िल्में देखते हैं तो आप भी अपनी बात करें.
हाल-फिलहाल में रिलीज हुई फिल्मों को थोड़ा ध्यान से देखें और पढ़ें। पोस्टरों में छपी तस्वीर, लिखे शब्द और के्रडिट लाइन पर गौर करें। सहज रूप से आप जान जाएंगे कि निर्माता पोस्टर के माध्यम से क्या बताना चाह रहा है? हालांकि पोस्टर की डिजाइन में मुख्य अभिनेता, अभिनेत्री, डायरेक्टर और प्रोड्यूसर की सलाह पर विचार किया जाता है, लेकिन सच कहें, तो हिंदी फिल्मों का हीरो ही पोस्टर फाइनल करता है। उसके ओके करने के बाद ही पोस्टर के रूप में फिल्मों का फर्स्ट लुक बाहर किया जाता है।
यह सच है कि फर्स्ट लुक पर आजकल बहुत जोर दिया जाता है। फिल्म निर्माता इसे एक इवेंट बना देते हैं और फिर मीडिया कवरेज पाते हैं। ऐसे इवेंट में मुख्य रूप से बातचीत फर्स्ट लुक पर होनी चाहिए, लेकिन फिल्म रिपोर्टर और फिल्म स्टार अपने परिचित और नियमित दायरे से बाहर नहीं निकल पाते। वे फिल्म के बारे में सारी बातें करते हैं। बस, फर्स्ट लुक पीछे रह जाता है। फर्स्ट लुक या पहला पोस्टर फिल्म का मूड बताता है। एक तस्वीर या मोंटाज के जरिए निर्माता-निर्देशक बताते हैं कि फिल्म में आप क्या देखने जा रहे हैं। पब्लिसिटी डिजाइनर इसे कलात्मक रूप देता है। सलमान खान की हिट फिल्म वांटेड और आ रही फिल्म वीर के पोस्टर को देखते हुए आप रजिस्टर करेंगे कि उनके शरीर सौष्ठव के साथ आक्रामक भंगिमाओं पर फोकस किया गया है। रोमांटिक हीरो सलमान को अलग छवि देने की कोशिश की जा रही है। इनमें सलमान के अलावा किसी और की तस्वीर नहीं है।
लगे हाथ लोगों को बता दूं कि आजकल इसके लिए अलग से फोटो शूट किए जाते हैं। पहले फिल्मों के पोस्टर फिल्म के किसी दृश्य से तैयार किए जाते थे। फिल्म की थीम के अनुरूप इमोशन के क्लोजअप होते थे। फिल्म के किरदारों और स्टारों के फेस वैल्यू के आधार पर उन्हें पोस्टर में जगह दी जाती थी। पोस्टर में उनकी तस्वीरों की साइज का अनुपात उनके मार्केट वैल्यू पर निर्भर करता था। पिछले दिनों एक पोस्टर आर्टिस्ट ने बताया कि पुराने जमाने में पोस्टर पर हीरो, हीरोइन और विलेन के चेहरे उनकी लोकप्रियता दर्शाते थे। उन्होंने विलेन की भूमिका निभाने वाले एक कलाकार का जिक्र किया कि पोस्टर में अपनी तस्वीर बड़ी करने के लिए उन्होंने 20,000 रुपए देने की बात भी की थी। यह बात छठे दशक की है। तब न तो मीडिया विस्फोट हुआ था और न ही एक्पोजर के इतने एवेन्यू थे। मुझे याद है कि रामगोपाल वर्मा की फिल्म सत्या रिलीज हुई थी, तब फिल्म के हीरो की बड़ी तस्वीरें पोस्टर पर थीं। सत्या में जे डी चक्रवर्ती ने फिल्म के नायक सत्या की भूमिका निभाई थी। फिल्म रिलीज होने के एक हफ्ते के अंदर भीखू म्हात्रे का किरदार इतना पापुलर हो गया कि निर्माता ने फटाक से नया पोस्टर छपवाया और उसमें भीखू का किरदार निभा रहे मनोज बाजपेयी की तस्वीर लगाई। ऐसा अनेक बार हुआ है कि फिल्म की रिलीज के बाद दर्शकों की रुचि से पोस्टर की डिजाइन बदल जाए।
एक और वाकया याद आ गया। सभी जानते हैं कि सलीम-जावेद के नाम पोस्टर पर छपते थे, लेकिन क्या आपको मालूम है कि इसके लिए उन्होंने क्या युक्ति लगाई थी? दीवार की रिलीज के समय तक लेखक के रूप में उनका बड़ा नाम हो गया था। उन्होंने निर्माता से आग्रह किया था कि पोस्टर पर उनका नाम डालें। निर्माता ने उनकी बात नहीं मानी। फिल्म रिलीज होने के पहले शहर में पोस्टर लगे। पोस्टरों पर अपना नाम न देख कर सलीम-जावेद ने कुछ लोगों को पैसे दिए और उन्हें निर्देश दिया कि सभी पोस्टरों पर लेखक -सलीम-जावेद लिख दो। पोस्टर के ऊपर हाथों से बड़े अक्षरों में लेखक सलीम-जावेद लिखे जाने पर लोगों ने उन्हें नोटिस किया। फिल्म सफल हुई, तो निर्माता ने भी पोस्टर में उनके नामों को जगह दी।
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